भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा हर मेंढ़क की पहचान करने का नया तरीका

वैज्ञानिकों ने मेंढ़क को बिना नुकसान पहुंचाए उनकी पहचान की है। इसके लिए उन्होंने जीवों को पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर हॉटमोट्टर का उपयोग किया

By Dayanidhi
Published: Tuesday 09 June 2020

दुनिया भर में 41 फीसदी उभयचर प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि, जब भारत की बात आती है, तो इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की "रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटड स्पीशीज़" के मापदंड के अनुसार, अधिकांश प्रजातियां ऐसे समूह में आती हैं, जिनके बारे में जानकारी ही नहीं हैं।

इसका मतलब है कि हमारे पास भारतीय उभयचरों की आबादी  के शायद ही कोई आंकड़े हैं। इसकी कमी के कारण इनके संरक्षण में अड़चन पैदा होती है, खासकर जब आप पकड़ में न आने वाले जीवों के साथ काम कर रहे हों। इसलिए, स्थानीय और निवास पर निर्भर करने वाली प्रजातियों के लिए आबादी के आधार पर संरक्षण कार्यों को शीघ्रता से करने की जरुरत है।

जबकि प्राकृतिक आबादी के डेमोग्राफिक को जानवरों में प्रयुक्त निशान देखने (मार्क-रिकैपचर) की तकनीक से सबसे अच्छा अनुमान लगाया जाता है। जीवों के शरीर पर अलग-अलग निशान होते हैं, जैसे बाघ में धारियां, व्हेल शार्क में छोटे धब्बे और मानव में उंगलियों के निशान आदि। इस बीच, जबकि मेंढक अपने विशिष्ट चिह्नों और रंग पैटर्न के लिए अच्छी तरह से जाना जाता है। इस तरह की तकनीक का उपयोग उभयचरों में कभी नहीं किया गया है, भले ही वे लंबे समय से पृथ्वी पर सबसे कमजोर जानवरों के रूप में ही क्यों जाने जाते हों।

दूसरी ओर, जंगलों में हर एक मेंढ़क को पकड़ना और चिह्नित करना मुश्किल है। भारत के वन्यजीव संस्थान के नैतिक पटेल और डॉ.अभिजीत दास ने उनके प्राकृतिक आवासों से फोटो लेकर हर एक मेंढ़क को बिना नुकसान पहुंचाए उनकी पहचान की है। इसके लिए उन्होंने जीवों को पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर हॉटमोट्टर का उपयोग किया। उनकी इस अनूठी पद्धति का उपयोग ओपन-एक्सेस, की समीक्षा हेरपेटोज़ोआ पत्रिका में की गई है।

शोधकर्ताओं ने कहा, प्रत्येक मेंढ़क को पकड़ना क्षेत्र में संभव नहीं है। इसलिए इस समस्या को दूर करने के लिए, हमने ब्यूटीफुल स्ट्रीम फ्रॉग्स (अमोलॉप्स फॉर्मोसस) पर एक छोटा अध्ययन किया। इस प्रजाति के शरीर में भी अन्य उभयचरों की तरह कई बदलने वाले निशान पाए गए हैं। भारत में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट में पीएचडी के छात्र नैतिक पटेल बताते हैं कि- यह प्रजाति हिमालयी धारा को आबाद करती है, जिस तक पहुंचना मुश्किल है, हमने शारीरिक संपर्क से बचने के लिए दूर से ही प्रत्येक मेंढ़क की तस्वीर लेने की पूरी कोशिश की।

शोधकर्ताओं ने कहा कि 94.3% की सफलता दर के साथ उनका यह अध्ययन सफल रहा। टीम को उम्मीद है कि उनके प्रोटोकॉल को मेंढ़क की कई लुप्तप्राय प्रजातियों के तेजी से आबादी के आकलन करने के लिए, प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि हमने प्रत्येक मेंढ़क के अनूठे चिह्नों को कैप्चर करने के लिए फोटो दस्तावेज़ीकरण का आयोजन किया। फिर कंप्यूटर की सहायता से हर एक की पहचान कर उनकी तुलना की। इस पद्धति से हर एक की संख्या को गिना जा सकता है और आबादी संरचना का अनुमान लगाया जा सकता है। यह अध्ययन असाधारण है, इसमें मेंढक को जरा सा भी नुकसान नहीं पहुंचाया गया है।

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत दास ने कहा -इस तरह की तकनीक शायद ही कभी उभयचरों पर आजमाई गई है। यह उनकी संख्या का अनुमान लगाने का एक आशाजनक तरीका है। इसका उपयोग नागरिक विज्ञान परियोजनाओं (सिटीजन साइंस प्रोजेक्ट्स ) में भी किया जा सकता है।

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