अधिक संख्या में पाई जाने वाली प्रजातियों के गायब होने से कीटों की संख्या में आ रही है गिरावट: शोध

अध्ययन के निष्कर्ष इस विचार को चुनौती देते हैं कि कीट जैव विविधता में बदलाव दुर्लभ प्रजातियों के गायब होने के कारण होता है।

By Dayanidhi
Published: Friday 22 December 2023
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, टोनी हिसगेट, मोनार्क तितलियां पूर्व में स्थानीय आधार पर बहुतायत वाली प्रजातियों का एक उदाहरण है जिसकी संख्या में गिरावट आई है।

आइडीव के शोधकर्ताओं ने कीड़े, पतंगे और टिड्डे जैसे जमीन में रहने वाले कीड़ों के लम्बे समय के रुझानों की जांच पड़ताल की। शोधकर्ताओं ने पाया कि पूर्व में सबसे आम प्रजातियों की संख्या में कमी ने स्थानीय कीटों की गिरावट में सबसे अधिक योगदान दिया है। सामान्य या प्रचुर संख्या में पाए जाने वाले कीटों की प्रजातियां वे हैं जो स्थानीय रूप से सबसे अधिक संख्या में पाई जाती हैं, लेकिन ये कौन सी प्रजातियां हैं, ये अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होते हैं।

नेचर में प्रकाशित अध्ययन के निष्कर्ष इस विचार को चुनौती देते हैं कि कीट जैव विविधता में बदलाव दुर्लभ प्रजातियों के गायब होने के कारण होता है।

यह अध्ययन हाल ही में कीटों के नुकसान के बारे में खतरे की घंटी बजने के बाद किया गया है, क्योंकि शोधकर्ताओं ने दुनिया के कई हिस्सों में कीड़ों की कुल संख्या में भारी गिरावट देखी है। हालांकि, लंबी अवधि में स्थानीय रूप से दुर्लभ और प्रचुर प्रजातियों के बीच सामान्य रुझान के बारे में बहुत कम जानकारी है।

मुख्य अध्ययनकर्ता और आइडीव के वैज्ञानिक रोएल वैन क्लिंक कहते हैं, खोज जरूरी थी। हमें यह जानना था कि क्या कीड़ों की भारी संख्या में गिरावट के बारे में अवलोकन सामान्य और दुर्लभ प्रजातियों के बीच अलग-अलग थे और इसका कीट विविधता में भारी बदलाव कैसे हुआ।

अधिक सामान्य प्रजातियां लुप्त हो रही हैं

वैन क्लिंक और उनके सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने पिछले अध्ययनों को खंगाल कर कीटों की संख्या के रुझान को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास किया। उन्होंने 106 अध्ययनों से नौ से 64 वर्षों के बीच की अवधि में एकत्र किए गए आंकड़ों का उपयोग करके कीटों पर एक डेटाबेस बनाया। उदाहरण के लिए, जमीन में रहने वाले गुबरैलों पर किए जा रहा डच अध्ययन 1959 में शुरू किया गया था और वह आज भी जारी है।

इस अपडेटेड डेटाबेस के साथ, शोधकर्ताओं ने पुष्टि की कि आंकड़ों में भिन्नता के बावजूद, इन लंबे सर्वेक्षणों से जमीन में रहने वाले कीटों में हर साल 1.5 फीसदी की गिरावट आ रही है। इस पैटर्न को बेहतर ढंग से समझने के लिए, उन्होंने विभिन्न बहुतायत वाली श्रेणियों में प्रजातियों के रुझानों की तुलना की और पाया कि जो प्रजातियां समय श्रृंखला की शुरुआत में सबसे प्रचुर थीं, उनमें सबसे बड़ी औसत गिरावट देखी गई जो लगभग आठ फीसदी सालाना, जबकि दुर्लभ प्रजातियों में गिरावट कम आई।

सबसे अहम बात यह है कि पहले की प्रमुख प्रजातियों के नुकसान की भरपाई अन्य प्रजातियों में वृद्धि से नहीं की गई, जिसके दूरगामी प्रभाव हैं, प्रचुर प्रजातियां पक्षियों और अन्य कीट-भक्षी जानवरों के लिए मुख्य भोजन हैं, जो उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक बनाती हैं।

वैन किलिंक बताते हैं, सबसे आम प्रजातियों की गिरावट के जवाब में खाद्य जाल पहले से ही काफी हद तक फिर से संगठित हो रहे होंगे। ये प्रजातियां सभी प्रकार के अन्य जीवों और पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र कामकाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

विश्लेषण से स्पष्ट पता चलता है कि कम प्रचुर कीट प्रजातियों की तुलना में पूर्व में प्रचुर प्रजातियां लगातार सबसे अधिक कीटों को खो रही हैं। हालांकि, कम प्रचुर और दुर्लभ प्रजातियां भी नुकसान उठा रही हैं, जिससे स्थानीय प्रजातियों की संख्या में गिरावट आ रही है। अध्ययन में प्रजातियों की कुल संख्या में सालाना 0.3 फीसदी से कम की मामूली कमी पाई गई। इस गिरावट से पता चलता है कि सामान्य प्रजातियों के बड़े नुकसान के अलावा, कुछ दुर्लभ प्रजातियां स्थानीय स्तर पर विलुप्त हो रही हैं।

शीर्ष पर नए कीट आ रहे हैं जो खुद को सफलतापूर्वक स्थापित करने में कामयाब रहे। इनमें से अधिकांश नए आगमन स्थानीय रूप से दुर्लभ रहते हैं और अन्य पूर्व दुर्लभ कीड़ों की जगह लेते हैं, लेकिन कभी-कभी वे बहुत अधिक मात्रा में हो जाते हैं। आक्रामक एशियाई लेडीबीटल (हरमोनिया एक्सिरिडिस), जो अब पूरे यूरोप, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में आम है, ऐसा ही एक उदाहरण है।

शोधकर्ताओं ने कहा इन चीजों को जांचने के लिए और अधिक शोध आवश्यक है। हालांकि इस अध्ययन में स्पष्ट रूप से संभावित कारणों की जांच नहीं की गई है, लेकिन गिरावट हो सकता है जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण जैसे हाल के मानवजनित प्रभावों से जुड़ी हुई है, जिन्हें जैव विविधता हानि का प्रमुख कारण माना जाता है।

आइडीव के शोधकर्ता व अध्ययनकर्ता प्रोफेसर जोनाथन चेज बताते हैं, ऐसा लगता है कि कीड़े कई अन्य प्रजातियों की तुलना में अधिक प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि धरती पर मनुष्यों का वर्चस्व जारी है। अन्य अध्ययनों में, जिनमें हमारी टीम ने काम किया है, जानवरों और पौधों के कई अन्य समूहों में स्थानीय स्तर पर ऐसी विविधता में गिरावट नहीं पाई गई है।

हालांकि अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले हैं, लेकिन ये रुझान यूरोप और उत्तरी अमेरिका में कीटों के आंकड़े के प्रति पक्षपाती हैं। ऐसे में इनकी व्याख्या वैश्विक घटना के रूप में नहीं की जानी चाहिए। चेज कहते हैं, हमने जो पैटर्न देखा, वह कीड़ों पर लोगों के वास्तविक प्रभाव को मापने के लिए सबसे अच्छा मामला हो सकता है, वैज्ञानिकों ने इसे लाइफबोट या जीवन नौका प्रभाव कहा है।

ये गिरावट उन क्षेत्रों के लंबे समय के आंकड़ों में देखा गया जो काफी हद तक बरकरार रहे हैं, एक जीवन नौका की तरह, उन क्षेत्रों के बजाय जहां प्राकृतिक क्षेत्रों का मानव-प्रधान परिदृश्यों में बड़े पैमाने पर रूपांतरण हुआ है, जैसे मॉल और पार्किंग वाली जगहों में देखा गया।

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