मधुमक्खियों-भौरों की मौत का कारण बन रहा है भारत का वायु प्रदूषण

बेंगलुरु के नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज में शैनन ओलसन के नेतृत्व में गीता थिमेगौड़ा और उनके सहयोगियों ने 1800 से अधिक जंगली मधुमक्खियों पर चार साल तक अध्ययन किया

By Dayanidhi
Published: Tuesday 11 August 2020
Photo: pexels

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से नौ भारत में हैं। फिर भी अभी तक हमें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि वायु प्रदूषण लोगों के अलावा अन्य जीवों को भी प्रभावित करता है। बेंगलुरु लाइफ साइंस के वैज्ञानिकों ने जंगली पौधों और जीवों पर वायु प्रदूषण के प्रभावों के बारे में शोध किया है। शोध में बताया गया है कि वायु प्रदूषण मधुमक्खी जैसे परागणकर्ताओं के लिए विनाशकारी हो सकता है।

भारतीय शहरों में रहने वाली मधुमक्खी को एपिस डोरसाटा कहा जाता है। इन मधुमक्खियों का भारत की खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। ये मधुमक्खियां देश के 80 फीसदी से अधिक शहद का उत्पादन करती है, और अकेले कर्नाटक में 687 प्रजातियों से अधिक पौधों पर परागण करती हैं।

75 फीसदी भारतीय फसलों की प्रजातियां कुछ हद तक उत्पादन के लिए इन जीवों और ज्यादातर कीड़ों पर निर्भर हैं। भारत दुनिया में सबसे बड़ा फल उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा सब्जी उत्पादक है। मधुमक्खियों जैसे कीट परागणकों के बिना, सालभर में होने वाले आम के निर्यात में 65 लाख रुपये से अधिक का नुकसान हो सकता है। भारत की पादप जैव विविधता और कृषि विज्ञान के लिए मधुमक्खियों और अन्य परागणकों के महत्व को कम नहीं किया जा सकता है।

बेंगलुरु के नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज में शैनन ओलसन के नेतृत्व में गीता थिमेगौड़ा और उनके सहयोगियों ने 1800 से अधिक जंगली मधुमक्खियों पर चार साल तक अध्ययन किया। उनका यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

अलग-अलग प्रयोगों के माध्यम से, एनसीबीएस के मधुमुक्खी विशेषज्ञ डॉ. एक्सल ब्रॉकमैन और स्टेम सेल साइंस एंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) और नाइट हार्ट इंस्टीट्यूट के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. दांडीपनी पेरुंदरै ने पाया कि एशियाई मधुमक्खियां बेंगलुरु के मेगासिटी के अधिक प्रदूषित क्षेत्रों की तुलना में कम प्रदूषित क्षेत्रों के फूलों में बैठने की दर अधिक है।

इसी तरह अधिक प्रदूषित क्षेत्रों की मधुमक्खियों का हृदय, रक्त कोशिका (ब्लड सेल काउंट) और तनाव, प्रतिरक्षा और चयापचय, अभिव्यक्ति के लिए जीन कोडिंग में महत्वपूर्ण अंतर देखा गया।  

तिरुवनंतपुरम के बिहेवियरल एंड इवोल्यूशनरी इकोलॉजी (बीईई) की प्रयोगशाला में मधुमक्खी के व्यवहार और परागण पारिस्थितिकी की अध्ययनकर्ता डॉ. हेमा सोमनाथन कहती हैं - यह अध्ययन बेंगलुरु में प्राकृतिक रूप से रहने वाली जंगली मधुमक्खियों के साथ किया गया था। हाइव बॉक्सों में रखी गई मधुमक्खियां पहले से ही तनावग्रस्त हो सकती हैं। इस प्रकार, मेरी राय में, यह अध्ययन हमें गंभीर सबूत प्रदान करता है। जंगली मधुमक्खियों के लिए यह ठीक नहीं हैं। 

भारत में बढ़ते शहरीकरण को देखते हुए, व्यापक प्रभाव पड़ने की आशंका जताई गई है। समय के साथ-साथ परिस्थितियों  के और खराब होने की आशंका है।

सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि शोधकर्ताओं द्वारा मध्यम और अत्यधिक प्रदूषित इलाको से एकत्र की गई 80 फीसदी से अधिक मधुमक्खियां 24 घंटों के अंदर मर गई थीं। कॉउन्सिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के संस्थापक और सीईओ अरुणाभ घोष कहते हैं, अब तक, भारत में वायु गुणवत्ता के अधिकांश अध्ययनों ने प्रदूषण के स्रोतों या मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव को माना है। इस अध्ययन में परागणकों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के बारे में जांच की गई है। जिसका भारत में कृषि उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इस तरह के निष्कर्ष भारत की व्यापक वायु गुणवत्ता मानकों को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हैं।

अध्ययन के परिणाम बताते है कि हमारे पास अब ठोस सबूत है कि वायु प्रदूषण, न केवल हमारे स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा हैं, बल्कि उन जंगली जानवरों और पौधों को भी प्रभावित कर रहा है जो जीने के लिए प्रकृति पर निर्भर हैं। हमारे पास जिन जटिल पारिस्थितिक तंत्रों का हिस्सा हैं, उनके लिए इसके दूरगामी प्रभाव हैं, क्योंकि ये परिवर्तन आवास और खाद्य स्रोतों की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, जिन पर हम सभी निर्भर हैं।

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