कॉप28: विकसित देशों का अनकहा रुख, ‘हानि और क्षति फंड से अधिक न करें उम्मीद’
अमेरिका और सऊदी अरब को रोड़ा अटकाने वाला बताया जा रहा है। वहीं विकसित देशों की योजना 2050 तक जीवाश्म ईंधन का उपयोग जारी रखने की है
By Jayanta Basu, Lalit Maurya
Published: Wednesday 13 December 2023
12 दिसंबर, 2023 की सुबह तक कॉप-28 में ग्लोबल स्टॉकटेक पर हो रही चर्चा मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन में कटौती पर अटकी रही। वहीं अनुकूलन के मुद्दे पर भी ड्राफ्ट को कमजोर करने की कोशिश की गई। हालांकि वित्त पर कुछ हलचल जरूर हुई।
गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चर्चा के लिए पार्टियों के 28वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (कॉप-28) का आगाज 30 नवंबर 2023 को दुबई में हुआ था, जिसे 12 दिसंबर तक अंजाम पर पहुंचना था।
बता दें कि इस वार्ता के पहले ही दिन विकसित देशों ने हानि और क्षति से जुड़ी वित्तीय योजना पर सहमति जताते हुए एक समझौता करने का प्रयास किया था, जिससे दुबई शिखर सम्मेलन के सफल परिणाम को लेकर उम्मीदें जगीं थी। चल रही कठिन सौदेबाजी पर प्रकाश डालते हुए यूएनएफसीसीसी के कार्यकारी सचिव साइमन स्टिल ने सोमवार की सुबह कहा कि "हममें से किसी ने भी पूरी नींद नहीं ली है।" उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि "सभी मोर्चों पर जलवायु कार्रवाई को बढ़ाने के लिए वित्त आधार होना चाहिए।"
स्टिल ने उल्लेख किया कि जीएसटी पर एक नया महत्वपूर्ण दस्तावेज सुबह सवा नौ बजे अगले कुछ मिनटों में तैयार हो जाएगा। हालांकि अध्यक्ष की ओर से वास्तविक ड्राफ्ट शाम 4:30 बजे ही आ पाएगा, जो बंद दरवाजों के पीछे चल रही कठिन सौदेबाजी का संकेत देता है।
इस दस्तावेज में जीवाश्म ईंधन उपयोग में कटौती के कई प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। जिन पर निश्चित रूप से आने वाले कुछ घंटों और रात भर चर्चा की जाएगी। चीन के प्रमुख वार्ताकार झी झेनहुआ का कहना है कि, "मैं एक दशक से भी ज्यादा समय से जलवायु वार्ताओं का हिस्सा रहा हूं, लेकिन इतनी कठिन वार्ता शायद ही कभी देखी है।
निष्पक्षता और अंतर को दूर करने की कोशिश कर रहे विकसित देश
“हमने पहले ही दिन हानि और क्षति का फंड दे दिया है, इससे ज्यादा कुछ मत मांगिए", बातचीत में विकसित देशों का मूड यही लग रहा है। क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ ने सोमवार को बताया कि, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विकसित देश उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार कौन हैं और कौन इससे प्रभावित हो रहे हैं, उनके बीच के अंतर को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं।"
उनका आगे कहना है कि, "अमेरिका के नेतृत्व में विकसित देश, हानि और क्षति के 70 करोड़ डॉलर के फंड के बदले में ऐतिहासिक जिम्मेवारी, निष्पक्षता और वैश्विक अनुकूलन के लिए स्पष्ट लक्ष्यों के किसी भी उल्लेख को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। इससे विशिष्ट फंडिंग की जरूरतों का आकलन करना मुश्किल हो जाता है।"
विशेषज्ञ ने आगे बताया कि, ''साथ ही, कुछ लोग कार्बन स्टोरेज और कैप्चर (सीसीएस) के साथ परमाणु ऊर्जा जैसी संदिग्ध प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देकर जीवाश्म ईंधन के निरंतर उपयोग को सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं।''
वार्ता पर लम्बे समय से नजर रख रहे ट्रैकर ने संवाददाता को जानकारी दी है कि, “अध्यक्ष अब सीधे तौर पर ग्लोबल स्टॉकटेक के पाठ को देख रहे हैं। जो जीवाश्म ईंधन के मामले में प्रयोग की गई भाषा और नुकसान को कम करने के अन्य तरीकों के मुद्दे पर अटका है। वहीं कुछ विकसित देशों की मंशा 2050 तक जीवाश्म ईंधन के विस्तार की है। वास्तव में सऊदी अरब और अमेरिका जैसे देश बातचीत में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का आह्वान नहीं कर रहे हैं।“
विशेषज्ञ ने समझाया कि अनुकूलन के वैश्विक लक्ष्य पर, बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई है क्योंकि अमेरिका इसमें मुख्य रूप से रोड़ा बन रहा है। वे पेरिस समझौते से जुड़ना नहीं चाहते या साझा जिम्मेवारी और इसे कैसे हासिल किया जाए, इसके बारे में बात नहीं करना चाहते। वित्त संबंधी समझौते में भी कई समस्याएं और विकसित देश उसके केवल एक विशिष्ट भाग (2.1(सी)) के बारे में बात करना चाहते हैं, साथ ही वो प्राइवेट फाइनेंस पर दबाव बना रहे हैं।
बता दें कि जलवायु परिवर्तन के पेरिस समझौते का अनुच्छेद 2.1(सी) ग्रीनहाउस गैसों के उपयोग को कम करने के साथ-साथ इस तरह से विकास की दिशा में वित्तीय सहायता देने के महत्व पर प्रकाश डालता है जो जलवायु में आते बदलावों के अनुरूप उसे ढाल सकें। वहीं वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के एक विशेषज्ञ का कहना है कि, "अनुच्छेद 2.1(सी) की भाषा इस बारे में अस्पष्ट है कि वास्तव में इसमें क्या शामिल है।"
दूसरी ओर, हमने निष्पक्ष बदलावों पर चर्चा करने में कुछ प्रगति की है, लेकिन अभी भी कुछ असहमतियां हैं जिन्हें कोष्ठक से चिह्नित किया गया है।