मार्च-अप्रैल की गर्मी में गेहूं ही नहीं, आम-चिकन-अंडे-सब्जी के उत्पादन पर भी पड़ा असर

आईसीएआर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल की कम बारिश ने नुकसान को और बढ़ा दिया है

By Shagun
Published: Thursday 28 July 2022

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटयूट, आईसीएआर) की एक नई रिपोर्ट में इस साल मार्च और अप्रैल में झुलसाने वाली गर्म लू के चलते फसलों के नुकसान पर विस्तार से बताया गया है।

चूंकि गेहूं की पैदावार पर इसके असर और बाद में इस अनाज की कमी के बारे में पहले ही बात की जा चुकी है, इसलिए ताजा रिपोर्ट में भीषण लू के कारण हुए दूसरे नुकसानों पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें खराब वनस्पतियों और उनके मंद विकास, फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों के संक्रमण और फसलों के अलावा जानवरों तक को नुकसान पहुचांने वाले वायरस के संक्रमण शामिल हैं।

गौरतलब है कि इस साल मार्च और अप्रैल में न्यूनतम और अधिकतम तापमान में असामान्य वृद्धि के चलते देश के नौ राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में फसलों, फलों, सब्जियों और जानवरों का नुकसान हुआ था।

आईसीएआर की ‘हीट वेव 2022- कॉज, इम्पैक्ट्स एंड वे फॉरवर्ड फॉर इंडियन एग्रीकल्चर’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि लू के चलते रबी की फसलों - जैसे हरा चना, मक्का, चना, मटर, और सरसों के साथ-साथ आम, चकोतरा, सेब, बेर, अनार, नीबू, बंदगोभी, फूलगोभी, खीरा, करेला, टमाटर और भिंडी जैसी महत्वपूर्ण बागवानी फसलों में फलियों की खराब क्रमबद्धता, क्रत्रिम परिपक्वता, फूलों का गिरना और खराब परागण देखा गया।

गर्म मौसम ने मवेशियों और दुधारू जानवरों के शरीर का तापमान भी 0.5 डिग्री सेल्सियस से 3.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया था, जिसके चलते उनके दूध में 15 फीसदी तक कमी आ गई थी। वहीं गोशाला के जानवरों को बछड़ों की मौत की दर बढ़ने और त्वचा में संक्रमण का सामना करना पड़ा था।

लू के शुरुआती दो दिनों ने अंडे के उत्पादन को भी 10 फीसदी तक कम कर दिया था और फिर वातावरण के तापमान के आधार पर बाद के दिनों में इस गिरावट को लगभग 4-7 फीसदी पर बनाए रखा था। निर्धारित मानकों के हिसाब से 35 दिनों के एक मुर्गे को जब भूना जाता है तो उसका वजन दो किलोग्राम के करीब होता है जबकि लू के चलते यह 500 ग्राम से 600 ग्राम के बीच तक कम हो गया था।

भारत में, मार्च और अप्रैल 2022 के महीनों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान में असामान्य वृद्धि देखी गई थी, जिसमें कुछ स्थानों पर औसत से पांच डिग्री सेल्सियस से अधिक और देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से काफी अधिक से ज्यादा तापमान था।

उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में 122 सालों में सबसे गर्म अप्रैल का अनुभव किया गया, जिसमें औसत अधिकतम तापमान क्रमशः 35.9 और 37.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इस अवधि के दौरान, 36 मौसम विज्ञान उपखंडों में से 10 में सामान्य की तुलना में अत्यधिक तापमान 8 से 10.8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा, जबकि बारिश 60 से 99 फीसदी कम पाई गई।’

इसके नतीजे के तौर पर कुछ इलाकों खासकर हिमाचल प्रदेश और जम्मू- कश्मीर में सब्जियों की पैदावार में सामान्य की तुलना में 40 से 50 फीसदी की कमी आई। इसके अलावा, हरे चने की पैदावार में 20 फीसदी, मक्का में 18 फीसदी, पंजाब में किन्नू की उपज में 23 फीसदी तक और हरियाणा में चने की उपज में 19 फीसदी तक की कमी आई।

उत्तर प्रदेश में मार्च में सामान्य से लगभग पांच डिग्री ज्यादा तापमान के चलते आम की फसल को नुकसान हुआ। इसके चलते फल लगने की प्रक्रिया में गड़बड़ी, जिसे झुमका कहते हैं, वह आम की फसल में कई बार हुआ।

इसके अलावा खराब परागण के चलते भी आम कम आया। हिमाचल प्रदेश में रॉयल और स्पर दोनों प्रकार के सेबों में वायरल संक्रमण और पंखुड़ी गिरना देखा गया। इसी तरह, इस राज्य के चंबा, कुल्लू और बिलासपुर जिलों में बेर में कम फल, जबकि आम में विकृति, फूल और फलों की गिरावट देखी गई।

इसी तरह मध्य प्रदेश, झारखंड और बिहार के कई जिलों में आम के बाग, इस लू का शिकार हुए। राजस्थान के भलवाड़ा और सिरोही जिलों में अमरूद, नीबू और आम की पत्तियों और पौधों का सूखना देखा गया जबकि पाली जिले में अनार और नीबू के फूलों और फलों में गिरावाट देखी गई।

गेहूं की बात करें, तो रिपोर्ट कहती है कि लू से गेहूं की बाली में दाने आने और उसकी वृद्धि पर असर पड़ा, जिसके चलते इसकी पैदावार में 15 से 25 फीसदी तक की कमी आई। हालांकि उत्तर प्रदेश के झांसी जैसे कुछ इलाकों में यह गिरावट 32 से 34 फीसदी तक थी।

यहां तक कि समय पर बोई गई 75 फीसदी गेहूं की फसल (15 नवंबर को या उससे पहले बोई गई) भी तापमान में अचानक वृद्धि से प्रभावित हुई।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘ भारत में 2021-22 के सीजन में 3.1 करोड़ हेक्टेयर में गेहूं बोया गया था। इनमें से लगभग 75 फीसदी गेहूं ऐसा था, जो समय से बोया गया था। मार्च के दूसरे सप्ताह तक नार्थ-वेस्ट प्लेन जोन यानी एनडब्ल्यूपीजेड (हरियाणा, पंजाब, पश्चिम यूपी) और नार्थ-ईस्टर्न प्लेन जोन यानी एनईपीजेड (पूर्वी यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल) के तहत समय पर बोई गई फसल उत्कृष्ट स्थिति में थी, लेकिन अचानक तापमान में वृद्धि ने फसल को प्रभावित किया। देर से बोई गई फसल (लगभग 60-70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में) बुरी तरह प्रभावित हुई।’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ 2022 को ऐसे आदर्श उदाहरण के तौर पर पेश किया जाएगा, जिसमें उच्च तापमान और कम बारिश ने एक साथ कृषि-उत्पादन प्रणाली पर असर डाला, खासकर उत्तर-पूर्वी और मध्य भारत में यह देखा गया'।

Subscribe to Weekly Newsletter :