पराली जलाने से हर साल हो रहा है 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान

आईएफपीआरआई ने उत्तर भारत में पराली जलाने से होने वाले नुकासानों का पांच साल तक आकलन किया है और कई चौंकाने वाले तथ्य प्रस्तुत किए हैं 

By Jitendra
Published: Monday 21 October 2019
Photo: Vikas Choudhary

उत्तर भारत में जलने वाली पराली की वजह से देश को लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है। यह नुकसान वायु प्रदूषण की आर्थिक के साथ बीमारियों पर खर्च के तौर पर होता है। यह आकलन अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) ने लगाया है। दिलचस्प बात यह है कि यह राशि केंद्र सरकार के बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए किए जाने वाले प्रावधान से लगभग तीन गुणा अधिक है।

इसके अलावा आईएफपीआरआई ने पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण आर्थिक नुकसान का भी विश्लेषण किया। इसके मुताबिक हर साल लगभग 7 बिलियन डॉलर यानी 50,000 करोड़ रुपये का नुकसान भारत को झेलना पड़ता है। आईएफपीआरआई ने पांच साल तक फसल अवशेष जलाने (पराली) का अध्ययन किया है और कहा है कि फसल अवशेषों और पटाखों की वजह से लगभग 190 बिलियन डॉलर या भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.7 प्रतिशत नुकसान होना है।

उल्लेखनीय है कि इन दिनों दो कृषि प्रधान राज्य पंजाब और हरियाणा में इन दिनों पराली जलाई जा रही है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अकेले पंजाब में अनुमानित 44 से 51 मिलियन मीट्रिक टन धान अवशेष जलाया जाता है। इससे होने वाले प्रदूषण हवाओं के साथ दिल्ली-एनसीआर में पहुंच जाता है। अध्ययन कहता है कि अकेले धान अवशेष को जलाने से अकेले 2015 में भारत में 66,200 मौतें हुईं। इतना ही नहीं, अवशेष जलने से मिट्टी की उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ा। साथ ही, इससे पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैस की वजह से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में बच्चों (5 वर्ष से कम) और बुजुर्ग (59 वर्ष से अधिक) फसलों के अवशेष के जलने की वजह से होने वाले तीव्र श्वसन संक्रमण (एआरआई) का खतरा अधिक होता है।

अध्ययन में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों की तुलना में हरियाणा में एआरआई का जोखिम 50 गुना अधिक है। अध्ययन के सह-लेखक वाशिंगटन विश्वविद्यालय से सुमन चक्रवर्ती ने कहा, फसल जलने के नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों से लोगों की उत्पादकता भी कम होती है और अर्थव्यवस्था व स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।

आईएफपीआरआई के शोधार्थी और सह-लेखक कहते हैं कि हरियाणा और पंजाब में किसानों द्वारा कृषि फसल के अवशेषों के धुएं जैसे कि विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब में खराब हवा के कारण जिलों में रहने वाले लोगों के लिए एआरआई के जोखिम को तीन गुना बढ़ाते हैं।

गौरतलब है कि 10 दिसंबर 2015 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में फसल अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। बावजूद इसके, इसमें कमी नहीं आई है। बल्कि इस साल इसमें वृद्धि की खबरें आ रही हैं।

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