एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल का कार्यकाल खत्म, ट्रिब्यूनल ने पांच साल में निपटाए 16 हजार मामले
एनजीटी के अधिवक्ताओं ने कहा जिन मामलों का निपटारा किया गया है उसका मतलब यह नहीं है कि सभी मामलों में पर्यावरणीय न्याय भी किया गया है।
By Vivek Mishra
Published: Thursday 06 July 2023
2010 में एनजीटी की स्थापना के बाद से जस्टिस आदर्श कुमार गोयल तीसरे चेयरमैन थे। इससे पहले जस्टिस स्वतंत्र कुमार का कार्यकाल 19 दिसंबर 2012 से 19 दिसंबर 2017 तक और एनजीटी के पहले चेयरमैन जस्टिस लोकेश्वर सिंह पंटा का कार्यकाल 18 अक्तूबर, 2010 से 31 दिसंबर 2011 तक रहा।
4 जुलाई, 2023 को ट्रिब्यूनल ने अपनी वेबसाइट पर बर्ड आई व्यू नाम से एनजीटी की एक परफॉरमेंस रिपोर्ट अपलोड की। इस रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल (जुलाई 2018 से जुलाई 2023) के दौरान दिए गए 127 प्रमुख आदेशों और 35 मामलों जिनमें पॉल्युटर पेज प्रिंसिपल का प्रयोग किया गया। नोट में मामलों के जल्दी निपटारे के लिए प्रशासनिक और प्रक्रियात्मक पहल को भी सराहा गया।
नोट में कहा गया है कि मामलों के जल्दी निपटारे के साथ साइट और ग्राउंड विजिट व हितधारकों से बातचीत और सत्यापन के बाद संयुक्त समितियों की ओर से दी गई जांच रिपोर्ट का भी महत्व रहा।
ट्रिब्यूनल ने महत्वपूर्ण मामलों में गंगा-यमुना के प्रदूषण की निगरानी व स्वतः संज्ञान लिए गए डंपसाइट व फैक्ट्री में पर्यावरण सुरक्षा के अभाव में होने वाली मौतों का भी जिक्र किया है। इसके अलावा नोट में देशभर में सीवेज व कूड़ा कचरा उपचार में कमी के मामले में करीब 80 हजार करोड़ रुपए पर्यावरणीय जुर्माना तय करने का भी जिक्र किया है।
इसके अलावा पतंगबाजी में इस्तेमाल होने वाले जानलेवा सिंथेटिक मंझे पर प्रतिबंध, डंपसाइट फायर पर विभिन्न नगर निकायों पर लगाए गए जुर्माने जैसे मामले भी प्रमुख रहे।
इस नोट में ताजातरीन आदेश का भी जिक्र किया गया है। इसमें ग्रेट निकोबार आईलैंड में परियोजना को दिए गए पर्यावरण मंजूरी की वैधता का भी मामला शामिल है। इस मामले में पूर्वी बेंच द्वारा एक समिति गठित की गई है जो पर्यावरण मंजूरी की वैधता की जांच करेगी।
पांच साल के उपलब्धियों की इस रिपोर्ट की आलोचना भी हो रही है। एनजीटी के अधिवक्ताओं का कहना है इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि कितने मामलों को रद्द कर दिया गया। जिन मामलों का निपटारा किया गया है उसका मतलब यह नहीं है कि सभी मामलों में पर्यावरणीय न्याय भी किया गया है। यह भी देखा जाना चाहिए था कि एनजीटी के दिए गए फैसलों में कितने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जाकर टिक सके।