जलवायु आपातकाल, कॉप-25: 2018 में भारत में हुई सर्वाधिक जलवायु संबंधित मौतें

चिंताजनक आंकड़े सामने रखने वाली यह रिपोर्ट मद्रिद में पेश की गई है। इस रिपोर्ट में लॉस एंड डैमेज व्यवस्था को लागू करने पर जोर दिया गया है

By Jayanta Basu
Published: Thursday 05 December 2019
उत्तराखंड में 2013 में आई आपदा की वजह से हजारों लोग मारे गए थे। फोटो: सोमा बासू

जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम के अत्याधिक अनियंत्रित होने से 2018 में भारत में सबसे ज्यादा 2,081 मौतें हुईं। यह कहना है, गैर लाभकारी संस्था जर्मनवॉच की तरफ से जारी की गई 'ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क 2020' रिपोर्ट का। दो दशक के दौरान इंसानी जीवन की क्षति और आर्थिक नुकसानों के मामले में भारत ने तीसरा स्थान पाया है। यह रिपोर्ट 1998 से 2018 के औसत आंकड़ों पर आधारित है।

रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल 1,282 मौतों को साथ जापान दूसरे स्थान पर रहा। 2018 जलवायु परिवर्तन के खतरों में रहने वाले देशों में भारत पांचवें स्थान पर रहा। पहले चार स्थानों पर जापान, फिलीपींस, जर्मनी और मैडागैस्कर रहे। 2017 में भारत इस सूची में 14वें पायदान पर था। इतना ही नहीं, 2018 में भीषण मौसमी घटनाओं के कारण 37,808 मिलियन डॉलर के आर्थिक नुकसान के साथ भारत दूसरे स्थान पर रहा। यह आंकड़ा 2017 में हुए नुकसान से लगभग तीन गुना ज्यादा है।

इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक वेरा कुन्जेल ने बताया कि 2018 में भारत कई तरह की भीषण मौसमी घटनाओं से प्रभावित हुआ। इसमें केरल में आई बाढ़, गज और तितली जैसे ट्रॉपिकल चक्रवात, भीषण गर्मी और लू शामिल हैं। केरल में आई बाढ़ को सौ साल में सबसे खराब बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सबसे गर्म 15 सालों में से 11 साल 2004 के बाद आए हैं। 2018 और 2019 में भारत में भीषण गर्मी पड़ी। 2018 की लू अब तक की सबसे लंबी रिकॉर्ड की गई लू है जिसने सैंकड़ों लोगों कि जान ली।

लंबे समय के लिए जलवायु संबंधित खतरों के घेरे में आने वाले देशों में पुएर्तो रीको सबसे आगे है। भारत इस सूची में 17 वें पायदान पर रहा। अनुमान है कि 2030 तक विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली घटनाओं के चलते 290-580 अरब डॉलर के बीच आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

विकसित देशों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं

रिपोर्ट के सह लेखक माइक विंगस ने कहा कि हालांकि विकासशील देश जलवायु परिवर्तन कि वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन पहली बार दो विकसित देशों- जापान और जर्मनी- ने जलवायु परिवर्तन के खतरे में आने वाले देशों में पहला और तीसरा स्थान पाया है। इतना ही नहीं दो दशक की अवधि में जलवायु संबंधित आपदाओं के चलते सर्वाधिक आर्थिक नुकसान झेलने वाले देशों में अमेरिका सबसे आगे है।

लॉस एंड डैमेज प्रणाली की जाए लागू

इस रिपोर्ट ने लॉस एंड डैमेज प्रणाली को जमीनी स्तर पर लागू करने की मांग की है। यह व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र के समझौते की प्रक्रिया का हिस्सा है जो कहती है की विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे विकासशील और अविकसित देशों का सहयोग करना चाहिए। इस सहयोग में फंड भी शामिल होने चाहिए, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से विकसित देश ही ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ने के जिम्मेदार हैं, जिनके चलते ऐसे भीषण मौसमी परिवर्तन होते हैं।

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