जलवायु परिवर्तन के सबूत : यूपी के 3 जिलों में 24  घंटे में 10000 फीसदी अधिक वर्षा, खरीफ फसल हुई बर्बाद

किसानों को मुआवजे के लिए सर्वे को लेकर सरकार और जिलों में कोई पहल अभी तक नहीं की गई है जबकि 33 फीसदी से अधिक नुकसान वाले को ही मुआवजे का प्रावधान है। 

 

By Vivek Mishra
Published: Thursday 06 October 2022
File Photo: CSE

2022 किसानों के लिए कहर बनकर आया है। अगस्त महीने तक सूखे की मार झेलने वाले उत्तर प्रदेश में मानसून की विदाई के वक्त अचानक हुई बेतहाशा वर्षा ने पानी का सैलाब ला दिया है। दशहरे के वक्त इतनी वर्षा का होना बुजुर्ग लोगों के याददाश्त में भी नहीं है। 24 घंटे के भीतर उत्तर प्रदेश के गोंडा, प्रतापगढ़ और चित्रकूट जिले में सामान्य से 10 हजार फीसदी अधिक वर्षा दर्ज की गई है। जबकि श्रावस्ती, अयोध्या, बाराबंकी और बस्ती जिले में सामान्य से 5 हजार से 9 हजार फीसदी तक अधिक वर्षा 24 घंटे के भीतर दर्ज की गई । अचानक हुई मूसलाधार वर्षा ने खासतौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में तबाही मचाई है, जिसके कारण पानी को तरसते रहे धान, गन्ना, मक्का और केले के खेत अब जलप्लावित हो गए हैं।

किसानों पर आई यह आपदा जलवायु परिर्तन का साफ संकेत दे रही है। किसानों को मुआवजे के लिए न ही सरकार की तरफ से कोई शासनादेश जारी किया गया है और न ही सर्वे के लिए लेखपाल खेतों तक पहुंच रहे हैं। गांव के प्रधानों की तरफ से उपजिलाधिकारियों को सूचित किया जा रहा है, लेकिन नुकसान का हिसाब खेतों से पानी उतरने के बाद ही संभव होगा। वहीं, भारतीय मौसम विभाग ने उत्तर प्रदेश में 8 अक्तूबर, 2022 तक भारी वर्षा की चेतवानी जारी की है।

6 अक्तूबर, 2022 को भारतीय मैसम विभाग की ओर से जारी जिलावार वर्षा आंकड़ों के मुताबिक श्रावस्ती में सामान्य 2.4 मिलीमीटर (एमएम) की तुलना में 176.8 एमएम वर्षा दर्ज हुई। यहां सामान्य से 7267 फीसदी अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई।

श्रावस्ती जिले के पटना खरगौरा के 52 वर्षीय किसान जोखन डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि उनके पास 7 बीघा खेत है जिसमें 5 बीघा खेत में अर्ली वेराइटी धान लगाया था, धान के दाने पक चुके थे, लेकिन इस वर्षा ने सब बर्बाद कर दिया है। अब खेतों सें पानी निकलने के बाद ही सही नुकसान पता चलेगा, लेकिन उम्मीद कम है कि धान बच जाए। जोखन कहते हैं कि उनके पास किसान बीमा भी नहीं है। ऐसे में सरकार की तरफ से यदि मुआवजे का प्रावधान किया जाएगा तभी कुछ राहत मिल पाएगी।

वहीं, श्रावस्ती, भिन्गा के एसडीएम प्रवेंद्र कुमार ने डाउन टू अर्थ से कहा कि बीते वर्ष शासनादेश में कहा गया था कि किसी खेत में 33 फीसदी से अधिक फसल नुकसान पर प्रति हेक्टेयर 4200 से 4800 रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन इस बार ऐसा कोई शासनादेश अभी तक नहीं आया है। सर्वे का काम भी अभी जिलाधिकारी की ओर से नहीं कहा गया है, जब जिलाधिकारी की तरफ से आंकड़े मांगे जाएंगे तब उन्हें दिया जाएगा।

दोआब में बसे पटना खरगौरा की प्रधान ममता पांडेय बताती हैं कि उनके गांव में 700 एकड़ खेत हैं जिनमें 500 एकड़ खेत पर धान की बुआई की गई थी। गांव की कुल आबादी 6000 जिसमें 98 फीसदी कृषक हैं और महज 10 लोगों का किसान बीमा कार्ड बना हुआ है। ऐसे में खेतों में फसल नुकसान काफी ज्यादा हो गया है, सर्वे के लिए उपजिलाधिकारी से दरख्वास्त की गई है।

वहीं, 6 अक्तूबर को सामान्य 3.4 एमएम की तुलना में 222.8 एमएम वर्षा यानी 10 हजार फीसदी अधिक वर्षा हासिल करने वाले क्षेत्र गोंडा में भी स्थिति खराब है। गोंडा के मनकापुर स्थित फिरोजपुर गांव में रहने वाले 71 वर्षीय प्रगतिशील किसान अतुल कुमार सिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में इतनी वर्षा का अनुभव कभी नहीं किया था।

वह बताते हैं कि  इस वर्षा का मतलब है कि धान और गेहूं के बीच लगाई जाने वाली फसल आलू और सरसों को अब किसान नहीं लगा पाएंगे। सिर्फ गेहूं के बल पर अब खेती नहीं की जा सकती है। लगातार फसलों का हो रहा नुकसान दरअसल जलवायु परिवर्तन का कारण है। न सिर्फ मौसम शिफ्ट हो रहा है बल्कि फसलों की अवधिचक्र भी शिफ्ट हो रही है। इसलिए खेतो में किसानों को अब विविधता लाना होगा। खासतौर से परवल जैसी सब्जी या फिर केले की खेती में उतरना होगा। तभी होने वाले इस नुकसान को कम किया जा सकता है।

बहराइच जिले में 6 अक्तूबर, 2022 को सामान्य 3.5 एमएम की तुलना में 75.6 एमएम वर्षा यानी सामान्य से 2061 फीसदी  अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई। बहराइच के रामगांव स्थित नेवादा गांव के किसान अनुभव चौधरी ने बताया कि उनके खेतों में दो बार गन्ने की फसल गिर गई। कुल 8 एकड़ के खेत में सितंबर में वर्षा होने के कारण गन्ने गिर गए थे जिन्हें लेबर के जरिए बंधवाने में कुल 40 हजार रुपए तक खर्च हुए। अब इस बार अक्तूबर में हुई वर्षा ने एक बार फिर से गन्ने को गिरा दिया है। इसका कोई मुआवजा भी नहीं है।

 

इस वर्षा से पहले पूरे प्रदेश में सूखे की घोषणा को लेकर रणनीति बनाई जा रही थी। 20 अगस्त, 2022 को राजस्व विभाग के राहत आयुक्त कार्यालय की ओर से मुख्यमंत्री को पेश किए गए एक दस्तावेज में बताया गया था कि 2020 में प्रदेश में 20 अगस्त तक 520.1 एमएम सामान्य वर्षा हुई थी, जबकि 2021 में 20 अगस्त तक सामान्य 520.1 एमएम से कम 504.1 एमएम वर्षा हुई थी, जबकि इस वर्ष 2022 में 20 अगस्त तक महज 284 एमएम वर्षा ही रिकॉर्ड की गई थी।

20 अगस्त तक उत्तर प्रदेश में 96.03 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई हो जाती है। इस लक्ष्य के सापेक्ष वर्षा कम होने के बावजूद 20 अगस्त तक पूरे प्रदेश में इस बार 93.22 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई हो गई थी। इसमें धान का लक्ष्य 5900 हजार हेक्टेयर था जबकि 20 अगस्त तक 96 फीसदी यानी 5716 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की बुआई हो गई थी। इसके अलावा मोटे अनाज और दलहन थे।

20 अगस्त को हुई बैठक में कहा गया था कि बुआई लक्ष्य के आसपास है लेकिन कम वर्षा के कारण प्रदेश में फसल को नुकसान की आशंका है। इस आशंका के मद्देनजर सूखे की रणनीति बन ही रही थी कि अचानक हुई भारी वर्षा ने फसल पर दोहरी मार दे दी है।

20 अगस्त को हुई बैठक में यह खुलासा भी हुआ था कि प्रदेश के 95 तहसीलों में वर्षा मापने के यंत्र ही नहीं है, जिसमें से 31 तहसीलों में व्यवस्था कराई गई थी। जब मौसम इतना अनिश्चित है तब वर्षा मापने वाले यंत्रों का न होना एक और बड़ी त्रासदी है।

उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 5 डॉप्लर रडार भी लगाए जाने की घोषणा हुई थी लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। 

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