भाग 5 : कॉप 28 से आगे का रास्ता

प्राकृतिक गैस, स्वेच्छा कार्बन बाजार जैसे “संक्रामक” ईंधन और निजी क्षेत्र वित्त की मिथकीय भूमिका की समस्या से प्रबलता से निपटना होगा।

By Avantika Goswami
Published: Monday 01 January 2024
फोटो स्रोत: unfccc.int/cop28

दुबई में हुए जलवायु परिवर्तन पर 28वें कॉन्फ्रेंस (कॉप 28) का परिणाम क्या रहा, किन मुद्दों पर वार्ताएं हुई। इस पर डाउन टू अर्थ ने विस्तृत रिपोर्ट तैयार की, जिसे पांच भागों में प्रस्तुत किया जा रहा है। अब तक आपने पढ़ा, भाग 1 : जानिए यहां कॉप 28 रहा कितना सफलभाग 2 : यहां जानिए कॉप 28 के अहम फैसले और देशों की राय , भाग 3 : कॉप 28 में उत्सर्जन को खत्म करने के लिए क्या बनी रणनीति, यहां जानिए । चौथी कड़ी में आपने पढ़ा: भाग 4 : यहां जानिए कॉप 28 में जलवायु वित्त का क्या हुआ, कौन से फैसले 2024 के लिए टले । आज पढ़ें अंतिम कड़ी :  

 

विकसित और विकासशील की विभाजनरेखा पर अवस्थित एक देश द्वारा आयोजित काॅप 28 के सम्मेलन में जो परिणाम सामने आये, उन्हें ध्यान में रख कर विचार किया जाए तो बीते कॉप सम्मेलनों की तरह यह कॉप सम्मेलन भी न तो पूरी तरह सफल रहा और न ही बहुत सार्थक सिद्ध हो पाया। 

समापन सत्र में शामिल होने वाले विभिन्न देशों ने जो वक्तव्य दिए उनके अनुसार यह सम्मेलन एक सतर्कतापूर्ण और सोचा-विचारा मसौदा था।

बांग्लादेश ने कहा “पहली बार ऐसा हुआ कि हम सभी अपनी-अपनी सहज स्थितियों से से बाहर आकर जटिल स्थितियों को व्यापकता के साथ देख रहे थे।” वहीं, वेनेजुएला ने कहा “सम्मेलन की कमियों को स्वीकार किया गया। साथ ही जीवाश्म ईंधनों के मामले में विकसित देशों को आगे बढ़ कर नेतृत्व करने की आवश्यकता पर बल दिया गया हालांकि इसे मसौदे में नहीं दिखाया गया है।” भारत का रुख  यह रहा कि जब काॅप महत्वाकांक्षी कामों की रुपरेखा तैयार कर रहा है, तब वह चाहता है कि इन निर्णयों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन के माध्यम से वास्तविकता का रूप दिया  जाना चाहिए। 

भारत के पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा “आगे का सफर तय करने से पहले यह स्वीकार किये जाने की जरूरत है कि जलवायु-न्याय के मामले में सबके साथ समानतापूर्ण व्यवहार किया जाएगा।”  इसमें कोई संशय नहीं है कि जीवाश्म ईंधन पर ज़रूरी सवाल - मसलन ऋण संकट और जलवायु से जुडी महत्वाकांक्षाओं के लिए वित्तीय मदद को कार्बन अवशोषण और भंडारण के अतिरिक्त ग्रीन वाश जैसे मसलों से भी  टकराना होगा।

प्राकृतिक गैस, स्वेच्छा कार्बन बाजार जैसे “संक्रामक” ईंधन और निजी क्षेत्र वित्त की मिथकीय भूमिका की समस्या से प्रबलता से निपटना होगा।

और चूंकि जीवाश्म ईंधन की समाप्ति की सुस्पष्ट चरणबद्धता और समयसीमा के अभाव में जीएसटी परिणाम अत्यधिक त्रुटिपूर्ण हैं, ऐसे में आईईए के पास पहले से यह कार्यक्रम है कि इस दशक में जीवाश्म ईंधन की मांग अपने शीर्षतम बिंदु पर होगी।

जीवाश्म ईंधन उद्योग इस सत्य से बखूबी परिचित हैं कि हरित तकनीक कीमतों को कम करने और विस्तृत अनुकूलन के सन्दर्भ में इस दौड़ में आगे है। यह बात महत्वपूर्ण है कि “जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने” की आवश्यकता और स्वीकार्यता द्वारा निर्मित इस गतिशीलता का पूरा उपयोग नहीं होने की स्थिति में इस प्रक्रिया में और विलंब हुआ है। काॅप 29 की अध्यक्षता अजरबैजान के जिम्मे है, जो कि खुद एक गैस और तेल उत्पादक देश है। ऐसे में आशा है कि वह अपने उत्तरदायित्वों का  भलीभांति  निर्वहन करने से ही पूरी तरह सफल  होगा।

जलवायु-न्याय की दृष्टि से हमें अच्छी तरह यह पता है कि क्या कुछ करने की आवश्यकता है। अमीर और प्रदूषण फैलाने वाले देशों को वरीयता के क्रम पर अपनी अर्थव्यवस्था को कार्बन-मुक्त करना होगा। साथ ही यह  प्राथमिकता में रखना होगा कि वह जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता को धीरे धीरे घटाएं।

विकसित देशों को  विकासशील देशों को वही साधन उपलब्ध कराने होंगे ताकि अपने विकास के लक्ष्यों की बलि चढ़ाए बगैर वे भी यह काम अधिक क्रमबद्धता के साथ कर सकें।  विकासशील देशों को शमन और अनुकूलन के घरेलू उपायों को खोजने के लिए अधिक तत्पर होना होगा, और अगले काॅप सम्मेलन से पहले अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की रूपरेखा बनानी होगी।

विकसित देशों को अगले काॅप को “फाइनेंस कॉप” का नाम देना होगा, जहां जलवायु वित्त पर सामूहिक और मात्रा-निर्धारित लक्ष्य निश्चित किया जाएगा। 2024 का वर्ष सिद्धांत को व्यावहारिकता का रूप देने की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण वर्ष होगा।

समाप्त 

Subscribe to Weekly Newsletter :