चमोली आपदा: ऋषिगंगा में बनी झील से कितना हो सकता है नुकसान

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि ऋषि गंगा क्षेत्र में 400 मीटर लंबी झील बनने की आशंका है

By Trilochan Bhatt
Published: Friday 12 February 2021
ऋषिगंगा में एक झील बनने के बाद प्रशासन सचेत हो गया है। Phtoto: twitter/ Dr Dan Shugar @WaterSHEDLab

चमोली जिले के ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया में एक नई झील का पता चलना राज्य सरकार और जिला प्रशासन के लिए एक नई चुनौती बन गया है। यह झील कितनी बड़ी हो सकती है और झील के फटने की स्थिति में कितना नुकसान हो सकता है, इसका पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है।

हिमालयी आपदा प्रभावित उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ के ऋषिगंगा क्षेत्र में भूवैज्ञानिकों ने एक और ग्लेशियर लेक का पता लगाया है। इस लेक की जानकारी मिलने के बाद से राज्य सरकार और जिला प्रशासन लगातार ज्यादा से ज्यादा जानकारियां लेने के प्रयास में जुटे हुए हैं। एसडीआरएफ के पर्वतारोहियों का एक दल ऋषिगंगा के कैचमेंट एरिया में भेजा जा रहा है, ताकि झील की सही स्थिति का पता लगाया जा सके और इस बात की भी पुख्ता जानकारी मिल सके कि यदि झील फट गई तो इससे कितना नुकसान होने की संभावना है।

देहरादून स्थित वाडिया हिमालयन भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का एक दल इन दिनों ऋषिगंगा में आई बाढ़ के कारणों का पता लगाने के लिए इस क्षेत्र में जानकारियां जुटा रहा है। बीते 9 फरवरी को इस दल ने ऋषिगंगा क्षेत्र में कई जानकारियां जुटाई थी और दावा किया था कि अचानक आई बाढ़ का कारण एक हैंगिंग ग्लेशियर था, जो भारी बर्फबारी के कारण नीचे गिर गया था और इससे ऋषिगंगा अवरुद्ध हो गई थी। वैज्ञानिकों का कहना था कि इस ब्लाॅकेज से बनी झील में कई दिनों तक पानी भरता रहा और 7 फरवरी की सुबह अचानक ब्लाॅकेज हट जाने से बाढ़ जैसी स्थिति बन गई।
 
इस दल ने बाढ़ के कारणों की प्रारंभिक जांच के बाद भी अपना अभियान जारी रखा और सभी तरह की आशंकाओं का समाधान करने के लिए ऋषिगंगा के कैचमेंट एरिया का हवाई सर्वेक्षण किया। इस दौरान टीम को रोंगथी ग्लेशियर के पास एक झील नजर आई। वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक डाॅ. कलाचंद साईं के अनुसार झील काफी बड़ी है, हालांकि इसका कुल एरिया और गहराई कितनी है, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।
 
इस बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि ऋषि गंगा क्षेत्र में 400 मीटर लंबी झील बनने की आशंका है। उन्होंने कहा है कि झील पर सेटेलाइट से नजर रखी जा रही है और विशेषज्ञों की टीम को भेजा जा रहा है। उन्होंने आम लोगों से घबराने के बजाय सतर्क रहने की अपील की है।
 
झील के बारे में जानकारी मिलने के बाद राज्य सरकार, जिला प्रशासन, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को हाई अलर्ट पर रखा गया है।  उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने एसडीआरएफ के पर्वतारोहियों की एक टीम को इस क्षेत्र तक पहुंचकर स्थिति का आकलन करने के निर्देश दिये हैं। यह टीम संभवतः शनिवार को अभियान पर निकलेगी।

इस बीच ऋषिगंगा और धौली नदियों का जलस्तर बार-बार बढ़ रहा है। इससे आपदा में सबसे ज्यादा प्रभावित रैणी और तपोवन में चल रहे राहत कार्यों में बाधा आ रही है। 10 फरवरी को नदियों का जलस्तर बढ़ने के बाद करीब 2 घंटे राहत कार्य रोका गया। फिलहाल यह भी पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है कि अचानक जलस्तर बढ़ जाने का कारण वही झील है जिसके कारण 7 फरवरी की घटना हुई थी या फिर वह झील है जिसका पता वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने लगाया है।

इस झील के बारे में पूछे जाने पर उत्तराखंड वानिकी एवं औद्यानिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष और जियोलाॅजिस्ट डाॅ. एसपी सती कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्रों में इस तरह की ग्लेशियर लेक बनना कोई अनहोनी नहीं है। 1998 में रुद्रप्रयाग जिले के राउंलेक में बनी झील का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि ऐसी झीलें धीरे-धीरे खुद रिसने लगती हैं। इनके टूटने की स्थिति केवल तभी बनती है, जबकि इन झीलों के ऊपर कोई भूस्खलन हो जाए। रोंगथी में बनी झील के बारे में उनका कहना है कि इस मौसम में रोंगथी क्षेत्र में भूस्खलन होने की कोई संभावना नहीं है, ऐसे में झील को डिस्ट्राॅय करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।

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