600 से 800 ईस्वी तक तिब्बती साम्राज्य में भारी उठा-पटक के लिए जिम्मेवार रहा जलवायु परिवर्तन

अध्ययन के परिणामों से पता चला कि सातवीं से नौवीं ईस्वी के दौरान असामान्य रूप से गर्म और नमी वाली अवधि थी जिससे कृषि और पशुपालन पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पड़ा

By Dayanidhi
Published: Tuesday 18 July 2023
फोटो: आईस्टॉक

चीनी विज्ञान अकादमी के शोधकर्ताओं की अगुवाई में, एक शोध टीम ने मध्य तिब्बती पठार पर जियांगको झील की अलग-अलग तरह की तलछट का उपयोग करके पिछले 2,000 वर्षों के जलवायु रिकॉर्ड हासिल किए हैं।  

अध्ययन के मुताबिक, सातवीं से नौवीं ईस्वी के दौरान गर्म और नमी वाली जलवायु तथा उसके बाद की ठंड और शुष्कता तिब्बती साम्राज्य के उत्थान और पतन के अनुरूप पाई गई। तिब्बती साम्राज्य के इस उठा-पटक के लिए जलवायु परिवर्तन उन संभावित कारणों में से एक है। अध्ययन के निष्कर्ष साइंस बुलेटिन पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं

शोधकर्ताओं ने  तिब्बती पठार के इलाके की शुरुआती जांच के दौरान पाया कि, केंद्रीय तिब्बती पठार की एक झील, जियांगको में अलग-अलग तरह की तलछट बहुत अच्छी तरह से संरक्षित थी। शोधकर्ताओं के द्वारा पहले की वर्वे काउंटिंग और अन्य रेडियोमेट्रिक डेटिंग विधियों के माध्यम से, पिछले 2,000 वर्षों को कवर करने वाले एक मीटर तक के गुरुत्वाकर्षण कोर की समय सीमा निर्धारित की गई थी।

इसके बाद, शोधकर्ताओं ने तलछट पर उच्च-रिज़ॉल्यूशन एक्सआरएफ तत्वों की स्कैनिंग और कार्बोनेट कार्बन और ऑक्सीजन आइसोटोप का विश्लेषण किया। पिछले 2,000 वर्षों के तापमान और वर्षा रिकॉर्ड को अल्केनोन्स जैसे बायोमार्कर का उपयोग करके फिर से बनाया गया। परिणामों से पता चला कि सातवीं से नौवीं ईस्वी के दौरान असामान्य रूप से गर्म और नमी वाली अवधि थी।

क्या है एक्सआरएफ ?

एक्सआरएफ (एक्स-रे प्रतिदीप्ति) एक विश्लेषणात्मक तकनीक है जिसका उपयोग सामग्रियों की मौलिक संरचना को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। एक्सआरएफ विश्लेषक एक नमूने से उत्सर्जित फ्लोरोसेंट एक्स-रे को मापकर एक नमूने की रसायन विज्ञान का निर्धारण करते हैं जब यह एक प्राथमिक एक्स-रे स्रोत द्वारा उत्तेजित होता है।

शोधकर्ताओं ने इस अवधि की तुलना ऐतिहासिक साहित्य से की और पाया कि यह एकमात्र स्थानीय शासन, तिब्बती साम्राज्य के साथ मेल खाता है, जो उस समय तिब्बती पठार पर मौजूद था। गर्म और नमी वाली जलवायु और ठंडी और शुष्क जलवायु में परिवर्तन तिब्बती साम्राज्य की विदेश नीति में परिवर्तन के साथ अत्यधिक मेल खाती थी।

पारिस्थितिक आला मॉडल के साथ मिलकर, शोधकर्ताओं ने  सातवीं से नौवीं ईस्वी की गर्म और नमी वाली अवधि और उसके बाद की ठंड और शुष्क अवधि के दौरान पहाड़ी इलाके में जौ की खेती के क्षेत्र का सिमुलेशन या अनुकरण किया, जिसमें लगभग 108.8 लाख हेक्टेयर का अंतर पाया गया।

तिब्बती पठार के पारिस्थितिक रूप से नाजुक पर्यावरण पर, जलवायु परिवर्तन मानव गतिविधियों को रोकने वालों में से एक है। इस नवीनतम शोध के परिणाम से पता चलता है कि गर्म और नमी वाली जलवायु  पठार पर कृषि और पशुपालन के विकास को बढ़ावा देती है, जबकि ठंडी और शुष्क परिस्थितियां कृषि और पशुपालन पर बुरा प्रभाव डालती हैं।

जलवायु परिवर्तन ने तिब्बती साम्राज्य के विकास और पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शोधकर्ताओं के मुताबिक, आज तिब्बती पठार के गर्म होने और आर्द्रीकरण के साथ, अतीत में मानव-पर्यावरण संबंधों का अध्ययन करने से जलवायु परिवर्तन के प्रति आधुनिक प्रतिक्रियाओं पर भारी प्रभाव पड़ता हुआ दिखता है।

Subscribe to Weekly Newsletter :