दोनों मॉनसून की मार झेलता है तमिलनाडु का किसान, बर्बाद हुई फसल

जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम के पैटर्न में हो रहे बदलाव का असर किसानों को अधिक झेलना पड़ रहा है। तमिलनाडु में इन दिनों इसका व्यापक असर देखने को मिल रहा है

Published: Tuesday 14 January 2020
तमिलनाडु के विलियानूर जिले में बेमौसमी बारिश की वजह से धान की फसल को नुकसान हुआ है। फोटो: विनय ठाकुर

विनय ठाकुर 

गांवों में एक कहावत है रजाई की याद रात में ठंड लगने पर ही आती है और सुबह सूरज की गर्मी उसे भुला देती है। धीमे धीमे होने वाले जलवायु परिवर्तन(क्लाइमेट चेंज) के साथ भी कुछ ऐसा ही है। इसकी याद हमें तभी आती है जब कई बड़ा प्राकृतिक हादसा हमें झकझोरता है। बाकी समय हमें यह समस्या वैज्ञानिकों बुद्धीजीवियों बौद्धिक जुगाली वाली कागजी समस्या लगती है। जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार किसानों पर पड़ रही है। अतिशय मौसमी घटनाओं से बचने के लिए किसान खुद तो कहीं दुबक भी लें, पर फसलों का क्या करें?

यूं तो देश के सभी इलाकों में किसानों को मौसम की मार झेलनी होती है, लेकिन तमिलनाडु के किसानों की हालत दो तलवार के बीच से बच निकलने की तरह है। यहां हमला दोनों मॉनसून की तरफ से हो सकता है। विलियानूर जिले के विनोद जो कॉलेज में पढ़ाते हैं पर साथ ही पुश्तैनी खेती बाड़ी भी देखते हैं बताते है कि अभी हमारे यहां धान की फसल लगी हई है। बेमौसम बारिश की वजह से धान की खड़ी फसल कटाई से पहले खेतों में सो(लेट) गयी । गीली होने व लेटी होने की वजह से इसका कटाई में काफी दिक्कत आएगी। आजक खेती के कामों के लिए मजदूरों के अभाव की वजह से किसान कटाई का काम मशीनों क जरिए करते हैं। अब बेमौसम की मार की वजह से कटाई और छंटाई की लागत बढ़ जाएगी और किसानों को नुकसान उठाना है।

क़डलूर जिले के सीमावर्ती इलाके अलानूर गांव जो त्रिची के पास है के पास है के वासुदेवन ने बेमौसम की बरसात से अलग तरह की समस्या बताई। उन्होंने बताया कि हमारे इलाकें में सिंचाई की काफी सुविधा नहीं है ज्यादातर लोगों सिंचाई के लिए बारिश के लिए मॉनसून पर ही निर्भर करते हैं। हमारे यहां लोगों ने कपास और मक्के की बुआई की है। मक्के की फसल पर बारिश का उतना असर नहीं होता जितना कपास की फसल को होता है। कपास की फसल में इसके फूलों व परागन की काफी भूमिका होती है। अगर फूल आने के बाद बेमौसम की तेज बारश हो गयी इसके काफी फूल झड़ जाते है जिससे पैदावार का काफी नुकसान हो जाता है। साथ ही खरपतवार तेजी से बढ़कर कपास के पौधे के साथ मिट्‌टी से नमी और पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं जो पौधों की बढत को प्रभावित करता है। इन खरपतवारों को हटानें में किसानों की लागत बढ़ जाती है। अगर कपास होने के बाद बारिश हो गयी तो खड़ी फसल का और भी ज्यादा नुकसान होता है।

अन्नामलाई विश्वविद्यालय में क्लाइमेट चेंज की वजह से होने वाले प्रभाव का अध्ययन करने वाले शोध केंद्र के निदेशक के.पी.पलनीवेलु के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्री जलस्तर में होने वाले आधे मीटर की बढ़ोत्तरी से 66000 एकड़ भूमि के जलमग्न होने का खतरा है। जिससे नागपटनम,तिरूवरू और तंजावूर जिले खास तौर प्रभावित होगे। विशेषज्ञों के अनुसार तमिलनाडू मे औसत तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है जिसका असर मॉनसून पर पड़ रहा है। दक्षिण पश्चिम मॉनसून से होने वाली बारिश में कमी होगी तो उत्तर पूर्वी मॉनसून से होने वाली बारिश में वृद्धि होगी। इससे दोनों मॉनसूनों से होनी वाली बारिश के अनुपात में बदलाव के  साथ ही आने वाले समय में समुद्री तूफानों की संख्या व प्रकृत में बदलाव होगा। संख्या में तो कमी आएगी पर उसकी तीव्रता में काफी वृद्धि होने वाली है।
 
पिछले दो-तीन सालों में तेनी और वरद समुद्री तूफान से हुई तबाही इस बात की तसदीक करती है। किसानों के साथ ही मछुआरे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। मन्नार की खाड़ी के टापूओं (द्वीप) ने जलसमाधि लेनी शुरू कर दी है और समुद्र ने मछुआरों के तटीय गांवों को अपने लपेट में लेना शुरू कर दिया है। एक ओर जहां नावों को समुद्र में उतारना लगातार जोखिम भरा हो रहा है वहीं उनके गांव के समुद्र में चले जाने का खतरा भी बढ़ रहा है। हाल में ही केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस) के अधीन काम कर रही संस्था नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च के एक आंकड़े के अनुसार देश में समुद्री तूफान के कारण तटीय कटाव की दर पश्चिम बंगाल (63 फीसदी) के बाद सबसे अधिक पांडिचेरी (57 फीसदी) में है। इसके बाद केरल (45 फीसदी) और तमिलनाडु (41 फीसदी) का नंबर आता है। 

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