ग्लोबल वार्मिंग का लक्ष्य तय करने के लिए अमीर देशों को बदलनी होंगी आर्थिक नीतियां

नए शोध से पता चलता है कि जलवायु संबंधी मौजूदा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक परिदृश्यों पर विचार करने की आवश्यकता है, खासकर उच्च आय वाले देशों को।

By Dayanidhi
Published: Wednesday 11 August 2021
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

आज दुनिया जलवायु संकट की वास्तविकता का सामना कर रही है। नागरिक, सामाजिक आंदोलन और सरकारें इस बात से जूझ रही हैं कि कैसे इससे निपटा जाए। लेकिन अभी तक सार्वजनिक बहस ज्यादातर नीतिगत विकल्पों तक ही सीमित रही है।

एक अंतर्राष्ट्रीय शोध में वैश्विक जलवायु मॉडल से पता चलता है कि वर्तमान विश्वव्यापी आर्थिक नीतियां उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग के लक्ष्यों से दूर हैं। यह शोध यूनिवर्सिटी ऑटोनोमा डी बार्सिलोना (आईसीटीए-यूएबी) के पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान की अगुवाई में किया गया है।

यह शोध दर्शाता है कि मौजूदा विकास आधारित आर्थिक परिदृश्य भविष्य में ऊर्जा के बढ़ते उपयोग और कार्बन कैप्चर और स्टोरेज तकनीकों के उपयोग पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। जो कि अभी तक व्यावसायिक पैमाने के आधार पर सही नहीं हैं। शोध मौजूदा मॉडलों में विविधता के लिए कहता है और पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित जलवायु और उत्सर्जन दायित्वों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक विकास के बाद के परिदृश्यों पर विचार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

विकास आधारित आर्थिक परिदृश्य यह मानते हैं कि आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रगति करने के लिए राष्ट्रों को वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि करके अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को बढ़ाना जारी रखना चाहिए। इसके बाद इससे ऊर्जा की मांग में वृद्धि होती है और कार्बन उत्सर्जन में हद से ज्यादा वृद्धि हो जाती है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर पेरिस समझौते के ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो इस तरह के विकास में बदलाव लाने की जरूरत है।

आईसीटीए-यूएबी शोधकर्ता जियोर्जोस कैलिस कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को कम करने के मौजूदा परिदृश्य अप्रमाणित तकनीकों और हमारी अर्थव्यवस्थाओं की बेहतर क्षमता पर निर्भर करते हैं, लेकिन सामाजिक और आर्थिक बदलावों की जरूरतों पर गौर नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए नकारात्मक उत्सर्जन के प्रश्न को ही लें।

अधिकांश परिदृश्य यह मानते हैं कि भारत के आकार की भूमि को जैव-ऊर्जा वृक्षारोपण में बदलना पूरी तरह से संभव है। फिर भी यह मान लेना असंभव है कि अमीर देश किसी भी तरह अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाना बंद कर सकते हैं, भले ही इस तरह के विकास से पर्यावरण ही प्रभावित क्यों न हो रहा हो।

अन्य रणनीतियां - जैसे कि प्रत्यक्ष तौर पर वायुमंडल से कार्बन कैप्चर और भंडारण करना जो भारी मात्रा में बिजली की खपत करती हैं, जिससे ऊर्जा आपूर्ति में होने वाले कार्बन उत्सर्जन को रोकने (डीकार्बोनाइज) में कठिनाइयां पैदा होती हैं।

नए शोध से पता चलता है कि मौजूदा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक परिदृश्यों पर विचार करने की आवश्यकता है। अब उच्च आय वाले देशों के लिए विकास के बाद के आर्थिक मॉडल का अनुसरण करने की मांग बढ़ रही है, जो सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और मानवीय जरूरतों और बेहतर जीवन स्तर को प्राथमिकता देते हैं।

शोधकर्ता बताते हैं कि विकास के बाद की नीतियां एक स्थिर अर्थव्यवस्था बनाए रखती हैं और आर्थिक विकास के बिना आबादी की सामाजिक जरूरतों को पूरा करती हैं। एक उदाहरण के रूप में, स्पेन कुछ प्रमुख सामाजिक संकेतकों जैसे जीवन प्रत्याशा में अमेरिका से बेहतर प्रदर्शन करता है, जबकि स्पेन की प्रति व्यक्ति जीडीपी अमेरिका से 55 फीसदी कम है। यह शोध प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविदों द्वारा किया गया है और नेचर एनर्जी में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ता परिवहन, उद्योग, कृषि, निर्माण और शहर नियोजन जैसे क्षेत्रों में नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता पर जोर देते हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के शोधकर्ता जेसन हिकेल कहते हैं इनमें उत्पाद की वारंटी, मरम्मत के अधिकार, खाद्य अपशिष्ट को कम करना, औद्योगिक खेती के तरीकों पर निर्भरता कम करना, नए निर्माण पर रखरखाव को बढ़ावा देना और मौजूदा इमारतों की ऊर्जा दक्षता में सुधार करना शामिल है।

आईसीटीए-यूएबी के शोधकर्ता अल्जोसा स्लैमर्सक बताते हैं कि हम खतरनाक जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण का प्रस्ताव करते हैं जो कि डायस्टोपियन (कल्पनाओं का एक ऐसा राज्य या समाज जहां बहुत अन्याय हो रह हो) 'टेक्नोफिक्सेस' की सफलता पर निर्भर नहीं करता है।

उन्होंने कहा कि अमीर देशों के लिए विकास के बाद का समय आर्थिक विकास से दूर जाने और मानवीय जरूरतों और कल्याण के प्रावधान पर ध्यान केंद्रित करने, जैसे कि असमानता को कम करना, जीवनयापन मजदूरी सुनिश्चित करना, पूर्ण रोजगार बनाए रखने के लिए कार्य सप्ताह को छोटा करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, परिवहन के लिए सार्वभौमिक पहुंच की गारंटी देना, ऊर्जा, पानी और किफायती आवास प्रदान करना आदि।

शोधकर्ता यह भी बताते हैं कि कैटेलोनिया के जंगलों में लगी आग जलवायु आपातकाल का सिर्फ एक पहलू है। यह तब और भी बदतर होने वाली है जब कि हम इस असहज वास्तविकता का सामना करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। हमें खतरनाक जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था, हमारी ऊर्जा प्रणाली और हमारी जीवन शैली को मौलिक रूप से बदलना होगा।

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