कोविड-19: क्या सही है हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पर इतना ज्यादा भरोसा करना

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ने कोविड -19 के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग पर सवाल उठाया है

By DTE Staff
Published: Wednesday 15 April 2020

दुनिया भर के करीब 20 लाख लोग कोरोनावायरस की महामारी कोविड-19 से जूझ रहे हैं। ऐसे में चिकित्सा जगत में भी हलचल मची हुई है। वैज्ञानिक जल्द से जल्द इस बीमारी का इलाज ढूंढ़ने में लगे हुए हैं। जिससे इससे मरने वालों के आंकड़ों को सीमित किया जा सके। ऐसे समय में  हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन नामक दवा सबसे ज्यादा चर्चा में है। जिसे इस महामारी को नियंत्रित करने के एक प्रभावी उपाय के रूप में देखा जा रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सहित कई अन्य लोगों द्वारा भी इस दवा की वकालत की जा रही है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भी कोविड-19 के रोगियों के लिए इस दवा की वकालत की है। जिससे दुनिया भर में इस दवा की मांग काफी बढ़ गयी है। इसी जल्दबाजी और आपाधापी के कारण दुनिया भर में इस दवा की कमी हो गई है। गौरतलब है कि यह दवा आमतौर पर मलेरिया के मरीजों को दी जाती है।

ऐसे में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ने कोविड-19 के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग और उसके तर्क पर सवाल उठाया है। उसके अनुसार क्या कोरोनावायरस के इलाज के लिए इस दवा को मान्यता देना सही है। जबकि इस बीमारी के लिए इस दवा का अबतक नैदानिक परीक्षण भी नहीं किये गए हैं।

इस जर्नल में छपे एक संपादकीय में कहा गया है कि हालांकि कई प्रयोगशालाओं ने यह बताया था कि यह दवा कोरोनावायरस के इलाज में फायदेमंद है। पर वो इसके नैदानिक परीक्षण विफल रही थी। इसमें उन विभिन्न प्री-प्रिंट अध्ययनों की कमियों को बताया है जो कहती हैं कि इस दवा का उपयोग कोविड-19 के इलाज में किया जा सकता है। 

किसी भी दवा के उपयोग से पहले उसका क्लीनिकल ट्रायल बहुत जरुरी होता है। साथ ही किसी विशेष बीमारी के इलाज के लिए बनी दवा को दूसरी बीमारी में उपयोग करने से पहले भी इन परीक्षणों का किया जाना जरुरी होता है। जिससे दूसरी बीमारी में इस दवा के सेवन से शरीर पर उसके दुष्प्रभाव न पड़े। इस दवा के मामले में भी लिवर फेल, दिल की धड़कन का अनियमित होना और त्वचा संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।

गौरतलब है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के प्रतिकूल असर के चलते कोविड-19 के रोगियों का इलाज कर रहे एक भारतीय डॉक्टर की मौत हो गई थी। 14 अप्रैल, 2020 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी युवा भारतीय वैज्ञानिकों से आग्रह किया है कि वो इस महामारी की रोकथाम के लिए तरीका ईजाद करें। अभी तक दुनिया में सार्स वायरस से निपटने के लिए कोई प्रभावी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। पिछले अनुभवों के अनुसार इस बीमारी का इलाज बनने में यदि साल नहीं तो कुछ महीने जरूर लग जायेंगे। ऐसे में इस वायरस से बचाव ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है।

Subscribe to Weekly Newsletter :