मजा से सजा: अब लॉकडाउन लुभाता नहीं, डराता है
कोविड-19 महामारी के कारण जब स्कूल बंद हुए तो बच्चों के लिए यह स्कूलों से ‘मुक्ति’ की तरह था लेकिन अब वे इस ‘मुक्ति’ से ऊब चुके हैं। महामारी ने पढ़ाई और उनके जीवन को किस प्रकार पटरी से उतारा है, बता रही हैं - प्रियाशा बनर्जी, दिल्ली पब्लिक स्कूल, इंदिरापुरम में दसवीं की छात्रा
Published: Monday 23 August 2021
अब मैं अपने दोस्तों के साथ स्कूल नहीं जा रही हूं। कुछ हफ्ते बाद मेरा स्क्रीन-टाइम काफी बढ़ गया। मेरे नियमित स्कूल के बाद मुझे ट्यूशन जाना होता था और उसके बाद स्कूल और ट्यूशन दोनों का बहुत सा होमवर्क करना पड़ता था। इसी तरह कुछ महीने बीत गए। सच कहूं तो यह हताश करने वाला होता जा रहा था। हर दिन जागने के बाद सबसे पहले यही पता चलता था कि कोविड मामलों की संख्या या तो बढ़ रही है या घट रही है। इसी बीच हमने अपने परिवार में एक नए सदस्य को जोड़ने का फैसला किया। पिछले साल अगस्त में हमें एक कुत्ता मिला। इसने निश्चित रूप से चीजों को बहुत बेहतर बनाया। हमारे घर का माहौल सजीव हो गया।
सितंबर तक मेरे परिवार के सभी सदस्यों और मेरे लिए घंटों कंप्यूटर के सामने बैठना और ऑनलाइन क्लास और मीटिंग करना सामान्य हो गया था। ऑनलाइन कक्षाएं निश्चित रूप से कठिन हैं। मेरे शिक्षक मुझे प्रोजेक्ट देते रहे और धीरे-धीरे उनका अंबार लग गया क्योंकि मैं समय पर उन्हें पूरा नहीं कर पाई। 2020 का पूरा साल इसी तरह गुजरा। पूरे साल घर पर रहना बिल्कुल मजेदार नहीं रहा।
इस दौरान कुछ अच्छी चीजें भी हुईं। जैसे, हमने परिवार के साथ अधिक समय गुजारा। मैंने शास्त्रीय नृत्य सीखा और पश्चिमी नृत्य में भी सुधार किया। मैंने तस्वीरों की एडिटिंग भी शुरू कर दी और उनसे वॉलपेपर बनाने की कला सीखी।
मुझे उम्मीद थी कि 2021 बेहतर साबित होगा। लेकिन मुझे लगता है कि यह तो और बुरा है। पूरे साल ऑनलाइन पढ़ाई करने के बाद मुझे ऑफलाइन परीक्षा देनी पड़ी। जब मैं स्कूल में गई, तब मुझे एहसास हुआ कि इस पूरे लॉकडाउन के दौरान मैं शांत और रिजर्व स्वभाव की हो गई हूं। मैंने केवल तीन दोस्तों से ही बात की। पहले मैं बहुत से लोगों से बात किया करती थी। इन मौजूदा हालात में अजीब सा लगता है। राहत की बात यह है कि मैं अपने परिवार के साथ हूं लेकिन दुख इस बात का है कि मैं कहीं बाहर नहीं जा सकती। लेकिन हमारे लिए रास्ता ही कहां बचा है, क्यों?