किशोरों के विकसित होते दिमाग पर असर डाल रहा है जंक फूड

आसानी से अधिक कैलोरी वाला खाना खाने के लालच में किशोर न केवल सुस्त हो रहे हैं, बल्कि दिमागी तौर पर विकसित भी नहीं हो पा रहे हैं 

By Amy Reichelt
Published: Wednesday 18 December 2019

दुनिया भर में मोटापा बढ़ता जा रहा है, खासकर बच्चों और किशोरों में। 2019 में दुनिया में 15 करोड़ से अधिक बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं। इन बच्चों में हृदय रोग, कैंसर और टाइप 2 मधुमेह का खतरा बढ़ गया है। मोटापे से ग्रस्त किशोरों में वयस्कों की तरह मोटे रहने की संभावना है। अगर ये चलन जारी रहा, तो 2040 तक 40 साल की उम्र के 70 फीसदी वयस्क अधिक वजन वाले या मोटे हो सकते हैं। 

मैं एक न्यूरोसाइंटिस्ट हूं और मेरे शोध से पता चलता है कि आहार कैसे मस्तिष्क को बदलता है। मैं यह समझना चाहता हूं कि अस्वस्थ आहार विकासशील मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता है और यह भी कि आज युवा क्यों मोटापे के शिकार हैं?

किशोर कैलोरी-युक्त "जंक" खाद्य पदार्थों के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। युवावस्था के दौरान कई बच्चों का भूख के प्रति खास लगाव होता है, क्योंकि तेजी से विकास के लिए बहुत सारी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। मेटाबॉलिज्म और गतिविधियां बढ़ा कर एक एक हद तक मोटापे से बचा जा सकता है, लेकिन अत्यधिक कैलोरी वाले जंक फूड खाने और आसान जीवन शैली अपनाने के बाद मोटापा आना सुनिश्चित हो जाता है।

यह भी पढ़ें: सीएसई लैब रिपोर्ट: आपके चिप्स और नमकीन में है ज्यादा नमक और वसा 

किशोर मस्तिष्क कमजोर होता है, लेकिन इसी उम्र में मस्तिष्क का विकास होता है। किशोरावस्था में एक नई-मिली सामाजिक स्वायत्तता होती है और उसे क्या खाना है, वह इस बात की आजादी चाहता है।  किशोरावस्था के दौरान, मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों और व्यक्तिगत न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिका) के बीच मजबूत संबंध होता है। "न्यूरोप्लास्टिक" के स्तर में वृद्धि के कारण किशोर मस्तिष्क को जल्दी से प्रभावित किया जा सकता है। 

यह भी पढ़ें - सीएसई लैब रिपोर्ट: बीमारियों का बोझ बढ़ा रहा है आपका प्यारा फास्ट फूड

इसका मतलब यह है कि आहार के साथ-साथ वातावरण के माध्यम से मस्तिष्क को आकार दिया जा सकता है। बदले में, इसके पूरा होने पर होने वाला परिवर्तन कठोर हो सकता है। तो किशोर मस्तिष्क को आहार के माध्यम से परिवर्तन करना संवेदनशील है, लेकिन यह परिवर्तन जीवन के माध्यम से किया जा सकता है। न्यूरोसाइंटिस्ट ब्रेन इमेजिंग के माध्यम से  यह जांचने का काम करते हैं कि एक घटना से दिमाग पर क्या असर पड़ सकता है और दिमाग कैसे प्रतिक्रिया करता है? साथ ही, प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (दिमाग का एक ऐसा क्षेत्र, जो व्यवहार को नियंत्रित करता है और निर्णय लेने का काम करता है)  को स्कैन करते हैं। इससे पता चलता है कि 20 साल से कम उम्र के किशोरों का दिमाग पूरी तरह परिपक्व नहीं होता।

यह भी पढ़ें: सीएसई लैब रिपोर्ट: पिज्जा, सैंडविच और रैप में छिपी हैं बीमारियां 

शोध के दौरान पता चला कि आसपास हो रही घटनाओं को देखते हुए किसी भी किशोर के लिएकैंडी का पूरा बैग खाना या सस्ता जंक फूड खरीदने से इंकार करना मुश्किल हो जाता है।  अपरिपक्व दिमाग होने की वजह से किशोर जल्द से जल्द नतीजा हासिल करने के लिएमीठे और ज्यादा कैलोरी वाले खाने के प्रति आकर्षित होता है। ऐसे किशोर मस्तिष्क में डोपामाइन रिसेप्टर्स की बढ़ती संख्या के कारण होता है। इससे किशोर के दिमाग में  आसानी से जल्द नतीजा हासिल करने की भावना बढ़ जाती है और बार-बार उसका दिमाग उत्तेजित हो जाता है। इसका असर लंबे समय तक दिमाग पर रह सकता है। 

यह भी पढ़ें: सीएसई लैब रिपोर्ट: आपकी सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं कंपनियां और रेगुलेटर

किशोर ऐसे व्यवहार के अभ्यस्त हो जाते हैं, जिससे उन्हें कम से कम मेहनत करनी पड़े, जो उन्हें जंक फूड प्रदान करता है। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि किशोर ऐसा खाना पसंद करने लगते हैं जो आसानी से मिल जाए और तुरंत संतुष्टि दे, जबकि उन्हें इस बात का पता होता है कि यह खाना उनके स्वास्थ्य के लिए खराब है। ऐसा उनके स्थायी मस्तिष्क का परिणाम है।  दिलचस्प बात है कि शरीर की कम गतिविधियां प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स के क्षेत्र में दिखती हैं। यानी कि खाने की इच्छा तुरंत पूरी होने से शारीरिक व मानसिक गतिविधियां कम हो जाती हैं। किशोरावस्था में जंक फूड खाने से मस्तिष्क के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है, ऐसे में जरूरी है कि सुधार के लिए व्यायाम किया जाना चाहिए।

 ऑरिजनल आर्टिकल the conversion में पब्लिश हुआ है, जिसे creative commons लाइसेंस के तहत छापा गया है। ऑरिजनल आर्टिकल पढ़ने के लिए क्लिक करें  

Subscribe to Weekly Newsletter :