रोटी, कपड़ा, मकान और वैक्सीन की राजनीति

सस्ते अनाज की तरह अब वैक्सीन भी चुनावी हथकंडा बन गया है

By Richard Mahapatra
Published: Friday 23 October 2020
बिहार का चुनाव घोषणा पत्र जारी करती केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण: फोटो https://www.facebook.com/bjp4bihar

भारत में महामारी के बीच पहला चुनाव बिहार में हो रहा है। एक तरफ जहां सभी लोग संक्रामक बीमारी कोविड-19 से बचने और सुरक्षा उपायों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने इसे चुनावी मुद्दा बना दिया है। पार्टी ने घोषणा की है कि अगर वह सत्ता में आई तो बिहार के सभी लोगों को मुफ्त टीका लगाया जाएगा। बीजेपी ने जरूर सोचा होगा कि इस घोषणा से उसे राजनीतिक लाभ मिलेगा।

बीजेपी की इस घोषणा ने वैक्सीन को घोषणापत्र का मुख्य बिंदु और चुनावी मुद्दा बनाया है। धरती की सबसे बड़ी और भीषण महामारी के वक्त यह अपेक्षित भी है। वैक्सीन का चुनावी घोषणापत्र में शामिल होना बताता है कि महामारी ने हमारी राजनीतिक व्यवस्था को किस हद तक प्रभावित किया है।

अब तक परंपरागत चुनावी मुद्दे- रोटी, कपड़ा और मकान रहे हैं, लेकिन अब इसमें वैक्सीन भी शामिल हो गया है। हमारे देश में 80 लाख मामले सामने आ चुके हैं और हम सभी इस वायरस के बचाव के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। इस संबंध में किया गया वादा सभी लुभाएगा। इस बात की भी पूरी संभावना है कि यह अन्य सभी मुद्दों पर भारी पड़े।

बिहार के लिए बीजेपी की घोषणा के तुरंत बाद तमिलनाडु और मध्य प्रदेश ने भी इस मुद्दे को लपक लिया और बिहार जैसी घोषणा कर दी। इन दोनों राज्यों में भी 28 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं।

हर तरह का हो-हल्ला हमने उस वक्त भी नहीं देखा था जब भारत चेचक, पोलिया और कालरा से जूझ रहा था। इन बीमारियों के संक्रमण को खत्म या नियंत्रित करने के भारत के प्रयासों की दुनियाभर में सराहना की गई थी। भारत ने तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन बीमारियों से निपटने के लिए अपनी पीठ थपथपाई थी।

कोविड-19 महामारी जैसी आपातकालीन परिस्थितियां राजनीतिक दलों और उनकी राजनीति को हमेशा से प्रभावित करती रही हैं। इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि आपदाओं और आपातकालीन घटनाक्रमों ने कैसे राजनीतिक दलों के लिए उर्वर जमीन तैयार की।

स्पेनिश फ्लू महामारी (1918-20) के बाद दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों ने यूनिवर्सल पब्लिक हेल्थ की तरफ ध्यान दिया। इस महामारी ने बता दिया था कि गरीब और अमीर दोनों की जान को खतरा है और उसकी रक्षा की जानी चाहिए। इसी को देखते हुए पश्चिमी देशों के राजनीतिक दलों ने ऐसा पब्लिक हेल्थ सिस्टम खड़ा कर दिया, जो सबको लुभाता है।

1943 में पड़े बंगाल के अकाल ने भारत में राजनीतिक प्राथमिकता को आकार दिया। भारत सरकार (अंतरिम) के पहले खाद्य एवं कृषि मंत्री ने 15 अगस्त 1947 को ध्वजारोहण करते हुए भूख को देश की सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती माना था। समय-समय पर पड़े सूखे और अकाल चलते भारत भूख और खाद्य असुरक्षा से जूझता रहा। 1966 में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भयंकर सूखा पड़ा। फसल खराब होने से फिर खाद्य असुरक्षा मंडराने लगी। अगले साल 1967 में आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने “रोटी, कपड़ा और मकान” का लोकप्रिय नारा दिया। उस वक्त पहली बार चुनावी घोषणापत्र में सस्ते भोजन और काम की योजनाओं को जगह मिली। इन्हीं नारों और वादों के दम पर उनकी कांग्रेस पार्टी को दोबारा सत्ता मिली।   

अब जब बिहार में मुफ्त वैक्सीन की घोषणा बीजेपी ने कर दी है, तब यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि मुफ्त वैक्सीन का वादा सिर्फ बिहार के लिए ही क्यों? और वह भी जब पार्टी सत्ता में आएगी। इस घोषणा के कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने छोटे से संदेश में सभी को वैक्सीन के लिए आश्वस्त किया था। अब इस बात की लड़ाई है कि सबसे पहले वैक्सीन किसे और कब मिलेगी। वैश्विक स्तर पर हम वैक्सीन के राष्ट्रवाद को लेकर सजग हैं। बहुत से देश अपनी ताकत का इस्तेमाल करके अपनी आबादी के लिए वैक्सीन हासिल करने की जुगत में हैं। ऐसे में वे लोग इससे वंचित रह सकते हैं जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं हैं। क्या इसका यह मतलब है कि वैक्सीन चुनावी प्राथमिकता बन रहा है और भारत उप राष्ट्रवाद का गवाह बनेगा? 

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