भरी गर्मी में डेड लेवल तक पहुंचा भोपाल का बड़ा तालाब
पानी की कमी के बावजूद भोपाल नगर निगम को तालाब से पानी निकालना पड़ रहा है, जिससे तालाब के इकोलॉजी पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
By Manish Chandra Mishra
Published: Friday 07 June 2019
भोपाल में दिन का पारा 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर रहा ऐसे में पानी की किल्लत शहरवासियों की परेशानी को कई गुना बढ़ा रही है। भोपाल का मशहूर बड़ा तालाब भी इस गर्मी के आगे घुटने टेक चुका है। तालाब में जलस्तर की हालत ऐसी है कि इसके तकरीबन आधे से अधिक हिस्से की मिट्टी बाहर दिख रही है। तालाब सूखने की एक बानगी ये भी कि तालाब के बीच बना ताकिया टापू जहां पहुंचने के लिए गर्मियों में भी नाव का सहारा लेना पड़ता था, वहां अब पैदल चलकर आसानी से पहुंचा जा सकता है। पानी की किल्लत का आलम यह है कि पुराने भोपाल के एक बड़े इलाके में 2-2 दिन पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है।
कम बारिश और बड़े तालाब के पानी के दोहन से लगातार दूसरे साल बड़े तालाब का जल स्तर डेड स्टोरेज लेवल से नीचे पहुंच गया है। पिछले 10 साल में चौथी बार तालाब को इस तरह के संकट का सामना करना पड़ रहा है और यह संकट इस बार गर्मियों के बीच में ही आ गया। इस सप्ताह तालाब का जल स्तर 1651.95 फीट दर्ज किया गया। जबकि, पिछले सप्ताह यह स्तर 1652 फीट यानी डेड स्टोरेज लेवल पर पहुंच गया था। जबकि, पिछले साल 31 मई को तालाब डेड स्टोरेज लेवल तक पहुंचा था। तालाब का फुल टैंक लेवल (एफटीएल) 1666.80 फीट है, वैसे इस समय पानी 36 वर्ग किमी में होता है। लेकिन वर्तमान में पानी का क्षेत्र सिकुड़कर 9 वर्ग किमी पर आ गया है।
वर्धमान पार्क के समीप नगर निगम ने पानी का लेवल मापन बन्द कर दिया है। वहां के कर्मचारी नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताते हैं कि तालाब का जलस्तर इतना कम हो चुका है कि जल मापने वाले उपकरण को पेंटिंग के लिए नगर निगम के वर्कशॉप पर भेजा गया है। वे बताते हैं कि पानी का स्तर इतना कम है कि 24 घंटे पंप चालू रखने के बाद क्षमता का आधा टैंक भर पाता है। इस स्थिति में अगले 7 दिन में बारिश नहीं हुई तो पानी की आपूर्ति जारी नहीं रखी जा सकती है।
भोपाल के मेयर आलोक शर्मा बताते हैं कि उन्होंने फरवरी में जल आपूर्ति में कटौती का सुझाव दिया था, जिस पर अमल नहीं किया, क्योंकि पिछले साल बारिश में पानी 50 प्रतिशत तक ही जमा हो पाया था, लेकिन लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस की सरकार ने पानी का दुरुपयोग होने दिया। शहर के 70 फीसदी हिस्से में नर्मदा और कोलार डैम से पानी की आपूर्ति होती है। नर्मदा जल का प्रोजेक्ट बहुत पहले तैयार हुआ था और तब शहर की आबादी काफी कम थी, लेकिन लगातार बढ़ते हुए भोपाल शहर में पानी की जरूरत भी लगातार बढ़ रही है। अबाध जल आपूर्ति के लिए मेयर ने सरकार से 100 करोड़ के बजट की मांग की है। वे आश्वस्त हैं कि भोपाल नगर निगम किसी भी स्थिती से निपटने के लिए तैयार है। वे इस मुद्दे के समाधान के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने की कोशिश भी कर रहे हैं।
इस तरह लगातार पानी की कमी होने से तालाब के जलीय जीवन पर कई तरह के खतरे हैं। पर्यावरणविद और शोधकर्ता विपिन व्यास बताते हैं कि जल स्तर कम होने के बाद पानी में न्यूट्रिशन या पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है। इससे रहने वाले जीवों पर असर होता है। पानी का रंग भी इसी वजह से हरा हो जाता है। इसके साथ बारिश और मानसून के बीच सामंजस्य बिगड़ने से मछलियों का प्रजनन भी प्रभावित हो रहा है।
11वीं सदी से भोपाल की शान यह तालाब
कहते हैं भोपाल के तालाब का निर्माण राजा भोज ने करवाया था। पर्यावरणविद और लेखक अनुपम मिश्र ने अपनी किताब आज भी खरे हैं तालाब में लिखा है, "लखरांव को भी पीछे छोड़े, ऐसा था भोपाल ताल। इसकी विशालता ने आस-पास रहने वालों के गर्व को कभी-कभी घमंड में बदल दिया था। कहावत मरण बस इसी को ताल माना: ताल तो भोपाल ताल बाकी सब तलैया। 11वीं सदी में राजा भोज द्वारा बनवाया गया यह ताल 365 नालों, नदियों से भरकर 250 वर्गमील में फैलता था। मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने 15वीं सदी में इसे सामरिक कारणों से तोड़ा।