पिछड़े देशों की तुलना में विकसित देशों में अधिक पाई गई कोरोना वैक्सीन को लेकर झिझक

जहां अमेरिका में 65 फीसदी और रूस में 30 फीसदी लोग वैक्सीन लगवाने के इच्छुक थे, वहीं विकासशील देशों में करीब 80 फीसदी लोगों ने वैक्सीन लगवाने की इच्छा जाहिर की थी

By Lalit Maurya
Published: Monday 19 July 2021
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगत्यमुनि वैक्सीनेशन सेंटर में वैक्सीन लगवाने पहुंचे लोग। फोटो - त्रिलोचन भट्ट

जर्नल नेचर मेडिसिन में छपे एक शोध से पता चला है कि विकसित देशों की तुलना में पिछड़े देशों के लोग वैक्सीन को लेकर कहीं ज्यादा इच्छुक पाए गए थे। इस सर्वेक्षण के अनुसार जहां अमेरिका में 65 फीसदी और रूस में 30 फीसदी लोग वैक्सीन लगवाने के इच्छुक थे वहीं विकासशील देशों में  करीब 80 फीसदी लोगों ने वैक्सीन लगवाने की इच्छा जाहिर की थी।

शोध के मुताबिक जहां निम्न और मध्यम आय वाले देशों के 91 फीसदी लोगों ने कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षा को वैक्सीन लगवाने की मुख्य वजह माना था, वहीं 44 फीसदी के मन में वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर हिचकिचाहट थी। 

यह अपनी तरह का पहला ऐसा शोध है जो दिखाता है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) के लोगों में वैक्सीन लगवाने के लिए झिझक कम थी।  इस सर्वेक्षण में 20 हजार से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया था। इस शोध में अंतर्राष्ट्रीय विकास केंद्र (आईजीसी), इनोवेशन फॉर पॉवर्टी एक्शन, डब्लूजेडबी बर्लिन सोशल साइंस सेंटर, येल इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, येल रिसर्च इनिशिएटिव ऑन इनोवेशन एंड स्केल और रूस की एचएसई यूनिवर्सिटी सहित  30 से अधिक संस्थानों के शोधकर्ताओं ने सहयोग दिया था।

देखा जाए तो दुनिया भर में अभी भी वैक्सीन को लेकर काफी असमानताएं हैं। दुनिया की अधिकांश आबादी अभी भी वैक्सीन के इंतजार में है। हालांकि अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के कई हिस्सों में अभी भी कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में वैक्सीन वितरण को बढ़ावा देने से वैश्विक टीकाकरण में काफी मदद मिलेगी और इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आएंगें। 

26.3 आबादी को मिल चुकी है वैक्सीन की कम से कम एक खुराक

गौरतलब है कि दुनियाभर में इस महामारी के अब तक 19 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं जिनमें 41 लाख से ज्यादा मरीजों की अब तक मृत्यु हो चुकी है। वहीं वर्तमान आंकड़ों (18 जुलाई 2021) को देखें तो दुनियाभर में 26.3 फीसदी आबादी को कोविड वैक्सीन की कम से कम एक खुराक दी जा चुकी है। अब तक वैक्सीन की करीब 366 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं। हालांकि निम्न आय वाले देशों में केवल एक फीसदी लोगों को वैक्सीन के एक खुराक मिली है।    

वहीं भारत सरकार द्वारा 19 जुलाई 2021 तक जारी आंकड़ों को देखें तो देश में कोविड के मामलों की संख्या बढ़कर 3.1 करोड़ पर पहुंच चुकी है। वहीं इस संक्रमण से अब तक 414,108 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि 97.3 फीसदी मरीज ठीक हो चुके हैं। यदि देश में वैक्सीन की बात करें तो 40.6 करोड़ वैक्सीन की खुराक दी जा चुकी हैं। हालांकि इसके बावजूद देश की एक बड़ी आबादी वैक्सीन से वंचित है। 

आईजीसी, सिएरा लियोन के कंट्री इकोनॉमिस्ट और इस शोध से जुड़े शोधकर्ता निकोलो मेरिग्गी ने बताया कि जैसे-जैसे विकासशील देशों में वैक्सीन मिलने लगेगी, इसके चलते अगले कुछ महीने वैक्सीन अपटेक कार्यक्रमों को डिजाइन और लागू करने के मामले में सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगे। सरकारें इस शोध के निष्कर्ष का उपयोग लोगों में जागरूकता फैलाने और प्रणालियों को विकसित करने के लिए कर सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो लोग वैक्सीन प्राप्त करने का इरादा रखते हैं। 

जून 2020 से जनवरी 2021 के बीच किए इस सर्वेक्षण से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि वैक्सीन की स्वीकृति, समय और लोगों के पास जितनी जानकारी उपलब्ध थी उसके हिसाब से अलग-अलग हो सकती है। जहां पिछले छह महीनों में यह कहीं ज्यादा स्पष्ट हो गया है कि वैक्सीन इस महामारी के प्रति कहीं ज्यादा प्रभावी और इससे बचने में मददगार भी है। लेकिन कभी-कभार सामने आने वाले साइड इफेक्ट ने जनता के विश्वास को भी कम किया है।

येल इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के निदेशक और इस अध्ययन से जुड़े साद ओमर ने बताया कि हमने यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों में देखा है, कि वैक्सीन को लेकर झिझक इस मामले में नीतिगत निर्णयों को जटिल बना सकती है, जिससे व्यापक टीकाकरण की गति में रुकावट आती है। ऐसे में विकासशील देशों में सरकारें स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं जैसे भरोसेमंद लोगों को जागरूकता के इस अभियान में शामिल कर सकती हैं, क्योंकि लोग उनपर ज्यादा भरोसा करते हैं।  यह लोग वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स के बारे में लोगों को सटीक जानकारी दे सकते हैं। 

डब्लूजेडबी बर्लिन सोशल साइंस सेंटर और इस शोध से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता एलेक्जेंड्रा स्कैको के अनुसार सभी देशों में अन्य टीकों की तुलना में कोविड-19 वैक्सीन के प्रति लोगों में झिझक कहीं ज्यादा है, शायद ऐसा इस वैक्सीन के नए होने के कारण है।  हालांकि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में इस वैक्सीन के प्रति जो लोगों का रवैया है वो सकारात्मक सन्देश देता है। उन्हें उम्मीद है कि इस शोध में जो सबूत सामने आए हैं वो कोविड-19 के वैश्विक टीकाकरण के विस्तार और उससे जुड़ी रणनीतियों के निर्माण में मददगार हो सकते हैं। 

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