क्या होती हैं ग्रीनहाउस गैसें, धरती पर बढ़ते तापमान के लिए कैसे हैं जिम्मेवार?

मौजूदा आंकड़ों को देखें तो वातावरण में मौजूद सीओ2 का स्तर 415.88 पार्टस प्रति मिलियन पर पहुंच चुका है, जोकि पिछले 6.5 लाख वर्षों में सबसे ज्यादा है

By Lalit Maurya
Published: Thursday 01 April 2021

जलवायु परिवर्तन की इस श्रंखला के पिछले भाग में हमने इस बारे में जानने का प्रयास किया था कि जलवायु परिवर्तन क्या होता है और किस तरह वो इंसानों को प्रभावित कर रहा है। इस भाग में हम जलवायु परिवर्तन के बारे में कुछ और तथ्यों को जानने की कोशिश करेंगे।

क्या होती है ग्रीनहाउस गैसें?

ग्रीनहाउस गैसें जिन्हें जीएचजी के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। यह गैसें तापमान में हो रही वृद्धि के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार होती हैं। यदि वातावरण में मौजूद 6 प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों को देखें तो उनमें कार्बनडाइऑक्साइड (सीओ 2), मीथेन (सीएच 4), नाइट्रस ऑक्साइड (एन 2ओ), हाइड्रोफ्लूरोकार्बन (एचएफसी), परफ्लूरोकार्बन (पीएफसी), सल्फर हेक्साफ्लोराइड (एसएफ 6) शामिल हैं।  यह गैसें तापीय अवरक्त सीमा के भीतर के विकिरण को अवशोषित और करती हैं जो ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए जिम्मेवार होता है।

जलवायु परिवर्तन के लिए कैसे जिम्मेवार हैं यह ग्रीनहाउस गैसें

जैसे-जैसे वातावरण में इन ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है या यह कहें की इन गैसों का आवरण और मोटा होता जा रहा है वो जरुरत से ज्यादा ऊष्मा को रोक रहीं हैं। जिस वजह से धरती पर गर्मी और तापमान बढ़ रहा है। (अधिक जानकारी के लिए देखें इस श्रंखला का पिछला भाग)

जब वातावरण में पहले से मौजूद हैं यह गैसें तो आखिर समस्या कहां है?

औद्योगिक क्रांति के बाद से इंसान बहुत अधिक मात्रा में जीवाश्म ईंधन और अन्य स्रोतों से इन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहा है। हम मनुष्यों ने बहुत ही कम अवधि में बहुत ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कर दिया है जिसकी प्राकृतिक तरीके से सफाई नहीं की जा सकती। इससे गैसों के उत्सर्जन और उसे हटाने के बीच का जो संतुलन था वो बिगड़ गया है। वही असंतुलन जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेवार है।  

क्या होती है कार्बन डाइऑक्साइड? किस स्तर पर पहुंच चुकी है यह गैस? 

कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), एक महत्वपूर्ण हीट-ट्रैपिंग, ग्रीनहाउस गैस है, जो मानव गतिविधियों जैसे वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन के जलने के साथ-साथ सांस छोड़ने और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के जरिए वातावरण में फैलती है।

यदि 15 फरवरी 2021 तक जारी आंकड़ों को देखें तो इसका स्तर 415.88 पार्टस प्रति मिलियन पर पहुंच चुका है, जोकि पिछले 6.5 लाख वर्षों में सबसे ज्यादा है। पिछले 171 वर्षों मानवीय गतिविधियों के चलते वातावरण में मौजूद इसके स्तर में 1850 की तुलना में करीब 48 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। यह वृद्धि कितनी ज्यादा है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इतनी वृद्धि तो पिछले 20000 वर्षों में प्राकृतिक रूप भी नहीं हुई है।

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