विश्व जल दिवस विशेष-5: मनरेगा से लहलहाई फसलें, बढ़ी कमाई

डाउन टू अर्थ ने मनरेगा से बदले हालात के बारे में जानने के लिए 15 राज्यों के 16 गांवों का दौरा किया। पढ़ें, मध्यप्रदेश के सीधी जिले के एक गांव की कहानी-

By Anil Ashwani Sharma
Published: Saturday 20 March 2021
मध्य प्रदेश के सीधी जिले के कुंदौर गांव में मनरेगा से बांध बनाया जा रहा है। यह जिले की बिरतुमानिया नदी पर निर्माणाधीन है (फोटो: नचिकेता शर्मा)

जल संरक्षण कार्यों से दर्जनों गांव में न केवल फसल चक्र बदला बल्कि इससे अतिरिक्त आय के स्त्रोत भी खुले मध्य प्रदेश का सीधी जिला राज्य के कुल 55 जिलों में सबसे गरीब जिलों की श्रेणी में आता है। वर्तमान में यह गरीबी के मामले में 16वें स्थान पर है। यह बात जिला पंचायत विभाग के मुख्य कार्यपालन अधिकारी आरके शुक्ला ने बताई। 11,27,033 की आबादी वाले इस जिले में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापान करने वाले परिवारों का प्रतिशत 50.2 है। जिले में मनरेगा योजना 2005-06 में शुरू हुई थी। तब से अब तक यानी 2020-21 तक जिले में कुल 19,590 जल संबंधित कार्यों को पूरा किया गया। इन जल संरक्षण कार्यों पर अब तक कुल खर्च 165 करोड़ रुपए हुए।

जिला मनरेगा अधिकारी के अनुसार जिले में किए गए जल संरक्षण कार्यों में निजी और सामुदायिक जल संरक्षण संबंधी कार्यों का अनुपात 35:65 है। जिले के मनरेगा जल संरक्षण विभाग के तकनीकी अधिकारी नर्मदा प्रसाद तिवारी ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण जलस्तर में पहले के मुकाबले सुधार हुआ है। पिछले डेढ़ दशकों में हुए जल संरक्षण कार्यों का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि गांव में औसतन 10-12 फीट की गहराई पर पानी मिल जाता है। इसका सबसे अधिक लाभ ग्रामीण महिलाओं को हुआ है क्योंकि पानी ढोने की जिम्मेदारी उन्हीं पर होती है। जिला मनरेगा कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मनरेगा से निर्मित जल संरक्षण का सर्वाधिक लाभ जिले की 29.9 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 11.9 प्रतिशत अनुसूचित जाति समुदाय को हुआ। चालू वित्तीय वर्ष में जिले में 43,265 लोगों ने रोजगार की मांग की थी और इनमें से 35,198 को रोजगार उपलब्ध कराया गया। जिले के ग्राम रोजगार सहायक शिवम सिंह बताते हैं कि चूंकि यहां रोजगार की बहुत कमी थी। पहले वर्ष में जब यह योजना शुरू हुई थी तब इस बारे में ग्रामीणों को जानकारी कम थी। ऐसे मेंं कम संख्या में लोग काम के लिए आए। लेकिन जैसे-जैसे लोगों को इस योजना के बारे में जानकारी मिलती गई, लोग आसपास के कस्बों में रोजगार की तलाश में जाने की जगह अपने गांव में ही रुककर काम करने लगे।

जिले में मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों का निर्णय ग्राम सभा में ही होता है। कुसमी ब्लॉक के कुंदौर गांव के सरपंच अमर सिंह बताते हैं कि जब से यह योजना शुरू हुई है तब से अब तक गांव स्तर पर मनरेगा के अंतर्गत किए जाने वाले कामों के प्रस्ताव को ग्राम सभा में सभी ग्रामीणों की उपस्थित में रखा जाता है। जब किसी योजना पर सहमति बनती है तब ही उस प्रस्ताव को जिलाधीश कार्यालय भेजा जाता है। इस प्रकार से ग्राम सभा से आए प्रस्तावों पर सीधी जिले के कलेक्टर रविंद्र कुमार सिंह ने बताया कि हमारे जिले में शुरू से ही इसी प्रक्रिया को प्राथमिकता दी गई और इसका नतीजा है कि जिले में हुए कुल कार्यों में जल संपत्तियाें के निर्माण का प्रतिशत लगभग 75 है।

जिले में किए गए जल संरक्षण के कार्यों से जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बसे बरमानी गांव के दिन बदल गए हैं। गांव के पूर्व सरपंच नेपाल सिंह ने बताया, “15 साल पहले लगभग पूरा गांव रोजीरोटी की तलाश में आसपास के कस्बों में जाने को मजबूर था। गांव में किसी प्रकार से आय के स्त्रोत नहीं थे। गेहूं-चावल खरीदना पड़ता था और अब डेढ़ दशक बाद गांव का एक भी आदिवासी बाहर काम की तलाश में नहीं जाता। आय के स्त्रोत के रूप में अब गांव वाले अच्छी खासी सब्जी उगाते हैं। गेहूं-चावल इतना होता है कि कई ग्रामीण इसका विक्रय भी करते हैं। इन सब परिवर्तनों के लिए मनरेगा जिम्मेदार है।” नेपाल सिंह से आज से ठीक 15 साल पहले डाउन टू अर्थ तब भी रूबरू हुआ था, जब यह योजना 2005-06 में शुरू हो रही थी। एक बार फिर डाउन टू अर्थ इसी गांव में पहुंचा और उसी आदिवासी किसान से रूबरू हुआ। सिंह ने कहा कि यहां आपको बताने व दिखाने के लिए बहुत कुछ है।

बरमानी गांव में 15 साल पहले केवल तिलहन-दलहन की ही फसल होती थी लेकिन अब अधिकांश गांव वाले गेहूं और धान भी उपजा रहे हैं क्योंकि गांव में सिंचाई के लिए चार तालाब बन गए हैं। नेपाल सिंह ने बताया कि अब गांव में एक और बड़ा तालाब मनरेगा के तहत बन रहा है, जिसकी क्षमता 400 एकड़ खेतों को सींचने की है। बरमानी गांव के ही वर्तमान पंचायत में पंच राकेश सिंह बताते हैं कि हमें पहले गेहूं-चावल खरीदना पड़ता था लेकिन अब सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होने के कारण हम गेहूं अासानी से उगाने लगे हैं। नेपाल सिंह कहते हैं कि गांव वालों की आमदनी बढ़ी है क्योंकि अधिकांश लोग अपने घर के आसपास के खेतों में सब्जी का उत्पादन करने लगे हैं। उन्होंने बताया कि अभी मैंने पत्ता गोभी एक एकड़ के खेत में लगाई है और यह पिछले दो माह से हर हफ्ते 50 से 60 किलो निकलती है। चूंकि हम रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करते हैं तो हमें ठीक-ठाक भाव मिल जाता है। यही नहीं अब हमारे गांव में लगभग दो दर्जन परिवार गेहूं-चावल भी बेचने लगे हैं।

बरमानी गांव की आबादी लगभग 2,300 है और इसमें लगभग 700 आदिवासियों को काम वर्तमान में भी मनरेगा के तहत मिल रहा है। लॉकडाउन के समय तो यहां लगभग एक हजार लोगों को लगातार काम मिला। अपने घर के सामने ही तालाब की नहर पर काम कर रही है इंद्रवती सिंह कहती हैं कि पहले गांव में दूसरी ओर काम होता था तो काम पर नहीं जा पाती थी लेकिन अब घर के सामने ही काम मिल रहा है तो पिछले तीन माह से काम कर रही हूं। वह कहती हैं कि इस तालाब के निर्माण से हमारे घर के कुएं में पानी आ गया है। वह बताती हैं कि मनरेगा से होने वाली अतिरिक्त कमाई के कारण ही हम बच्चों को पढ़ने के लिए गांव की जगह कस्बे में भेज पा रहे हैं।

मनरेगा ने जिले एक और गांव पौड़ी की भी काया पलटी है। कुसमी ब्लॉक में 2,492 की आबादी वाले इस गांव में 2007-08 में मनरेगा योजना शुरू हुई। तब से इस गांव में मनरेगा के तहत जल स्त्रोतों के निर्माण के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। अब तक इस गांव में कुल 21 जल स्त्रोतों का निर्माण किया जा चुका है। अब गांव की ही एक बरसाती नदी पर बने स्टॉपडैम के कैचमेंट एरिया बढ़ाया जा रहा है। अब तक इस नदी से गांव की केवल 60 एकड़ जमीन सिंचित होती थी लेकिन कैचमेंट एरिया बढ़ाने से लगभग 100 एकड़ जमीन सिंचित हो सकेगी। गांव में बने डेढ़ दर्जन से अधिक तालाबों का नतीजा है कि पिछले दस सालों में फसल चक्र ही बदल गया है। एक दशक पूर्व गांव में केवल कुटकी, कोदव, मक्का और बाजरा की फसल थोड़ी बहुत हो पाती थी। पिछले 15 सालों में गांव में बने 21 जल स्त्रोतों के निर्माण से गांव की 250 एकड़ जमीन पूरे साल भर के लिए सिंचित हो गई है।

ग्राम रोजगार सहायक शिवम सिंह ने बताया कि गांव में तालाब केवल सिंचाई के लिए ही नहीं बल्कि मछली पालन के लिए भी तैयार किए गए हैं। गांव में तीन तालाबों में मछली पालन हो रहा है। मछली के बीज डालने के छह माह में मछली विक्रय योग्य हो जाती है। निजी तालाब के मालिक विजय सिंह ने बताया कि अगले छह माह तक लगभग 50 क्विंटल रूपचंद्र प्रजाति की मछली तैयार होती है और बाजार में 150 रुपए किलो के हिसाब से बिकती है। इससे छह महीने में लगभग 75,000 रुपए की आमदनी हो जाती है।

गांव में जल स्त्रोतों के निर्माण के कारण 52 कुओं में पानी अब पूरे साल भर बना रहता है। मनरेगा के अंतर्गत छोटे-बड़े जल स्त्रोतों के अनगिनत उदाहरण हैं लेकिन जिले के कुंदौर गांव में बन रहे बांध के कैचमेंट एरिया (जलग्रहण क्षेत्र) को देखकर कई ग्रामीण इसे “सरदार सरोवर बांध” कहने से नहीं चूक रहे। यह बांध 2012-13 में बनना शुरू हुआ था। गांव की बिरतुमानिया नदी पर बांध का निर्माण किया जा रहा है। बांध की मेड़ की चौड़ाई लगभग हाइवे के तीन लेन के बराबर है। अब 2.9 किलोमीटर नहर का निर्माण हो रहा है। इससे गांव की 700 एकड़ जमीन सिंचित हो सकेगी। गांव के सरपंच अमर सिंह ने बताया कि बांध की नहर एक साल में तैयार हो जाएगी। इस बांध के अलावा इस गांव में 14 और तालाबों का निर्माण किया गया है।

 

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