भारत में 'ट्रिपल-डिप' ला नीना ने उत्तर भारत में हवा में सुधार किया, प्रायद्वीप क्षेत्र में बढ़ा प्रदूषण: अध्ययन

मुंबई में पीएम 2.5 के स्तर में 30 फीसदी की वृद्धि के साथ हवा की गुणवत्ता में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई, इसके बाद भारत के प्रायद्वीप शहर जैसे कोयंबटूर (28 फीसदी), बेंगलुरु (20 फीसदी), चेन्नई (12 फीसदी) रहे

By Dayanidhi
Published: Monday 19 February 2024
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, प्रामी.एपी90

अध्ययन में कहा गया है कि 2022-23 में दुर्लभ 'ट्रिपल-डिप' ला नीना ने उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता में सुधार किया जबकि प्रायद्वीप क्षेत्रों में प्रदूषण में वृद्धि हुई।

एक नए अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण घटी ट्रिपल-डिप ला-नीना घटना ने 2022-23 के सर्दियों के मौसम में एक अजीब प्रवृत्ति शुरू की, जहां उत्तर भारत में हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ, जबकि भारत के प्रायद्वीप में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई।

साल 2020-23 लगातार तीन सालों में ला नीना के एक अनोखे ट्रिपल-डिप घटना का दुनिया भर में समुद्र और जलवायु पर भारी असर पड़ा।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के प्रोफेसर गुफरान बेग के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किए गए अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया कि स्थानीय उत्सर्जन के अलावा, तेजी से बदलती जलवायु वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला एक बड़ा कारण है।

एल्सेवियर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि 2022-23 की सर्दियों के मौसम में भारत के प्रायद्वीप के शहरों में हवा की गुणवत्ता खराब हुई, लेकिन हाल के दशकों में देखे गए रुझानों के विपरीत, भारत के उत्तरी हिस्सों में हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ।

उत्तर भारतीय शहरों में, गाजियाबाद में प्रदूषण में 33 प्रतिशत की कमी के साथ सबसे बड़ा सुधार दर्ज किया गया, इसके बाद रोहतक (30 प्रतिशत) और नोएडा (28 प्रतिशत) का स्थान रहा। दिल्ली, सबसे गंभीर और चारों ओर से घिरा शहर होने के कारण, इसमें लगभग 10 प्रतिशत का सुधार हुआ है।

इसके विपरीत, मुंबई में पीएम 2.5 के स्तर में 30 प्रतिशत की वृद्धि के साथ हवा की गुणवत्ता में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई, इसके बाद अन्य भारतीय प्रायद्वीप के शहर जैसे कोयंबटूर (28 प्रतिशत), बेंगलुरु (20 प्रतिशत), चेन्नई (12 प्रतिशत) रहे।

कई उत्तर भारतीय शहर कुछ ही समय में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत निर्धारित पांच-वर्षीय लक्ष्य तक पहुंच गए। शोधकर्ताओं ने कहा कि इसका कारण क्या है यह एक पहेली बनी हुई है।

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक और सह-अध्ययनकर्ता आर एच कृपलानी ने कहा, साल 2022-23 की सर्दी एक असामान्य ट्रिपल-डिप ला नीना घटना के अंतिम चरण के साथ मेल खाती है, जो 21वीं सदी में पहली है। जलवायु परिवर्तन से प्रभावित इस घटना ने बड़े पैमाने पर हवा के पैटर्न को प्रभावित किया, जिससे उत्तर भारतीय शहरों में हवा की गुणवत्ता में सुधार करने में निर्णायक भूमिका निभाई।

उन्होंने कहा, इसके विपरीत, इससे भारत के प्रायद्वीप के शहरों में स्थितियां शांत हो गईं, सीमा पार प्रदूषण बढ़ गया और हवा की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई।

तेज उच्च उत्तरी हवाओं के तथा सतह के पास अपेक्षाकृत धीमी हवाओं के साथ-साथ प्रवाह को मजबूर किया, जिससे भारत के प्रायद्वीप में प्रदूषक फंस के रह गए और पीएम 2.5 की मात्रा में वृद्धि हुई। इसके विपरीत, कमजोर पश्चिमी विक्षोभ, अनोखे हवा के पैटर्न  ने बारिश, बादलों और तेज प्रसार के कारण उत्तर में हवा की गुणवत्ता में भारी सुधार हुआ।

वैज्ञानिकों द्वारा नया एनआईएएस-एसएएफएआर वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान मॉडल विकसित कर, रासायनिक-यातायात मॉडल को स्वदेशी रूप से विकसित आधुनिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम के साथ जोड़ा गया।

अध्ययनकर्ता ने कहा, हमारे निष्कर्ष 2023-24 की सर्दियों में हवा की गुणवत्ता के रूप में प्रमाणित हैं, जब ला नीना समाप्त हुआ, सामान्य स्तर लौट आया।

उन्होंने कहा, मौजूदा निष्कर्षों से पता चलता है कि हमें इस बात के प्रति सचेत रहने की जरूरत है कि वायु प्रदूषण की घटनाओं में चरम और असामान्य घटनाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन का संकेत दे रही हैं।

उन्होंने कहा, जब तक हम सीधे स्रोत पर मानवजनित उत्सर्जन के खतरे को कम करने के लिए लंबे समय की रणनीति पर ध्यान नहीं देते हैं, तब तक इस तरह के खुलासे, सारी आशंकाएं तेजी से बढ़ने वाली हैं।

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