स्मार्ट सिटी मिशन की हालत खस्ता, 21 प्रतिशत फंड ही खर्च हुआ

जिन 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाना है, उनमें से केवल 22 शहरों में ही स्मार्ट सड़कें और 15 शहरों में ही स्मार्ट सौर ऊर्जा की व्यवस्था हो पाई

By Bhagirath
Published: Wednesday 12 June 2019

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने 2015-16 में स्मार्ट सिटी मिशन की जोर-शोर से शुरुआत की थी। इस मिशन के तहत 100 स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की गई। चार साल बाद यह मिशन अपने लक्ष्य से भटकता प्रतीत हो रहा है। स्मार्ट सिटी के लिए आवंटित कुल फंड में केवल 21 प्रतिशत ही खर्च किया जा सका है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा जारी “स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2019” रिपोर्ट के अनुसार, इस मिशन के तहत 2015-16 में 1,496.2 करोड़ रुपए, 2016-17 में 4,598.5 करोड़ रुपए, 2017-18 में 4,509.5 करोड़ रुपए और 2018-19 में 6,000 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ। यानी स्मार्ट सिटी मिशन के लिए 2015-16 से 2018-19 तक कुल 16,604.2 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया। इनमें से केवल 3,560.22 करोड़ रुपए ही खर्च किए जा सके। जिन 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाना है, उनमें से केवल 22 शहरों में ही स्मार्ट सड़कें और 15 शहरों में ही स्मार्ट सौर ऊर्जा की व्यवस्था हो पाई है।

क्यों थी स्मार्ट सिटी की जरूरत

भारत के शहरों में आबादी का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। 2050 तक शहरी आबादी में 4.16 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में करीब 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में बसती है। अनुमान है कि 2030 तक कुल जनसंख्या में शहरी आबादी की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत हो जाएगी। इस आबादी के लिए भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के विकास की जरूरत है। स्मार्ट सिटी का विकास इसी दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है।
 

मिशन की कछुआ चाल

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कई अहम परियोजनाओं का काम होना है। इसके तहत स्मार्ट रोड, स्मार्ट सौर ऊर्जा, वाइब्रेंट अर्बन स्पेस, स्मार्ट वाटर, निजी सार्वजनिक साझेदारी और स्मार्ट सिटी सेंटर स्थापित किए जाने हैं। इन तमाम परियोजनाओं पर काम बेहद धीमी गति से चल रहा है।

स्मार्ट रोड: सुरक्षित और सुविधाजनक कनेक्टिविटी के लिए स्मार्ट रोड बनाए जाने हैं। इसका मकसद सभी लोगों को फायदा पहुंचाना, हादसों में कमी लाना, ट्रांजिट ओरिएंटेड विकास को बढ़ावा देना और लोगों को खुली जगह उपलब्ध कराना है। 58 शहरों में स्मार्ट रोड का काम शुरू हुआ लेकिन केवल 22 शहरों में ही यह पूरा हो पाया।

स्मार्ट सौर ऊर्जा : स्मार्ट सिटी में यह सुनिश्चित किया जाना है कि कम से कम 10 प्रतिशत ऊर्जा की जरूरतें सौर ऊर्जा से पूरी हों। साथ ही कम से कम 80 प्रतिशत इमारतें एनर्जी एफिशिएंट और ग्रीन होनी चाहिए। 36 शहरों में यह काम शुरू हुआ लेकिन केवल 15 में ही यह पूरा हो सका।

वाइब्रेंट अर्बन स्पेस : स्मार्ट सिटी के अंतर्गत सार्वजनिक स्थल जैसे स्क्वायर, वाटरफ्रंट, पार्क, धरोहर और परंपरागत बाजार विकसित किए जाने हैं। 35 शहरों में इन पर काम शुरू हुआ पर 19 शहरों में ही पूरा हो सका।

स्मार्ट वाटर: स्मार्ट सिटी में पानी की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें आईसीटी (सूचना एवं संचार तकनीक) का इस्तेमाल करके सप्लाई किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता सुधारनी है, लीकेज नियंत्रित करनी है ताकि पानी की बर्बादी रोकी जा सके और चौबीसों घंटे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी है। 54 शहरों में इस पर काम शुरू किया लेकिन 23 शहरों में ही यह व्यवस्था अब तक हो पाई है।

निजी सार्वजनिक साझेदारी : स्मार्ट सिटी में चल रही तमाम परियोजनाओं में से 21 प्रतिशत निजी सार्वजनिक साझेदारी (पीपीपी) मॉडल से पूरी होनी हैं। ऐसी परियोजनाएं 46 शहरों में शुरू हुईं लेकिन काम 25 शहरों में ही पूरा हुआ।

स्मार्ट सिटी सेंटर : ये सेंटर ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जहां से शहर की सभी एजेंसियों की जानकारी एकत्रित की जा सकती है, उनका विश्लेषण किया जा सकता है और योजनाकार नीति निर्माण में उसका उपयोग कर सकते हैं। 44 शहरों में स्मार्ट सिटी सेंटर बनाने का काम शुरू हुआ लेकिन काम 16 का पूरा हुआ।

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