आहार संस्कृति: मौसमी फली, गुणों से भरी

प्रोटीनयुक्त बाकला की फली न केवल स्वादिष्ट बल्कि वातावरण के लिए भी अच्छी होती है

By Vibha Varshney
Published: Monday 16 May 2022
आलू के साथ बाकला फली की स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी बनाई जाती है (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)

सर्दियां जब खत्म होती हैं तो सब्जीवालों के ठेले पर एक अलग सी फलीदार सब्जी दिखने लगती है। कुछ दिनों के लिए ही वे बाकला की फली या फाबा बीन्स (विसिआ फाबा) लाते हैं। अगर आप उनके नियमित ग्राहक हैं तो निश्चित तौर पर वे आपसे इस मौसमी सब्जी को लेने का आग्रह करेंगे और कहेंगे, “बाजार में यह बहुत कम आती है।” हालांकि बाकला की फली बाजार में बहुत कम दिखती है लेकिन इसके इस्तेमाल की परंपरा काफी पुरानी है। यह उन पुराने आहारों में से एक है, जिसे 10,200 साल पहले घरेलू तौर पर उपयोग में लाया जाने लगा था।

हाल ही में फाबा बीन्स के पूर्वजों का पहला और एकमात्र अवशेष इजराइल के माउंट कार्मेल में एल-वाड के पुरातत्व स्थल में पाया गया था। ये 14,000 साल पुराने जंगली नमूने भी इनके उत्तरी इजरायल के इलाकों में घरेलूकरण का समर्थन करते हैं। इसका हिंदी नाम बाकला, इसके इथियोपियाई नाम बकेला और तुर्की के नाम येशिल बाकला के जैसा ही है। इसकी फलियां भूमध्यसागरीय इलाकों के साथ-साथ भारत, पाकिस्तान और चीन में एक प्रमुख पारंपरिक भोजन हैं। नाश्ते के लिए भुने और नमकीन बीजों को छोड़कर, उत्तरी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसकी खपत कम है।

फाबा बीन्स ठंड के मौसम में उगने के अनुकूल है, यहां तक कि बर्फ की स्थिति में भी जीवित रह सकती है। इस लिहाज से यूरोप और अमेरिका में इसकी खपत का कम होना दुखद है। सोयाबीन के विकल्प के रूप में इनकी खेती आसानी से की जा सकती है।

गुणों से भरपूर

प्रोटीन से भरपूर होने के साथ ही बाकला की फलियों का एक और फायदा दवा के रूप में भी है। ये एमिनो एसिड, एल-डोपा की अच्छी स्रोत होती हैं, जिसे हैप्पी हार्मोन के रूप में जाना जाने वाला डोपामाइन बनता है। यह हार्मोन हमें खुश रखता है और हमारे सोचने और योजना बनाने की क्षमता में खास भूमिका भी निभाता है। अनुमान के मुताबिक, 100 ग्राम ताजा बाकला फली में 50 से 100 मिलीग्राम एल-डोपा पाया जा सकता है। एल-डोपा की मौजूदगी के चलते यह फली पार्किंसन बीमारी में भी लाभदायक है। इस बीमारी में तंत्रिका तंत्र पर असर होता है जिससे चलना फिरना मुश्किल हो जाता है।

इन फायदों के बावजूद इनका सेवन सावधानी से करना चाहिए क्योंकि कच्ची फलियों में पोषण-विरोधी कारक, विसिन और कोनविसिन होते हैं। ये उन लोगों में फेविसम पैदा कर सकते हैं जिनमें ग्लूकोज-6-फॉस्फेट डिहाइड्रोजनेज नामक एंजाइम नहीं है। विसिन और कोनविसिन लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करते हैं और हेमोलिटिक एनीमिया का कारण बनते हैं जिसके परिणामस्वरूप पीलिया और मूत्र का काला पड़ना, जैसी बीमारी हो सकती है। गौरतलब है कि विश्व की करीब 4 से 5 फीसदी आबादी फेविसम के प्रति संवेदनशील है। शोधकर्ताओं ने इसकी ऐसी किस्में विकसित कर ली हैं, जिनमें ये तत्व नहीं होते। इनको हटाने के पारम्परिक तरीकों का इस्तेमाल ज्यादा आसान है।

फलियों को खाने से पहले उन्हें ठीक से धोने, पानी में भिगाने और उबालने से भी हानिकारक तत्व काफी हद तक कम हो जाते हैं। इसकी फलियों को स्थानीय व्यंजनों में को शामिल करने के लिए इन तकनीकों को दुनिया भर में इस्तेमाल किया जाता है। फाबा फली के सबसे लोकप्रिय व्यंजन हैं मेदामिस (उबली बीन्स), फलाफल (सब्जियों और मसालों के साथ अच्छे से तला बीज का पेस्ट), बिसारा (बीज का पेस्ट) और नबेट सूप (उबली हुई अंकुरित फलियां)। भारत में इसके भुने हुए बीजों को मूंगफली की तरह भी खाया जाता है, पर इसे हरी सब्जी की तरह ही ज्यादा खाया जाता है। उत्तर प्रदेश में इसकी फलियां, आलू के साथ पकाई जाती हैं (देखें, रेसिपी)।

उत्तराखंड में फलियों के सख्त हिस्से को हटाकर पहले उबाला और फिर सब्जी बनाई जाती है। बिहार में परिपक्व फली के बीजों को पहले उबाला जाता है, फिर प्याज और टमाटर के साथ भूना जाता है और चिड़वे में मिलाकर खाया जाता है। हाल के सालों में वैश्विक स्तर बाकला की फली का मांस और दूध के शाकाहारी विकल्प के तौर पर अपनाया जा रहा है। फिनलैंड में 100 फीसदी ग्लूटीन फ्री फाबा-बीन का पास्ता बनाने में प्रयोग किया जाता है। फलियों के बीजों में 20 से 25 फीसदी प्रोटीन पाया जाता है।

विकसित देशों में फलियों की खेती ज्यादातर पशु-खाद्य के तौर पर की जाती है। हालांकि इनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व-विरोधी कारक यहां भी एक समस्या है क्योंकि विसिन और कोनविसिन गैर-जुगाली करने वाले जानवरों में भोज की क्षमता को कम कर सकता है। बाकला की फलियों के ज्यादातर सुधार कार्यक्रमों का लक्ष्य इन रसायनों को कम करना है। 1980 के दशक में एक कम विसिन और कोनविसिन वाली किस्म की पहचान की गई थी। इस विशेषता को आज की कई आधुनिक किस्मों में पेश किया गया है।

फलियों की कम पोषक तत्व-विरोधी किस्मों जैसे टेनिंस और फाइटेट्स को भारत में भी विकसित किया गया है। उदाहरण के लिए, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की पटना इकाई ने 2015 में स्वर्ण सुरक्षा और स्वर्ण गौरव नामक नस्लों को तैयार किया था। स्वर्ण सुरक्षा, वर्षा सिंचित स्थिति के लिए उपयुक्त है और नमूना जांच किस्म विक्रांत की तुलना में इसकी औसत उत्पादकता 40 फीसदी अधिक है। दूसरी नस्ल, स्वर्ण गौरव को सुनिश्चित सिंचाई और अंतरफसल की स्थिति के लिए विकसित किया गया है। इसने विक्रांत किस्म की तुलना में उत्पादकता में 36 फीसदी लाभ दर्ज किया है। विक्रांत किस्म की तुलना में यह किस्म आयरन, मैंगनीज और जिंक जैसे खनिजों से भी भरपूर होती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि-वानिकी विभाग के मुख्य वैज्ञानिक व “फाबा-बीन: अ पोटेंशियल लेगुमिनस क्रॉप ऑफ इंडिया” पुस्तक के सह-लेखक बीपी भट्ट के मुताबिक, “यह बहुत शानदार फसल है क्योंकि इसका हम हरी सब्जी के रूप में और दाल के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं । दाल के रूप में इसे पौधों की अन्य विसिया प्रजाति के बीजों के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है। यह कठोर जलवायु में भी अच्छी तरह से बढ़ती है, हालांकि तब इसकी उत्पादकता कम होती है।” भट्ट कहते हैं कि सिंचित परिस्थितियों में इसकी उत्पादकता 1 से 1.5 गुना बढ़ जाती है।

भारत में खेती में इसका क्षेत्र परिभाषित नहीं किया गया है क्योंकि यह असंगठित है। यह पूर्वी भारत, उत्तराखंड और देश के आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित है और गरीबों को पोषण सुरक्षा प्रदान कर सकती है। उनके मुताबिक, बाकला की खेती बढ़ाने से दुनिया को मदद मिलेगी क्योंकि इन फलीदार पौधों की जड़ में सहजीवी रूप से रहने वाले लाभकारी माइक्रोब्स होते हैं, जो मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए वायुमंडलीय नाइट्रोजन को कम कर सकते हैं।

व्यंजन

बाकला की फली और आलू की सब्जी

बाकला की फली - 500 ग्राम
छीले और काटे हुए आलू - 200 ग्राम
बारीक टुकड़ों में कटी मिर्च - 2
सरसों का तेल - 2 बड़े चम्मच
हींग - आधा छोटा चम्मच
जीरा - 1 छोटा चम्मच
हल्दी - 1 छोटा चम्मच
लाल मिर्च - 1 छोटा चम्मच
धनिया पाउडर - 1 छोटा चम्मच
गरम मसाला - 1 छोटा चम्मच
अमचूर पाउडर - 2 छोटा चम्मच
नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि : बाकला की फलियों के किनारों को तोड़कर सख्त भाग को खींचकर अलग करें। उसके बाद उन्हें छोटे टुकड़ों में तोड़कर हल्का उबाल लें। पानी फेंक दें। इसके बाद एक कड़ाही में तेल गरम करें और उसमें जीरा और हींग डालें। फिर हल्दी, मिर्च और धनिया पाउडर डालें। अब इसमें बकला की फलियां, आलू, हरी मिर्च और नमक डालें। अच्छी तरह मिलाएं और आलू के नरम होने तक पकाएं। अमचूर पाउडर और गरम मसाला छिड़कें और अच्छी तरह मिलाएं। सब्जी को गेहूं की रोटियों के साथ खाएं।

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