जानिए क्यों एनजीटी ने जैसलमेर में शुरू हो रहे मरु महोत्सव पर मांगी रिपोर्ट

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya
Published: Thursday 02 February 2023

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2 से 5 फरवरी, 2023 के बीच जैसलमेर में होने वाले 'मरु महोत्सव 2023' के दौरान वन्य जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजस्थान के मुख्य वन संरक्षक, अध्यक्ष, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जैसलमेर के जिला मजिस्ट्रेट से 3 फरवरी, 2023 तक मामले में एक तथ्यात्मक और कार्रवाई सम्बन्धी रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट का कहना है कि इस मामले में परियोजना प्रस्तावक - प्रमुख सचिव, पर्यटन, राजस्थान को नोटिस जारी किया जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने अधिकारियों को मामले में इस तरह की कार्रवाई करने की बात कही है जो कानून, वन्य जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आवश्यक हो।

गौरतलब है कि मरु महोत्सव 2023 के दौरान प्रस्तावित गतिविधियों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर तपेश्वर सिंह भाटी ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। आवेदक का कहना है कि वहां 4 और 5 फरवरी, 2023 को सूर्यास्त के बाद एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया जाना है जिसमें बड़ी मात्रा में आतिशबाजी, लेजर बीम और साउंड सिस्टम का उपयोग होगा।

इसमें दस से पंद्रह हजार लोगों के शामिल होने की संभावना है। एनजीटी को दिए अपने आवेदन में उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम जैसलमेर के पास सुम और खुहड़ी के टीलों पर, डेजर्ट नेशनल पार्क (डीएनपी) के करीब और लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) के पक्षी अभयारण्य से 200 से 400 मीटर की दूरी पर आयोजित किया जाना है।

ऐसे में अदालत ने कहा है कि आतिशबाजी, लेजर शो और तेज शोर के कारण वन्यजीवों और टीलों के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों के अलावा, जिस पर वन्यजीव विभाग द्वारा भी आपत्ति जताई गई है, सफाई-स्वच्छता का पता लगाया जाना चाहिए, क्योंकि वहां इतनी ज्यादा भीड़ जुटने वाली है। इसके अलावा, वाहनों के अनियमित उपयोग और उसके दुष्प्रभावों जैसे धूल और धुएं से ऊंटों पर पडने वाले असर के मुद्दे पर भी गौर किया जाना चाहिए। 

क्यों एनजीटी ने मसूरी की वहन क्षमता का अध्ययन करने का दिया निर्देश

एनजीटी का कहना है कि पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए मसूरी की वहन क्षमता का आंकलन किया जाना चाहिए। इसके लिए कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है।

ट्रिब्यूनल ने कहा है कि अध्ययन में इस बात पर गौर किए जाने की जरूरत है कि मसूरी में कितने निर्माण की अनुमति दी जा सकती है और इसके लिए क्या सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए। 31 जनवरी, 2023 को दिए इस आदेश में कोर्ट ने पूछा है कि मौजूदा इमारतों और वाहनों के आवागमन, स्वच्छता, मिट्टी की स्थिरता और वनस्पति/जीवों के संदर्भ में पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता को बनाए रखने सहित अन्य सभी प्रासंगिक और सम्बंधित पहलुओं के लिए क्या सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए।

ऐसे में इस समिति की भूमिका वहन क्षमता, जल-भूविज्ञान अध्ययन, भू-आकृति विज्ञान अध्ययन के साथ अन्य सम्बंधित और आकस्मिक मुद्दों को कवर करने के प्रकाश में पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए बचाव सम्बन्धी उपायों के बारे में सुझाव देना होगा। एनजीटी ने कमेटी को दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहा है।

गौरतलब है कि मीडिया में जोशीमठ आपदा और उसके कारण बड़ी संख्या में लोगों के विस्थापन और संपत्ति को हुए नुकसान को देखते हुए कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई शुरू की है। वहां ऊपरी सतह के विस्थापन के चलते हुए भू धंसाव की जानकारी मिली थी। इसके लिए क्षमता से अधिक और अनियोजित निर्माण को जिम्मेवार माना जा रहा है। देखा जाए तो यह मसूरी के लिए भी एक चेतावनी है, जहां इस तरह का अनियोजित निर्माण जोरो पर हो रहा है।

इस मामले में अदालत को सूचित किया गया है कि मसूरी की वहन क्षमता का अध्ययन 2001 में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) द्वारा किया गया था। संस्थान का सुझाव था कि वहां आगे कोई निर्माण व्यवहार्य नहीं है।

गाजियाबाद नगर निगम के स्टॉर्म वाटर ड्रेन में नहीं छोड़ा जा रहा सीवेज, एनजीटी को दी गई जानकारी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को यह सत्यापित करने का निर्देश दिया है कि गाजियाबाद नगर निगम के तूफानी जल नाले में बहने वाले सीवेज और अन्य कचरे को रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाए गए हैं या नहीं।

गौरतलब है कि रिपोर्ट में गाजियाबाद नगर निगम ने लखनऊ शहरी विकास के अपर मुख्य सचिव को जानकारी दी है कि अब तीन संवेदनशील बिंदुओं पर गंदे पानी और डेयरियों से निकलने वाले कचरे की कनेक्टिविटी हो गई है। साथ ही 158 घर जो पहले सीवेज सिस्टम से नहीं जुड़े थे, उन्हें अब उससे जोड़ दिया गया है। ऐसे में अब कोई सीवेज नाले में नहीं डाला जा रहा।

गौरतलब है कि एनजीटी के समक्ष ट्रिब्यूनल के 3 अगस्त, 2018 के आदेश का पालन नहीं किए जाने को लेकर याचिका दायर की गई थी। इसमें प्रह्लाद गढ़ी गांव से निकल रहे सीवर के पानी को गाजियाबाद नगर निगम की तूफानी जल निकासी में छोड़े जाने से रोकने के लिए उठाए गए कदमों में कमी की बात कही गई थी।

साथ ही गाजियाबाद के वसुंधरा में सेक्टर 16, 17, 18 और 19 में तूफानी जल नाले में ठोस और अन्य कचरे की डंपिंग को रोकने में नाकाम रहने की बात सामने आई थी।

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