कॉप 27: ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पतले होने से समुद्र के स्तर में हो रही है वृद्धि: अध्ययन

बर्फ की चादर के पतले होने से इस सदी के अंत तक समुद्र के स्तर में 13.5 से 15.5 मिलीमीटर की वृद्धि हो सकती है, जो पिछले 50 वर्षों के दौरान पूरे ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पिघलने के बराबर है

By Dayanidhi
Published: Tuesday 15 November 2022

एक नए अध्ययन में पाया गया कि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का एक हिस्सा पहले की तुलना में और अधिक पतला हो रहा है, जिससे इस सदी के अंत तक समुद्र के स्तर में अधिक वृद्धि होने के आसार हैं

यह पूर्वोत्तर भाग के विशाल बर्फ के हिस्सा है, लेकिन यह गतिविधि अंटार्कटिका में ग्रीनलैंड और पृथ्वी की अन्य बर्फ की चादर पर कहीं और हो रही है।

यह चिंताजनक हैं, क्योंकि समुद्र के स्तर में वृद्धि होने से पहले ही तटों पर रहने वाले लाखों लोगों के लिए खतरा है जो आने वाले दशकों और सदियों में पूरी तरह  पानी में डूब सकते हैं।

वैज्ञानिकों ने पहले ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के किनारों पर गौर किया ताकि दुनिया भर में बढ़ते तापमान के कारण इनके तेजी से पिघलने की जांच की जा सके, जिसके लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग किया है।

लेकिन हाल के अध्ययन के अध्ययनकर्ताओं ने तट से 100 किलोमीटर से अधिक दूर की निगरानी की। उन्होंने जो पाया वह खतरनाक था, पतलापन ग्रीनलैंड के तट से 200 से 300 किलोमीटर तक फैला हुआ था।

अध्ययनकर्ता शफाकत अब्बास खान ने कहा, जो हम सामने होते हुए देखते हैं वह बर्फ की चादर के दिल में बहुत पीछे तक पहुंच जाता है। उन्होंने आगे बताया कि यह जो हो रहा है यह नया है, बड़े पैमाने पर बदलाव या समुद्र के स्तर के अनुमान बताते हैं कि स्तर बढ़ रहा है।

शोधकर्ताओं ने अधिक सटीक जानकारी इकट्ठा करने के लिए बर्फ की चादर पर जीपीएस स्टेशन स्थापित किए और उपग्रह के आंकड़ों और संख्यात्मक मॉडलिंग का भी इस्तेमाल किया। जिसने दुनिया भर के सभी समुद्र स्तरों की वृद्धि होने के अनुमानों के बदलने की आशंका वाले आंकडे का एक नया संग्रह जारी किया।

शोध पूर्वोत्तर ग्रीनलैंड आइस स्ट्रीम (एनईजीआईएस) में आयोजित किया गया था, जिसमें सह-अध्ययनकर्ता मैथ्यू मोरलिघेम के अनुसार लगभग 12 प्रतिशत ग्रीनलैंड शामिल है।

अध्ययन में यह पाया गया कि बर्फ की चादर के पतले होने से इस सदी के अंत तक समुद्र के स्तर में 13.5 से 15.5 मिलीमीटर के बीच बढ़ सकती है, जो पिछले 50 वर्षों के दौरान पूरे ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पिघलने के बराबर है।

रिपोर्ट में पाया गया, मौजूदा जलवायु मॉडल के अनुमान की तुलना में पूर्वोत्तर ग्रीनलैंड आइस स्ट्रीम (एनईजीआईएस) से छह गुना अधिक बर्फ का नुकसान  होने के आसार हैं।

बर्फ की चादर के आंतरिक हिस्से के पतलेपन का एक कारण गर्म महासागरीय धाराओं की घुसपैठ है, जिसके कारण 2012 में एनईजीआईएस का अस्थायी विस्तार ढह गया।

उस घटना ने बर्फ के प्रवाह को तेज कर दिया है और तेजी से बर्फ के पतले होने की लहर शुरू कर दी है जो ऊपर की ओर फैल गई है।

नासा के अनुसार, ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर वर्तमान में पृथ्वी के महासागरों के बढ़ने का मुख्य कारक है, जिसमें आर्कटिक क्षेत्र बाकी ग्रह की तुलना में तेज दर से गर्म होता है।

पिछले साल जलवायु विज्ञान पर एक ऐतिहासिक रिपोर्ट में, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने कहा कि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर अधिकतम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत समुद्र के स्तर को 2100 तक बढ़ाने में 18 सेंटीमीटर तक का योगदान देगी।

विशाल बर्फ की चादर, जो कि दो किलोमीटर मोटी है, दुनिया भर में समुद्रों को कुल सात मीटर (23 फीट) से अधिक ऊपर उठाने के लिए पर्याप्त जमा हुआ पानी है।

शोधकर्ता अब ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका पर अन्य ग्लेशियरों को देखने के लिए अपने तरीकों को बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं, कुछ नए आंकड़ों या जो एक साल में जो उपलब्ध हो सकते हैं।

पूर्व-औद्योगिक समय से पृथ्वी की सतह औसतन लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस गर्म हो गई है, जिससे लू या हीटवेव से अधिक तीव्र तूफान बढे हैं। पेरिस जलवायु समझौते के तहत, देशों ने बढ़ते तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे सीमित करने पर सहमति जताई थी।

विश्व के नेता वर्तमान में मिस्र के शर्म अल-शेख में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता (कॉप 27) के लिए बैठक कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य हानिकारक उत्सर्जन को कम करना और एनवायरनमेंट के अनुकूल विकासशील देश की अर्थव्यवस्थाओं के लिए धन को बढ़ावा देना है।

खान ने कहा कि ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के पतले होने को रोकना लगभग असंभव होगा, लेकिन कम से कम सही नीतियों के साथ इसे धीमा किया जा सकता है।

कॉप 27 जलवायु वार्ता में नेताओं को एक संदेश में उन्होंने कहा, मुझे उम्मीद है कि वे कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) में कमी करने पर जल्द से जल्द सहमत होंगे। यह अध्ययन नेचर में नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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