पृथ्वी और खुद की सेहत के लिए भोजन की थाली में करें बदलाव

रेड मीट जैसे उत्पादों के सेवन में 50 प्रतिशत तक कमी लानी होगी, जबकि फलियां, मेवे, फल और सब्जियों की खपत में 100 फीसदी की बढ़ोतरी करनी होगी

By Dinesh C Sharma
Published: Thursday 17 January 2019

अपनी सेहत के साथ अगर आप पृथ्वी को भी स्वस्थ रखना चाहते हैं, तो डाइनिंग टेबल पर अभी से बदलाव शुरू कर दीजिए। पिछली करीब आधी सदी के दौरान खानपान की आदतों में विश्व स्तर पर बदलाव आया है और उच्च कैलोरी तथा पशु स्रोतों पर आधारित प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ा है। इस कारण मोटापा और गैर-संचारी बीमारियां बढ़ी हैं और पर्यावरण को नुकसान हुआ है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि खुद को स्वस्थ रखने के साथ अपने ग्रह को भी स्वस्थ रखना है, तो आहार के कुछ ऐसे मानक तय करने होंगे, जो अपनी सेहत के साथ-साथ पृथ्वी की सेहत के अनुकूल हों। मेडिकल शोध पत्रिका लांसटे में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन में पृथ्वी के अनुकूल ऐसे आहार की सिफारिश की गई है, जो मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ टिकाऊ विकास के लिए भी अच्छा हो।

शोधकर्ताओं के अनुसार, वैश्विक स्तर पर यदि आहार और खाद्य उत्पादन में बदलाव लाया जाए तो वर्ष 2050 और उससे भी आगे के लिए दुनिया के 10 अरब लोगों के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध हो सकता। लांसेट आयोग द्वारा यह अध्ययन किया गया है, जिसमें 16 देशों के 37 विशेषज्ञ शामिल थे।

इस अध्ययन के अनुसार, स्वास्थ्यप्रद भोजन में सब्जियां, फल, साबुत अनाज, दालें, फलियां, मेवे और असंतृप्त तेल मुख्य रूप से शामिल होने चाहिए। इसके अलावा, भोजन में समुद्री खाद्य पदार्थ, पॉल्ट्री उत्पाद, रेड मीट, प्रसंस्कृत मीट, प्रसंस्कृत चीनी, परिष्कृत अनाज और स्टार्च वाली सब्जियों की कम से कम मात्रा होनी चाहिए।

रेड मीट जैसे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक खाद्य उत्पादों के सेवन में 50 प्रतिशत तक कमी लानी होगी। दूसरी ओर फलियां, मेवे, फल और सब्जियों की खपत में 100 फीसदी की बढ़ोतरी होनी चाहिए। इस बदलाव के लिए बहु-क्षेत्रीय नीतियों के निर्माण और उन पर दृढ़ता से अमल करने का सुझाव दिया गया है।

लांसेट पत्रिका ने अपने संपादकीय में कहा है कि वैश्विक खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन के लिए कई स्तरों पर बदलाव करने होंगे, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी नीतियों का एकीकरण और नियमन शामिल है।

अध्ययनकर्ताओं में शामिल पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्रीनाथ रेड्डी के अनुसार, "अगले तीस वर्षों में भोजन की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए पोषण उपलब्ध कराने में सक्षम पर्यावरण के अनुकूल कृषि एवं खाद्य प्रणालियां अपनानी होंगी।"

रेड्डी के अनुसार, “फल, सब्जियों, मेवे, फलियों और अनाज के अलावा मछली या फिर पॉल्ट्री उत्पादों की संतुलित मात्रा के साथ कभी-कभार रेड मीट की अल्प मात्रा का उपयोग कर सकते हैं। पर, जिन देशों में रेड मीट का उपभोग अधिक होता है, वहां शाकाहारी खाद्य उत्पादों के सेवन को प्रोत्साहित करना होगा। भारत में दलहन आधारित प्रोटीन स्रोतों की उपलब्धता बढ़ाते हुए फलों और सब्जियों के उत्पादन, संरक्षण, प्रसंस्करण, आपूर्ति तथा खपत में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जबकि, चीनी की खपत को कम करना भी एक लक्ष्य होना चाहिए।”

इस अध्ययन में शामिल एक अन्य शोधकर्ता, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पौधों पर आधारित प्रोटीन और मांस के संयमित उपभोग पर आधारित हमारा पारंपरिक भोजन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ आहार के रूप में उभरा है। जैसा कि मैंने बार-बार कहा है, यह केवल मांस के बारे में नहीं है, बल्कि कितना खाया जाता है और कैसे उगाया जाता यह भी महत्वपूर्ण है। लांसेट आयोग ने भी अब इस बात पर अपनी मुहर लगा दी है।” (इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र

Subscribe to Weekly Newsletter :