बेहतर कल के लिए सुधारने होंगे प्रकृति के साथ बिगड़ते रिश्ते: यूएन

यदि जैव विविधता को हो रहे नुकसान की बात करें तो पेड़ पौधों और जानवरों की अब तक ज्ञात 80 लाख लाख प्रजातियों में से 10 लाख पर विलुप्त हो जाने का खतरा मंडरा रहा है

By Lalit Maurya
Published: Monday 22 February 2021

जिस तरह से आज इंसान प्रकृति का दोहन कर रहा है, वो उसके अस्तित्व और विकास के लिए ही खतरा बनता जा रहा है। जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है, जैवविविधता को नुकसान पहुंच रहा है और प्रदूषण बढ़ रहा है, डर है कि उसके चलते कहीं पृथ्वी मनुष्य के ही रहने के लायक न रहे। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट "मेकिंग पीस विद नेचर" का कहना है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके ही इंसानों के लिए एक बेहतर कल बनाया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बताया कि, "प्रकृति की मदद के बिना हमारा विकास संभव नहीं, यहां तक की हम बच भी नहीं पाएंगे। लंबे समय से, हम प्रकृति के खिलाफ एक ऐसी जंग लड़ रहे हैं, जो हमारे अपने लिए ही घातक है। जिसका नतीजा यह तीन पर्यावरणीय संकट है।" उनके अनुसार जिस तरह से गैर जिम्मेदाराना तरीके से हम उत्पादन और उपभोग कर रहे है, उसका नतीजा है कि आज इंसानी स्वास्थ्य और समाज पर दबाव बढ़ता जा रहा है। 1970 के बाद से वैश्विक आबादी में दोगुनी वृद्धि हो चुकी है। बढ़ते आर्थिक विकास के बावजूद अभी भी दुनिया में असमानता मौजूद है, जिसका नतीजा है कि 130 करोड़ लोग गरीबी का शिकार हैं, जबकि 70 करोड़ खाली पेट सोने को मजबूर हैं। 

किस कीमत पर हुआ आर्थिक विकास

रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था पांच गुना बढ़ चुकी है, जो बहुत हद तक जीवाश्म ईंधन और अन्य संसाधनों के अनियंत्रित उपयोग का नतीजा है। हालांकि इस फायदे की हमें भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है। इसका खामियाजा पर्यावरण को भुगतना पड़ा है।

पिछले कुछ समय में महामारी के चलते उत्सर्जन में गिरावट आई है पर वो स्थाई नहीं है। जिस रफ़्तार से उत्सर्जन बढ़ रहा है उसके चलते सदी के अंत तक तापमान 3 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ जाएगा। यदि जैव विविधता को हो रहे नुकसान की बात करें तो पेड़ पौधों और जानवरों की अब तक ज्ञात 80 लाख लाख प्रजातियों में से 10 लाख पर विलुप्त हो जाने का खतरा मंडरा रहा है। जिस तरह से औद्योगीकरण और गहन कृषि बढ़ रही है। उसके चलते जल और वायु बड़ी तेजी से दूषित हो रही है। यदि बढ़ते प्रदूषण को देखें तो उससे और उसके कारण होने वाली बीमारियां हर साल समय से पहले लगभग 90 लाख लोगों की जान ले रही हैं। कृषि, शहरीकरण और संसाधनों की भूख में हमने 1990 के बाद से हमने करीब 10 फीसदी जंगलों को काट दिया है, जो न केवल अनगिनत प्रजातियों का घर था, बल्कि हमारे वातावरण को भी साफ रखने में मदद करता था। 

कैसे सुधरेंगे यह रिश्ते

ऐसे में गुटेरेस के अनुसार हमें मनुष्य के स्थायी विकास के लिए प्रकृति को दुश्मन की तरह न समझकर एक सहयोगी के रूप में देखना चाहिए। प्रकृति की मदद से हम शाश्वत विकास के सभी 17 लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं।

रिपोर्ट से पता चलता है कि पर्यावरण को इस आपात स्थिति में पहुंचाने के लिए जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विवधता को हो रहा विनाश, यह तिकड़ी मिलकर जिम्मेवार है, ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए इन तीनों पर काम करने की जरुरत है। उदाहरण के लिए जीवाश्म ईंधन पर दी जा रही सब्सिडी को ले लीजिये जिसके चलते पर्यावरण पर गहरा असर पड़ रहा है। एक तरफ इसके चलते उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है, स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है और प्राकृतिक संसाधनों का विनाश भी हो रहा है। ऐसे में इन पर दी जा रही सब्सिडी को बंद करना होगा। साथ ही औद्योगिक पैमाने पर की जा रही खेती को बंद करना होगा। इसकी जगह जो फण्ड इसपर खर्च किया जा रहा है उसे ऐसे विकास पर खर्च करें जो पर्यावरण अनुकूल हों।

यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन के अनुसार इस रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि मानव मूल्यों और मानसिकता को बदलना कितना अहम है। इसके साथ ही पर्यावरण पर बढ़ते संकट को हल करने के लिए राजनीतिक और तकनीकी समाधानों पर प्रकाश डाला गया है।

प्रकृति और हमारा स्वास्थ्य किस तरह एक दूसरे से जुड़े हैं, यह बात कोविड-19 महामारी ने साबित कर दी है। हम प्रकृति को कैसे देखते हैं और कितना महत्व देते हैं, इस पर आने वाला भविष्य निर्भर करेगा।

हमें अपने और प्रकृति के बीच के संबंधों में सुधार लाना होगा। निर्णय लेने से पहले प्रकृति का भी ध्यान रखना होगा और समस्याओं को हल करने के लिए प्रकृति के साथ मिलकर काम करना होगा। चाहे हम आर्थिक नीतियों की बात करें या व्यक्तिगत चुनावों की, हमारे निर्णयों में इन मूल्यों को होना चाहिए। यह ने केवल प्रकृति के दृष्टिकोण से फायदेमंद होगा साथ ही इंसान के स्थायी विकास के लिए भी उपयोगी होगा। इस महामारी ने हमें एक मौका दिया है जिसकी मदद से हम पर्यावरण और अपने बीच के बिगड़ते रिश्तों में सुधार ला सकते हैं।

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