2020 में आत्महत्याओं में 10 प्रतिशत की वृद्धि, सबसे अधिक 33,164 दिहाड़ी मजदूरों ने की आत्महत्या

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, खेती किसानी से जुड़े लोगों द्वारा आत्महत्याओं के आंकड़ों में भी वृद्धि हुई है

By Raju Sajwan
Published: Saturday 30 October 2021
Photo: Pixabay

साल 2020 में रोजाना कमाने वाले यानी दैनिक वेतनभोगी मजदूरों की आत्महत्या में वृद्धि हुई। 2019 के मुकाबले बेरोजगारों द्वारा आत्महत्या में भी वृद्धि हुई, हालांकि किसानों की आत्महत्या में कमी आई है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में 1,53,052 लोगों ने आत्महत्या की, जो 2019 के मुकाबले 10 प्रतिशत अधिक थी। 2019 में 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की थी।

रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अधिक आत्महत्याएं महाराष्ट्र (19,909) में दर्ज की गईं, इसके बाद तमिलनाडु में 16,883 आत्महत्याएं, मध्य प्रदेश में 14,578 आत्महत्याएं, पश्चिम बंगाल में 13,103 आत्महत्याएं और कर्नाटक में 12,259 आत्महत्याएं हुईं। कुल आत्महत्याओं की दृष्टि से देखा जाए तो इन पांच राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक आत्महत्याएं दर्ज की गई।

2020 पूरी तरह से कोविड-19 महामारी वर्ष रहा और साल के लगभग नौ महीने लॉकडाउन रहा। बावजूद इसके आत्महत्याओं में कमी की बजाय वृद्धि हुई। पिछले कुछ सालों से सबसे अधिक आत्महत्याएं दिहाड़ी कर रहे हैं। 2020 में भी यही ट्रेंड देखा गया, बल्कि पिछले सालों के मुकाबले इसमें और वृद्धि हुई।

रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 में सबसे अधिक आत्महत्याएं (24.6 प्रतिशत) दिहाड़ी मजदूरों ने की, जबकि साल 2019 में यह प्रतिशत 23.4 था। 2020 में 33,164 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की, जबकि 2019 में 29,092 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की।

2020 में 10,677 ऐसे लोगों ने आत्महत्या की, जो कृषि क्षेत्र से जुड़े थे। यानी कि 5,579 किसानों और 5,098 खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की। जबकि 2019 में 5,957 किसानों और 4,324 खेतिहर मजूदरों (कुल 10,281) ने आत्महत्या की।

डाउन टू अर्थ ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की पिछले पांच साल की रिपोर्ट्स का आकलन किया तो पाया कि 2015 में सबसे अधिक (19.1 प्रतिशत) स्वरोजगार करने वाले लोगों ने आत्महत्या की थी। जबकि दूसरे नंबर पर दैनिक वेतनभोगी मजदूर (17.8 प्रतिशत) आत्महत्या की। जबकि तीसरे नंबर पर कृषि क्षेत्र से जुड़े लोग थे। इस साल 23,799 दैनिक वेतनभोगियों और खेती व्यवसाय से जुड़े 12,602 लोगों ने आत्महत्या की।

2016 में भी आत्महत्या करने वालों में रोजाना कमाने वाले मजदूर दूसरे नंबर पर थे। हालांकि उनका प्रतिशत बढ़ा था। कुल में से 19.2 प्रतिशत आत्महत्या करने वालों में दिहाड़ी मजदूर ही थे। पहले नंबर पर अन्य व्यवसाय से जुड़े लोग थे। इस साल 25,159 दैनिक वेतनभोगी मजदूरों और खेती व्यवसाय से जुड़े 11,379 लोगों ने आत्महत्या की।

2017 में दैनिक वेतनभोगी मजदूरों ने सबसे अधिक आत्महत्या की। आत्महत्या करने वालों में कुल के मुकाबले इस साल 22.1 प्रतिशत दैनिक वेतनभोगी मजदूर थे। इस साल 28,737 मजदूरों ने आत्महत्या की, जबकि खेती किसानी से जुड़े लोगों की संख्या में कमी आई और उनकी संख्या 10,655 रही।

2018 में आत्महत्या करने वालों में दैनिक वेतनभोगी मजदूरों का प्रतिशत 22.4 रहा। इस 9.4 प्रतिशत बेरोजगारों ने आत्महत्या की, जबकि खेती किसानी से जुड़े लोगों की संख्या 7.7 प्रतिशत रही। संख्या की दृष्टि से बात करें तो 30124 दैनिक वेतनभोगी और खेती किसानी से जुड़े 10,349 लोगों ने आत्महत्या की।

किस राज्य में कितनी आत्महत्याएं

दैनिक वेतनभोगी मजदूरों की अगर बात करें तो सबसे अधिक तमिलनाडु में 6495, मध्य प्रदेश में 4945, महाराष्ट्र में 4176, तेलंगाना में 3831, गुजरात में 2754, आंध्र प्रदेश में 2501, केरल में 2496, कर्नाटक में 2373, छत्तीसगढ़ में 1964, राजस्थान में 1128, पश्चिम बंगाल में 895, असम में 789, पंजाब में 749, हरियाणा में 721, त्रिपुरा में 338, ओडिशा में 274, उत्तर प्रदेश में 245, उत्तराखंड में 119, हिमाचल प्रदेश में 142, बिहार में केवल 69, मेघालय में 66 दैनिक मजदूरी करने वालों ने आत्महत्या की।

खेती किसानी से जुड़े लोगों ने सबसे अधिक महाराष्ट्र में आत्महत्याएं की। यहां 4006 किसानों-खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की। इसके बाद कर्नाटक में 2016, आंध्र प्रदेश में 889, मध्य प्रदेश में 735, छत्तीसगढ़ में 537, तमिलनाडु में 477, तेलंगाना में 471, हरियाणा में 280, केरल में 398, पंजाब में 257, उत्तर प्रदेश में 172, गुजरात में 126, राजस्थान में 101, असम में 117, बिहार में 13, हिमाचल प्रदेश में 24, झारखंड में 17, सिक्किम में 16, ओडिशा में 7, मणिपुर में 1, मेघालय में 5, मिजोरम में 4 किसानों व खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की।

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