क्यों बिहार में कोल प्लांटों के बंद होने का स्वागत होना चाहिए?

बिहार सरकार ने वैकल्पिक ऊर्जा का लक्ष्य तय किया है, लेकिन क्या इसे हासिल करने के लिए गंभीर है

By Pushya Mitra
Published: Monday 11 October 2021
Photo: Pixabay

नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) ने बिहार में अपने दो पावर प्लांट की दो इकाईयों को बंद करने का फैसला किया है। इनमें से एक मुजफ्फरपुर स्थित कांटी थर्मल पावर की एक 110 मेगावाट की इकाई है, तो दूसरी बरौनी एनटीपीसी की 110 मेगावाट की ही एक और इकाई है।

इन इकाईयों के बंद होने की खबर ऐसे वक्त में आयी है, जब बिहार कोयले की कमी की वजह से घोर बिजली संकट का सामना कर रहा है। इसलिए जब यह खबर सामने आयी तो लोगों को लगने लगा कि पहले से ही विद्युत उप्तादन के मामले में पिछड़े बिहार को इस फैसले से गंभीर नुकसान पहुंच सकता है।

लोगों ने एनटीपीसी से इस फैसले पर फिर से विचार करने की अपील कर डाली। मगर स्वच्छ ऊर्जा के पैरोकार मानते हैं कि इस फैसले से बिहार को नुकसान के बदले लाभ ही होगा। बिहार सरकार अगर इस अवसर का इस्तेमाल गैर पारंपरिक ऊर्जा को बढ़ाने की दिशा में करे तो स्वच्छ ऊर्जा के मामले में उसे सफलता मिल सकती है।

मीडिया में आयी खबरों से जो सूचना मिली है, उसके मुताबिक एनटीपीसी ने मशीन पुरानी होने, उसकी वजह से खर्च और प्रदूषण दोनों के बढ़ने के कारण इन दोनों इकाईयों को बंद करने फैसला लिया है।

इसकी वजह यह भी बतायी जा रही है कि महंगी होने की वजह से बिहार सरकार ने इनसे बिजली लेने का करार खत्म कर लिया है। यहां की बिजली राज्य को पांच रुपये प्रति यूनिट की पड़ने लगी थी। सरकार के पास नवीनगर पावर प्लांट से सस्ती बिजली मिलने का विकल्प था। हालांकि इस फैसले के बाद राजद ने राज्य सरकार पर हमला किया है। राजद सांसद मनोज कुमार झा ने ट्वीट करके इस फैसले का विरोध किया है।

इस खबर पर टिप्पणी करते हुए बिहार में स्वच्छ ऊर्जा के सवाल पर तीन दशकों से सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक अनिल प्रकाश कहते हैं कि बिहार में एनटीपीसी की कई ऐसी इकाईयां हैं, जो काफी पुरानी हो गयी हैं। जो लगातार प्रदूषण फैला रही हैं और आसपास के लोगों के जीवन के लिए संकट बन रही हैं।

इनमें कहलगांव का एनटीपीसी भी है, जो 29 साल पुराना हो गया है। ऐसे सभी कोल पावर प्लांट को बंद करने की जरूरत थी। खुद केंद्र सरकार ने भी 25 साल से पुराने कोल पावर प्लांटों को बंद करने और उसे सोलर प्लांट में बदलने का नियम बनाया है। इसकी वजह सिर्फ बढ़ता प्रदूषण ही नहीं, बढ़ती लागत भी है।

अनिल प्रकाश कहते हैं कि कोल पावर प्लांट को बंद कर सरकार को गैरपारंपरिक ऊर्जा उत्पादन की दिशा में बढ़ना चाहिए। वैसे भी बिहार सरकार अपने गैरपारंपरिक ऊर्जा लक्ष्यों का एक फीसदी भी हासिल नहीं कर पायी है।

दरअसल बिहार सरकार ने 2017 में तय किया था कि वह 2022 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से 3433 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगी। राज्य की रिनुएबल एनर्जी पॉलिसी में यह दर्ज है। मगर बिहार रिनुएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी(ब्रेडा) के आंकड़ों के मुताबिक राज्य अभी तक सोलर पावर प्लांटों के जरिये अभी तक सिर्फ 3.134 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता ही हासिल कर पाया है।

बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में नवीकरणीय स्रोतों से 534 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है, मगर ये स्रोत क्या हैं, इसके बारे में विस्तार से नहीं बताया गया है। इस 534 मेगावाट बिजली में से 310 केंद्र के पावर प्लांट से और 224 निजी उत्पादकों के जरिये हासिल होता है। जाहिर है, इनमें सोलर का जिक्र नहीं है, क्योंकि इस रिपोर्ट में भी ब्रेडा की उन्हीं उपलब्धियों का जिक्र है, जो उसकी साइट पर उपलब्ध है।

इन आंकड़ों से जाहिर है कि सरकार जिस लक्ष्य को 2022 तक हासिल करना चाह रही है, उसका एक फीसदी भी अभी तक हासिल नहीं हुआ है। अगर राज्य सरकार को यह लक्ष्य हासिल करना है तो उसे इसके लिए बहुत काम करना होगा। और पुराने थर्मल प्लांटों को सोलर पावर प्लांट में बदलना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

बिहार रिन्यूएबल एनर्जी पॉलिसी के तहत सौर उर्जा के जरिये 2969 मेगावाट, बायोगैस और बायोमास के जरिये 244 मेगावाट और स्मॉल हाइडल के जरिये 220 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।

यह लक्ष्य इतना मुश्किल भी नहीं है। क्योंकि राज्य सरकार खुद मानती है कि राज्य में 16 हजार मेगावाट सौर उर्जा और 2,150 मेगावाट बायोमास उत्पादन की क्षमता है। बिहार में राज्य सरकार के साथ मिलकर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाने देने के लिए काम करने वाली संस्था सीड का मानना है कि सिर्फ विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा स्रोतों से राज्य में 3948 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।

अनिल प्रकाश कहते हैं कि सोलर पावर प्लांटों को लगाना अब सस्ता विकल्प हो गया है। इसकी स्थापना में भी बहुत कम वक्त लगता है। इससे बिजली भी सस्ती मिलती है। इसलिए अगर राज्य में थर्मल पावर प्लांट बंद हो रहे हैं तो इसका स्वागत होना चाहिए और जल्द से जल्द इनकी जगह पर सोलर प्लांट लगाने की तैयारी होनी चाहिए। क्योंकि भविष्य उसी का है।

मगर क्या एनटीपीसी इन दोनों इकाइयों के बदले सोलर प्लांट लगायेगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है।  राज्य सरकार ने कजरा और पीरपैंती में सोलर प्लांट लगाने की जिम्मेदारी एनटीपीसी को कई साल पहले सौंपी थी। मगर उसका काम अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। वहां दोनों जगह 250-250 मेगावाट के प्लांट लगने थे। इससे साफ होता है कि न राज्य सरकार की और न ही एनटीपीसी की रुचि अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने में है।

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