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पर्यावरण मंत्रालय ने नियमों को कमजोर कर झारखंड के सारंडा में खनन का रास्ता साफ किया

एमओईएफ ने जोन-I और जोन-II खनन क्षेत्रों का विलय किया, प्रभाव आकलन प्रावधान हटाया और खनन योजना बनाने में वन विभाग की भूमिका को खत्म किया

 
By Ishan Kukreti
Published: Thursday 28 March 2019
Credit: Shruti Agarwal

केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ) ने झारखंड सरकार के अनुरोध पर सिंहभूम और चाईबासा जिलों के लिए अपने मैनेजमेंट प्लान फॉर सस्टेनेबल माइनिंग (एमपीएसएम) में बदलाव किया है। इन जिलों में एशिया के सबसे बड़े साल (शोरिया रोबस्टा) के जंगल सारंडा आते हैं।   

एमओईएफ ने पिछले साल जून में एमपीएसएम को अंतिम रूप दिया था। इस प्लान में सारंडा वन को “नो माइनिंग” अथवा “संरक्षित” क्षेत्र बनाया गया था। साथ ही सारंडा-चाईबासा क्षेत्र में सालाना खनन अधिकतम 64 मिलियन टन तक सीमित कर दिया था। इसके तुरंत बाद राज्य सरकार ने पिछले साल 14 अगस्त को योजना में बदलाव करने के लिए एमओईएफ से आग्रह किया।

योजना में बदलाव पर फैसला करने के लिए एमओईएफ, केंद्रीय खान मंत्रालय, इस्पात मंत्रालय, कोयला मंत्रालय और झारखंड सरकार के बीच 4 फरवरी को एक बैठक हुई थी। डाउन टू अर्थ के पास इस बैठक के मिनट्स मौजूद हैं।

एमओईएफ ने इस बैठक में एमपीएसएम में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए जैसे जोन-I और जोन-II खनन क्षेत्रों का विलय, प्रभाव आकलन प्रावधान को हटाना और खनन योजना बनाने में वन विभाग की भूमिका को खत्म करना।

नियमों में बदलाव कर अंकुआ और चिडिया के खनन क्षेत्रों में खनिज ब्लॉक भी खोले गए हैं। एमपीएसएम में इस क्षेत्र में 13 खानों की अनुमति सरकार पर निर्भर थी। एमओईएफ ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (एमएमडीआर) के प्रावधानों के तहत इन्हें लाने के लिए इस प्रावधान को हटा दिया है।

झारखंड ने एमओईएफ से संरक्षण क्षेत्रों के प्रावधान को हटाने के लिए कहा था क्योंकि एमपीएसएम में कोई खनन क्षेत्र नहीं हैं। राज्य सरकार ने इसके पीछे तर्क दिया था कि इससे भविष्य में लौह अयस्क की आपूर्ति बाधित होगी। एमओईएफ ने सुझाया है कि वह इन क्षेत्रों में खनन की संभावना को देखेगा ताकि नवीनतम तकनीकों का उपयोग करके पारिस्थितिकी को कम से कम नष्ट किया जा सके।

योजना ने खनन क्षेत्र को जोन- I और जोन- II में विभाजित किया था। जोन-I में मंजूरी पहले दी जाती है। इस जोन की खानों के समाप्त होने पर जोन-II की खानों के लिए मंजूरी देने की व्यवस्था थी। एमपीएसएम से इस प्रावधान को हटा लिया गया है।

दिलचस्प बात यह है कि टाटा स्टील लिमिटेड ने चाईबासा दक्षिण वन प्रभाग में आने वाली नोआमुंडी लौह अयस्क खदान से जुड़ी लगभग 380 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन के लिए एमओईएफ से अनुरोध किया है। राज्य सरकार के दस्तावेजों के अनुसार, प्रस्तावित क्षेत्र सिंहभूम हाथी रिजर्व का हिस्सा है और लगभग 22 हेक्टेयर भूमि एमपीएसएम के संरक्षण क्षेत्र के अंतर्गत आती है।

2014 में शाह आयोग की रिपोर्ट के बाद एमओईएफ ने क्षेत्र में खनन की नई मंजूरियां नहीं दी थीं क्योंकि शाह आयोग की रिपोर्ट में कंपनियों द्वारा एमएमडीआर का बड़ा उल्लंघन पाया गया था। एमओईएफ ने कहा था कि एमपीएसएम बनने के बाद ही नए पट्टे दिए जाएंगे।

इस संबंध में एमओईएफ के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

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