कीटनाशक में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल, बन सकता है हमारी जान का खतरा

स्ट्रीप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एकमात्र एंटीबायोटिक दवाएं हैं जो इस वक्त देश में कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल की जा रही हैं। इससे जीवाणु प्रतिरोध यानी एंटीबायोटिक रजिस्टेंस का खतरा है।

By Vivek Mishra
Published: Monday 27 May 2019

देश के भीतर करीब 40 वर्षों से दो एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कीटनाशक के रूप में किया जा रहा है। खेतों में कीटनाशक के तौर पर अंधाधुंध इन दो एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करने वाले किसान इस बात से अनजान हैं कि एंटीबायोटिक क्या है और यह कितनी बड़ी समस्या बन चुका है। यह बात एक क्षेत्र और कुछ किसानों तक ही नहीं सिमटी है बल्कि पूरी दुनिया में एंटीबायोटिक रजिस्टेंस यानी जीवाणु प्रतिरोध के विरुद्ध आवाज उठाई जा रही है। योजना और नीतियां बनाई जा रही हैं। भारत में जीवाणु प्रतिरोध को कम करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्रवाई योजना है लेकिन उस पर अमल अभी तक नहीं हुआ है।

इन कीटनाशक एंटीबायोटिक के दुष्प्रभावों पर कुछ पढ़ने से पहले नोबेल विजेता एलेक्जेंडर फ्लेमिंग के 1945 में जीवाणु प्रतिरोध को लेकर कहे गए कथन को भी याद करना चाहिए। फ्लेमिंग ने कहा था कि वह समय आ सकता है जब पेंसिलीन किसी भी दुकान से कोई भी खरीद सकता है। यह एक खतरा है कि गैर जानकार आदमी आसानी से उसका ज्यादा और बेजा इस्तेमाल खुद पर करेगा और जीवाणु प्रतिरोध का शिकार हो जाएगा। यह चेतावनी सच साबित हो गई है। पूरी दुनिया में करीब सालाना 7 लाख लोग जीवाणु प्रतिरोध से मर जाते हैं। 2050 तक यह संख्या एक करोड़ तक पहुंच जाएगी।

जीवाणु प्रतिरोध का सीधा मतलब है कि आपमें संबंधित एंटीबायोटिक दवाओं का असर खत्म होता जाएगा और जीवाणु से पैदा संक्रमण जल्दी ठीक नहीं होगा। यह भी हो सकता है कि एंटीबायोटिक की मात्रा बढ़ाने पर भी वह फायदा न करे और संक्रमण से व्यक्ति की मौत हो जाए। इस विज्ञान को आसानी से समझें तो संक्रमण को पैदा करने वाली जीवाणु के विकास को कम करने या खत्म के लिए जो एंटीबायोटिक दवा खाई या खिलाई जाएगी वह बेअसर होगी क्योंकि जीवाणु उस दवा के अनुकूल हो चुके होंगे।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) के अमित खुराना ने बताया कि स्ट्रीप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक को क्रमश: 90 और 10 के अनुपात में कीटनाशक में इस्तेमाल किया जाता है। यह भी जानना जरूरी है कि ये एकमात्र एंटीबायोटिक दवाएं हैं जो कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल की जा रही हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (सीआईबीआरसी) के मुताबिक कुल 282 कीटनाशकों या रसायनों की सूची में यह एंटीबायोटिक पंजीकृत या मान्य हैं। त्वचा रोग, डायरिया, निमोनिया, मूत्र पथ का संक्रमण, गोनोरिया जैसे रोगों में स्ट्रीप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।

कितनी मात्रा में इस एंटीबायोटिक युक्त कीटनाशक का इस्तेमाल करना है यह अभी तय नहीं है। वहीं, ज्यादातर किसान इस डर में अधिक छिड़काव कर देते हैं कि ज्यादा कीटनशाक से उनके पौधे या फसल संक्रमण से लड़ने के लिए ज्यादा ताकतवर हो जाएंगे। जबकि इसका दुष्परिणाम यह होता है कि वह कीटनाशक यानी एंटीबायोटिक पौधों या फसलों के जरिए अनाज में बदलकर हमारी थाली में पहुंचता है। हम भोजन में पोषण के साथ एंटीबायोटिक की थोड़ी-थोड़ी मात्रा भी ले रहे होते हैं। यह एंटीबायोटिक अनजाने में ही हमारे शरीर में पहुंच कर एंटीबयोटिक रजिस्टेंस कर रहा है।  

दुनिया में फैले रोगों में संक्रमण दूसरा प्रमुख कारण है। यदि विकसित देश की बात करें तो वहां संक्रमण का स्थान तीसरे नंबर पर और भारत में चौथे नंबर पर है। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 114 देशों के आंकड़ों पर गौर करने के बाद हाल ही में इस विषय पर वैश्विक सर्वेक्षण करने की घोषणा की है।

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