शिमला में क्यों हुई इतनी भारी तबाही?

विशेषज्ञों का कहना है कि शिमला की कैरिंग कैपेसिटी खत्म हो चुकी है, ड्रेनेज सिस्टम के ऊपर हो रहे निर्माण पर रोक लगनी चाहिए

By Rohit Prashar
Published: Friday 18 August 2023
मॉनसून के चालू सीजन में शिमला में भारी नुकसान हुआ है। फोटो- रोहित पराशर

पहाड़ों की रानी के नाम से पहचाने जाने वाले शिमला शहर में इन दिनों प्राकृतिक आपदाओं का कहर देखने को मिल रहा है। पिछले 4 दिनों में शिमला शहर में तीन बडे़ भूस्खलन की घटनाएं हुई। अभी तक 22 लोगों के शव बरामद कर लिए गए हैं, जबकि दो दर्जन से अधिक लोगों की मलबे में दबे होने की आशंका अभी भी जताई जा रही है। शहर के 37 भवनों को अनसेफ घोषित किया जा चुका है इसमें शहरी विकास विभाग का निदेशालय भी शामिल है।

शिमला शहर में बढ़ रही इन भूस्खलन की घटनाओं को देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि शिमला शहर की भार सहने की क्षमता (केरिंग कैपेसिटी) खत्म हो चुकी है, जिसकी वजह से अब शहर के विभिन्न क्षेत्रों में इस तरह की घटनाएं हर साल देखने को मिल रही हैं।

सिटी डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान और हैजर्ड रिस्क एडं वेलबरलिटी अस्सेस्मेंट की रिपोर्ट में भी शिमला शहर में निर्माण कार्य को सुनियोजित तरीके से करने, ग्रीन एरिया को बढ़ाने की बात कही गई है।

इसके अलावा इस रिपोर्ट में शिमला शहर के 33 फीसदी हिस्से को लैंडस्लाइड की दृष्टि से हाई रिस्क पर रखा गया है, जबकि 51 फीसदी हिस्से को मॉडरेट और केवल 16 फीसदी हिस्से को कम खतरनाक बताया गया है।

इतना ही नहीं, इस रिपोर्ट में भूस्खलन के लिए समरहिल, बालूगंज और टूटीकंडी वाले इलाके को ज्यादा संवेदनशील बताया गया है और अभी हाल ही में सोमवार को इन्हीं तीन इलाकों में भूस्खलन की वजह से ज्यादातर नुकसान देखा गया है।

गौरतलब है कि 35 वर्ग किलोमीटर दायरे में बसा शिमला शहर अंग्रेजों द्वारा 16 हजार लोगों के लिए बसाया गया था लेकिन वर्तमान में शिमला शहर में सवा दो लाख से अधिक लोग रह रहे हैं। इतना ही नहीं, पर्यटन नगरी और प्रदेश की राजधानी होने के चलते यहां हजारों लोग रोजाना आते हैं। 

शिमला नगर निगम के पूर्व में डिप्टी मेयर रहे और इंपैक्ट एडं पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के रिसर्च फैलो टिकेंद्र पंवर का कहना है कि शिमला शहर 7 पहाड़ियों के ऊपर बसा हुआ है और शहर में पानी के निकासी के ज्यादातर जगहों पर निर्माण हो चुके हैं या निर्माण का काम चल रहा है। इससे पानी की निकासी सही से नहीं हो पा रही है और आपदाएं बढ़ रही हैं।

टिकेंद्र कहते हैं कि हैजर्ड रिस्क एडं वेलबरलिटी अस्सेमेंट रिपोर्ट में भी पानी के निकासी के स्थानों को खुला रखने और इनमें निर्माण न किए जाने की सिफारिश की गई है।

शिमला शहर में अभी भी चार ऐसे स्थान हैं जहां बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। इनमें हाईकोर्ट एरिया, विधानसभा के पास वाली सड़क, प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल आईजीएमसी और लकड़ बाजार से संजोली वाला क्षेत्र शामिल है।

भूकंप में जा सकती हैं 20 हजार से अधिक जानें
शिमला जिला भूकंप की दृष्टि से सिस्मिक जोन 4 के हाई रिस्क एरिया में आता है। इतना ही नहीं, सिटी डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान में शिमला शहर के ज्यादातर इलाके इसी जोन में आते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यदि शहर में भूकंप आता है तो इसमें 20,466 लोगों की जानें जा सकती हैं।

रिपोर्ट में रिहायशी मकान भूकंप की ज्यादा जद में आने का अंदेशा जताया गया है। चूंकि शिमला शहर में ज्यादातर भवन एक दूसरे से सटे हुए हैं जिससे यहां आपदा की स्थिति में ज्यादा नुकसान हो सकता है।

एक अनुमान के अनुसार शिमला शहर में 10 हजार से अधिक भवन अवैध तरीके से बनाए गए हैं और इन भवनों को नगर निगम की ओर से पास नहीं किया गया है। 

जिला शिमला आपदा प्रबंधन योजना रिपोर्ट के अनुसार शिमला शहर का 25 फीसदी हिस्सा सिंकिंग जोन में आता है। शिमला शहर में कई ऐसे सिंकिंग जोन चिन्हित हैं, जहां लगातार भू धंसाव देखा जा रहा है। इनमें रिज, लकड़ बाजार, रिवोली, गै्रंड होटल, ऑकलेंड स्कूल एरिया, धोबीघाट, लदाखी मोहल्ला, क्लार्क होटल शामिल हैं। 

जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर डॉ सुनील धर ने बताया कि जिस तरह से लैंड यूज चेंज हो रहा है, उसकी वजह से हरित आवरण कम हो रहा है। उसका असर लैंडस्लाइड के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा वे कहते हैं कि पर्यावरण में आ रहे बदलावों की वजह से बारिश पर भी असर पड़ा है अब एकदम बहुत अधिक बारिश देखने को मिल रही है जिसकी वजह से ढलानें अनस्टेबल हो रही हैं और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं।

हर साल करोड़ों का नुकसान 
पिछले सात सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो शिमला में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 2015 में 3.25 करोड़, 2016 में 4.16 करोड़, 2017 में 11.2 करोड़, 2019 में 7.48, 2020 में 3.38, 2021 में 13.80 और 2022 में 5.27 करोड़ का नुकसान हुआ। जो इस साल कई गुणा बढ़ना तय है।

पर्यावरणविद एवं वरिष्ठ पत्रकार अश्वनी शर्मा कहतें हैं कि कई स्थानों पर 60 डिग्री की ढलान पर पांच मंजिल से ऊपर के मकान बनाए गए हैं। पानी की निकासी न होने और नालों के ऊपर बनाने से घरों के अंदर लगातार पानी जा रहा है और उनमें नमी बढ़ने से वे बारिश में भरभरा कर गिर रहे हैं।

किसी भी शहर में ओपन स्पेस होना बहुत जरूरी है लेकिन शिमला शहर में ओपन स्पेस बिल्कुल भी नहीं हैं लोगों ने घरों से घर सटाकर बनाए हैं जिससे खतरा और बढ़ जाता है। वे कहतें हैं कि आज जो घटनाएं शिमला शहर में हो रही हैं उनके पीछे मुख्य कारण भवन निर्माण को रेगुलेट करने वाली संस्थाएं नगर निगम और टीसीपी विभाग पूरी तरह जिम्मेवार है।

टिकेंद्र कहते हैं कि आईपीसीसी की रिपोर्ट में हिमालयन क्षेत्र में बसे राज्यों में एक्स्टीम इवेंट्स की घटनाएं बढ़ने के बारे में बताया गया है और ये घटनाएं स्पष्ट रूप से बढ़ती दिख भी रही हैं। इसलिए हमें अभी से सतर्क होते हुए अभी से पर्यावरण के अनुकुल तकनिकों को अपनाना शुरू कर देना चाहिए। 

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