विश्व आर्द्रभूमि दिवस पर विशेष, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सन 1900 के बाद से दुनिया की 64 प्रतिशत आर्द्रभूमियां गायब हो गई हैं

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मानवीय उपेक्षाओं का शिकार प्राकृतिक दुनिया का सुपर हीरो- आर्द्रभूमि

विश्व आर्द्रभूमि दिवस पर विशेष, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सन 1900 के बाद से दुनिया की 64 प्रतिशत आर्द्रभूमियां गायब हो गई हैं

By Faiyaz A Khudsar
Published: Friday 02 February 2024
दिल्ली के डीडीए यमुना जैव विविधता पार्क में बहाल की गई एक आर्द्रभूमि। फोटो: फैयाज खुदसर

मुझे याद है कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शोध करते हुए अक्सर सेसाईपुरा से शिवपुरी जाना पड़ता था, क्योंकि फोन की सुविधा वही थी। रास्ते में एक सुंदर बड़ी आर्द्रभूमि होती थी, जिसे एक ओर से बांध बनाकर आसपास के खेतों से जल संग्रह के लिए बनाया गया था। किंतु प्रतिवर्ष गेहूं के फसल के समय इस आर्द्रभूमि को सूखा दिया जाता था।

ऐसे उदाहरण हमने और आपने अपने आसपास देखे होंगे, जहां आर्द्रभूमि को नाना प्रकार के कार्यों के लिए सुखाकर या भरकर उपयोग में लाया जाता है। वास्तव में मानव समाज ने कभी भी आर्द्रभूमि को अहमियत नहीं दी। हमेशा इस बंजार स्थल की तरह व्यवहार किया। मैं तो कहूंगा कि हमने आर्द्रभूमि को तृषकृत किया।

आर्द्रभूमियां (वेटलैंड्स) पृथ्वी के सबसे संकटग्रस्त प्रयावासों में से एक हैं। सन 1700 में मौजूद लगभग 85 प्रतिशत आर्द्रभूमि सन 2000 तक खत्म हो गईं। कई तो विकास, खेती या अन्य उपयोगों के लिए सुखा दी गई हैं।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सन 1900 के बाद से दुनिया की 64 प्रतिशत आर्द्रभूमियां गायब हो गई हैं। जंगलों की तुलना में तीन गुना तेजी से गायब होने से, उनका नुकसान सैकड़ों हजारों जानवरों और पौधों की प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है। आखिरकार समस्त मानव जाति ही संकट में नजर आ रही है।

परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। एक प्रकृति संरक्षण समूह ने पाया है कि दुनिया की लगभग हर पांचवीं ड्रैगनफ्लाइज और ड्रैम्सलफ्लाई विलुप्त होने के कगार पर हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की विलुप्तप्राय प्रजातियों की रेड डाटा सूची के अनुसार, ड्रैगन और ड्रैम्सलफ्लाई की 6,016 प्रजातियों में से लगभग 16% विलुप्त होने के कगार पर हैं।

परिणाम स्वरूप विषाणु जनित रोगों में अप्रत्याशी वृद्धि हो रही है। मलेरिया, डेंगू आदि जैसे रोग असमय नजर आ रहे हैं। कारण ड्रैगनफ्लाइज और ड्रैम्सलफ्लाई जो कि मच्छरों के जैविक नियंत्रक हैं, उनका एवं उनके स्वस्थ आर्द्रभूमि का निरंतर विनाश होना है।

रामसर कन्वेंशन, जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण वेटलैंड्स को संरक्षित करना और उनके संरक्षण और सदुपयोग को बढ़ावा देना है, के सचिवालय द्वारा जारी सन 2021 ग्लोबल वेटलैंड आउटलुक के अनुसार, दुनिया भर में वेटलैंड्स क्षेत्र में उपलब्ध डाटा अनुसार 35 प्रतिशत की कमी आई है।

अकेले 1970 से प्राकृतिक आर्द्रभूमियां प्रति वर्ष 0.78% की दर से घट रही हैं, जो प्राकृतिक वनों की कटाई की दर से काफी अधिक है। यह आगे बताता है कि जल निकासी, प्रदूषण, आक्रामक और विदेशी प्रजातियां, अस्थिर उपयोग, बाधित प्रवाह व्यवस्था और जलवायु परिवर्तन के कारण शेष आर्द्रभूमि की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है।

वास्तव में आर्द्रभूमि एक कठिन परिस्थिति से गुजर रही हैं। फिर भी, खाद्य सुरक्षा से लेकर जलवायु परिवर्तन शमन तक, आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों से कहीं अधिक भी है एवं महत्वपूर्ण भी है।

साइंस में 2022 में प्रकाशित पेपर के अनुसार, पीटलैंड्स, मैंग्रोव वन, दलदल और समुद्री घास जैसे आर्द्रभूमि धरती पर कार्बन का 20 प्रतिशत संग्रहण करते हैं, भले ही वे पृथ्वी की सतह का केवल 1 प्रतिशत कवर करते हैं।

यह उनकी उच्च कार्बन पृथक्करण दर और प्रति इकाई क्षेत्र में प्रभावी पृथक्करण दर के कारण है, जो समुद्री और वन पारिस्थितिकी प्रणालियों से कहीं अधिक है।

1971 में अपनाए जाने के बाद से, रामसर कन्वेंशन ने दुनिया भर में आर्द्रभूमि के संरक्षण और सदुपयोगिता में विभिन्न योगदान दिया है। भारतवर्ष में आज दिनांक तक 80 वेटलैंड्स रामसर साइट के रूप में घोषित किए जा चुके हैं।

दुर्भाग्य से गैर चिन्हित आर्द्रभूमियों में से अधिकतर की स्थिति क्रियाशील पारिस्थितिकी तंत्र की नहीं है। साथ ही साथ कुछ ऐसे रामसर साइट भी नजर आते हैं, जिनको अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। घटता जलस्तर, अतिक्रमण, आक्रामक विदेशी पौधों, एवं व्यवसायिक विकास मॉडल इन आर्द्रभूमि को काल के गाल में समाहित करते जा रहे हैं।

इसके बावजूद कुछ सफल उदाहरण है, जो सरकार द्वारा वैज्ञानिक तरीके से पुनर्स्थापित वेटलैंड को प्रदर्शित करते हैं। इनमें एक दिल्ली विकास प्राधिकरण का दिल्ली स्थित यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क है। जहां दलदली जमीन एवं आर्द्रभूमि को स्थापित किया गया है।

भारत में किसी नदी घाटी में किए गए क्रियाशील बाढ़ क्षेत्र में आर्द्रभूमि पुनर्स्थापना का एक नायाब नमूना है। यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में बाढ़ क्षेत्र विशेषता वाले आर्द्रभूमि, घास के मैदान, एवं वनों को पुनर्स्थापित किया गया है जिससे न केवल यमुना नदी को आवश्यकता के समय लाभ पहुंचता है, बल्कि इस पुनर्स्थापित पर्यावास स्थानीय एवं प्रवासी पक्षियों का प्राकृतिक वास बना है।

साथ ही साथ नाना प्रकार के सरीसृप, घास खाने वाले वन्य जीव एवं मांसाहारी वन्य जीव वगैरह पुनः अपने ऐतिहासिक भौगोलिक वितरण सीमा क्षेत्र को प्राप्त किया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है।

महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों की रक्षा करना और आर्द्रभूमि बहाली को बढ़ावा देना न केवल जलवायु परिवर्तन के लिए एक महत्वपूर्ण शमन उपाय है, बल्कि प्राकृतिक जल अवशोषण और अवधारण क्षमता का उपयोग और विस्तार करके, बाढ़ से होने वाले नुकसान को रोकने में भी योगदान देता है।

आवश्यकता है कि हम इन जीवनदायिनी आर्द्रभूमि को सिर्फ जल का संग्रहण समझ निरादर ना करें इसकी उपेक्षा न करें समय रहते अगर हम यह समझ पाए के पीने के पानी का प्रमुख स्रोत यह आर्द्रभूमि हमारी आवश्यकता है।

आओ, मिलकर आदर सहित इन्हें संरक्षित करें जो हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अधिक आवश्यक है।

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