अगर ये चीजें खा रहे हैं आप तो हो सकते हैं मोटापा, बीपी, डायबिटीज के शिकार

#Everybitekills सीएसई के ताजा अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जंक फूड में नमक, वसा, ट्रांस फैट की अत्यधिक मात्रा है जो मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय की बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं

By Amit Khurana, Sonal Dhingra

On: Tuesday 17 December 2019
 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के ताजा अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जंक फूड और पैकेटबंद भोजन खाकर हम जाने-अनजाने खुद को बीमारियों के भंवरजाल में धकेल रहे हैं। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि जंक फूड में नमक, वसा, ट्रांस फैट की अत्यधिक मात्रा है जो मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय की बीमारियों के लिए जिम्मेदार है। ताकतवर प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री और सरकार की मिलीभगत से जंक फूड 6 साल से चल रहे तमाम प्रयासों के बावजूद कानूनी दायरे में नहीं आ पाया है। जंक फूड बनाने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं को गलत जानकारी देकर भ्रमित कर रही हैं और खाद्य नियामक मूकदर्शक बनकर बैठा हुआ है अध्ययन : मृणाल मलिक, अरविंद सिंह सेंगर और राकेश कुमार सोंधिया विश्लेषण : अमित खुराना और सोनल ढींगरा

अगली बार से हल्दीराम के क्लासिक नट क्रैकर्स पैकेट को खोलने या डोमिनोज का रेगुलर नॉन वेज सुप्रीम पिज्जा खाने से पहले एक बार सोचिएगा जरूर। सिर्फ 35 ग्राम नट क्रैकर्स चट करते ही आप रोज के तय मानक का करीब 35 फीसदी नमक और 26 फीसदी वसा का उपभोग कर चुके होंगे। और यदि चीज से लबरेज पिज्जा के चार बराबर टुकड़े खा लिए हैं तो समझिए कि आपने एक दिन की जरूरत भर का 99.9 फीसदी नमक व 72.8 फीसदी वसा खा लिया है। ज्यादा नमक, ज्यादा वसा (फैट), ट्रांस फैट और कार्बोहाइड्रेट वाले इस तरह के जंक फूड का उपभोग काफी घातक नतीजे वाला हो सकता है। डॉक्टर कहते हैं कि यह गैर संचारी रोगों जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), हृदय की बीमारी और कैंसर तक को खुला न्यौता देने जैसा है। हरियाणा के गुरुग्राम स्थित मेदांता हॉस्पिटल के एंडोक्राइनलॉजी ( एंडोक्राइन ग्रंथि और हॉर्मोन संबंधी) व डायबिटीज डिवीजन के प्रमुख अंबरीश मित्थल कहते हैं कि यदि ये बीमारियां जीवन में जल्दी आ जाती हैं तो इनसे जूझने में काफी मुश्किलें आती हैं।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की 2016 में आई एक रिपोर्ट इस चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाती है। यह रिपोर्ट बताती है कि नुकसानदायक आहार के चलते बीमारियों का बोझ, उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त शर्करा, उच्च कोलेस्ट्रोल और मोटापे में 1990 से अब तक 10 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अक्सर इन बीमारियों से पीड़ितों को आधी-अधूरी जानकारी होती है।

दिल्ली की अधिवक्ता मंजीत सिंह को कभी यह परेशानी नहीं हुई कि उनका 11 वर्षीय बच्चा प्रतिदिन पैकेटबंद और फास्ट फूड खाकर पेट भरता है। इससे मंजीत का समय भी बचता और वह बहुत सारी चिंताओं से दूर भी रहती थीं। लेकिन यह तभी तक था जब तक उनके बच्चे ने सिरदर्द और धुंधली नजर की शिकायत नहीं की। मंजीत तब और हैरान हुईं जब डॉक्टर ने कहा कि उनके बच्चे को उच्च रक्तचाप है। मंजीत बताती हैं कि डॉक्टर ने पूरी सख्ती से वजन घटाने और जंक फूड न खाने और कम नमक वाला आहार लेने की नसीहत दी है। साथ ही चेताया है कि ऐसा न करने पर बच्चे को हृदय रोग और डायबिटीज भी हो सकती है।

मंजीत को अगर पता होता कि प्रसंस्कृत फूड पैक के भीतर क्या मौजूद है तो वह अपने बच्चे की मदद कर सकती थीं। बेहद साफ छपाई में खाद्य सामग्रियों के पैकेट पर अंकित मात्रा की घोषणा बहुत ज्यादा मददगार नहीं होती। 64 वर्षीय सेवानिवृत्त पेशेवर अशोक गुलाटी कहते हैं कि यदि मैं इन्हें पढ़ना शुरू करूंगा तो इसमें पूरा दिन गुजर जाएगा। डिपार्टमेंटल स्टोर पर काम करने वाले 22 वर्षीय प्रवेश सिन्हा कभी स्कूल नहीं गए, ऐसे में उनके लिए यह जानना असंभव होगा कि वह क्या खाते हैं।

गैर लाभकारी और शोध व नीतियों के लिए आवाज उठाने वाली दिल्ली स्थित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने साल 2012 में तब देश में हलचल पैदा कर दी थी जब लोगों के पसंदीदा खाने में नमक, वसा, ट्रांस फैट और कार्बोहाइड्रेट की जबरदस्त असंतुलित मात्रा को उजागर किया था। अब पूरे सात वर्ष बाद हम आखिर कहां खड़े हैं? इसे समझने के लिए 2019 में ही जुलाई और अक्टूबर के बीच सीएसई की पर्यावरण निगरानी लैब ने दोबारा 33 मशहूर भारतीय और वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पैकेटबंद और फास्ट फूड की सामग्री को जांचा और परखा। ये सभी उत्पाद पूरे देश में मौजूद हैं। इसके लिए एसोसिएशन ऑफ ऑफिशियल एनालिटिकल केमिस्ट्स (एओएसी) के जरिए सूचीबद्ध अंतरराष्ट्रीय मानकों पर स्वीकार और मान्य जांच विधियों का प्रयोग किया गया। हालांकि अभी तक एसोसिएशन ने कार्बोहाइड्रेट के जांचने की विधि को सूचीबद्ध नहीं किया है इसलिए वैश्विक स्तर पर अपनाई गई कलरिमेट्री विधि का प्रयोग किया गया है। प्रयोगशाला के परिणामों से यह समझा जा सकता है कि भारतीय आबादी के लिए सुझाए गए आहार के मुताबिक, हर न्यूट्रिएंट (पोषक तत्व) कितना योगदान देता है।

लैब के जरिए 100 ग्राम पैकेटबंद भोजन और फास्ट फूड को जांचा गया और परिणाम 30 से 35 ग्राम में बांटे गए हैं। यह कुछ पैकेट पर लिखे गए सर्विंग साइज (परोसी जाने वाली मात्रा) के बराबर है। परिणाम चौंकाने वाले रहे। सभी जांचे गए चिप्स, नमकीन, तुरंत बनने वाले नूडल्स और सूप में रिकमंडेड डायटरी अलाउंस (आरडीए) के मानकों से ज्यादा नमक पाया गया, जिसकी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन-इंडिया, आईसीएमआर और साइंटिफिक एक्सपर्ट ग्रुप ऑफ फूड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) की सिफारिशों के आधार पर समीक्षा भी की गई।

आरडीए के मुताबिक, एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन नमक 5 ग्राम, वसा 60 ग्राम, ट्रांस फैट 2.2 ग्राम और 300 ग्राम कार्बोहाइड्रेट की मात्रा तय की गई है। यह गणना एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए रोजाना 2,000 कैलोरी की जरूरत के हिसाब से स्वीकार की गई है। एक दिन में तीन बार आहार (मील) और दो बार स्नैक्स के लिहाज से भी विचार किया गया है। हमारे मील टाइम में इन न्यूट्रिएंट्स का उपभोग आरडीए का 25 फीसदी नहीं होना चाहिए। वहीं, दिन में दो मुख्य स्नैक्स का उपभोग आरडीए का 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। अब देखते हैं सीएसई ने अपनी जांच में क्या पाया?

सीएसई की प्रयोगशाला में 33 उत्पादों की जांच की गई। इनमें से 14 पैकेटबंद भोजन थे और 19 फास्ट फूड। इनमें नमक, वसा, ट्रांस फैट और कार्बोहाइड्रेट की जांच की गई। जांच के नतीजे इस प्रकार हैं

 

जारी...

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