हिमाचल प्रदेश में खाद का संकट, किसान-बागवानों की बढ़ी चिंता

सर्दियों में बर्फबारी के बाद सेब के बागों में चाहिए होती है खाद, पिछले साल के मुकाबले इस साल 22,598 मीट्रिक टन कम खाद की बिक्री हुई

By Rohit Prashar
Published: Monday 28 February 2022

फल राज्य हिमाचल प्रदेश में इन दिनों रसायनिक खाद की भारी कमी देखी जा रही है। खाद की यह कमी ऐसे समय में देखी जा रही है जब प्रदेश के दो लाख से अधिक सेब बागवानों की इसकी सबसे अधिक जरूरत है।

प्रदेश में सरकार हिमफेड के माध्यम से किसान-बागवानों तक खाद पहुंचाने का काम करती है। हिमफेड के आंकड़ों के अनुसार जहां पिछले साल प्रदेश में 74,604 मीट्रिक टन खाद पूरे साल में किसानों को वितरित की गई थी। जबकि अभी साल खत्म होने में केवल एक माह बचा है और प्रदेश में अभी पिछले साल के मुकाबले 22,598 मीट्रिक टन खाद की बिक्री हुई है।

बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हार्वेस्ट के बाद अगली फसल लेने से पहले सेब के पौधों को पोषक तत्वों की जरूरत रहती है। आजकल सेब के पौधों को खाद के माध्यम से पोषक तत्व उपलब्ध करवाने का सही समय है। यदि सही समय पर पौधों को खादें नहीं मिली तो इसका असर कम फ्लावरिंग, कम उत्पादन और निम्न गुणवत्ता के सेब के रूप में देखने को मिलेगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि किसान-बागवानों का सही समय मेें खाद उपलब्ध करवाए ताकि उन्हें नुकसान से बचाया जा सके।

किसान संघर्ष समिति के संयोजक संजय चौहान ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सरकार किसानों को समय पर खाद उपलब्ध करवाने में नाकाम रही है। जनवरी व फरवरी माह में हुई बेहतर बर्फबारी के पश्चात बागवानों को अपने बगीचे में प्राथमिकता से खाद डालने के कार्य करना है। परन्तु आज जिन खादों की आवश्यकता है सरकार इन्हें उपलब्ध नहीं करवा रही है और खुले बाजार में खादों की कीमतों में गत वर्ष की तुलना में भारी वृद्धि की गई है।

आजकल बगीचों में पोटाश,12:32:16 NPK 15:15:15 डालने का समय आ गया है, परन्तु कहीं पर भी यह खादें उपलब्ध नहीं है और अब मजबूरन बागवानों को खुले बाजार से निम्न गुणवत्ता वाली खादें जोकि कृषि व बागवानी विश्वविद्यालय या बागवानी विभाग द्वारा अनुमोदित नहीं है उन्हें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

इससे भविष्य में सेब के उत्पादन व उत्पादकता में कमी आएगी जिससे बागवानी का संकट और अधिक गहरा होगा और सेब की आर्थिकी की बर्बादी से प्रदेश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगा।

इसके अलावा किसान सभा ने खाद की कीमतों में भारी वृद्धि का भी विरोध जताया है। सभा का आरोप है कि पिछले साल जो कैल्शियम नाइट्रेट का 25 किलो का एक बैग 1100 ₹ से 1250 ₹ का मिल रहा था, वह अब 1300 ₹ से लेकर 1750 ₹ का मिल रहा है।
 
पोटाश का 50 किलो का एक बैग जो गत वर्ष 1150 ₹ में मिल रहा था, उसकी कीमत भी अब 1750 ₹ वसूली जा रही है। NPK 12:32:16  जिसकी कीमत गत वर्ष 1200₹ थी उसकी कीमत भी 1750 कर दी गई है बावजूद इसके न तो पोटाश खाद उपलब्ध है और न ही NPK 12:32:16 उपलब्ध है।
 
गौरतलब है कि पिछले साल हिमाचल प्रदेश स्टेट कॉपरेटिव मार्केटिंग एंड कंज्यूमर्स फेडरेशन (हिमफेड) के आंकड़ों के अनुसार यूरिया की 42,884 मीट्रिक टन बिक्री हुई थी जबकि अभी तक इसकी कमी के चलते केवल 2,9052 मीट्रिक टन बिक्री हुई है।
 
इसके अलावा एनपीके पिछले साल 11,230 मीट्रिक टन और 31 जनवरी तक 9,943 मीट्रिक टन, एनपीके 15ः15ः15 6,580 मीट्रिक टन और अभी तक 5,832 मीट्रिक टन और एमओपी पिछले साल के मुकाबले सबसे अधिक 4,042 मीट्रिक टन की कमी देखी जा रही है।
 
शिमला के बागवान प्रशांत सेहटा ने बताया कि इन दिनों बागवानों के लिए खाद की बहुत अधिक जरूरत होती है, लेकिन आजकल खाद खासकर पोटाश नहीं मिल पा रही है। जिससे बागवानों की चिंता बढ़ गई है।
 
चंबा भरमौर के बागवान ओम प्रकाश शर्मा का कहना है कि इस साल अच्छी बर्फबारी हुई है और सेब के पौधों की चिलिंग आवर की जरूरत पूरी हो गई है। इस साल फसल अच्छी होने की संभावना है, लेकिन खाद की कमी से उन्हें नुकसान का डर सताने लगा है।
 
प्रदेश में खाद की आपूर्ती का काम देखने वाली हिमफेड के चेयरमैन गणेश दत्त का कहना है कि विदेश से कच्चे माल की उपलब्धता न होने के चलते खाद बनाने वाली कंपनियों में खाद के निर्माण में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जिसकी वजह से प्रदेश में भी खाद की कमी देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र के साथ बात करके प्रदेश में खाद की आपूर्ति बढ़ाने के लिए प्रयास किए हैं।

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