नियमों का उल्लंघन कर रहा है लखनऊ का यह वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya
Published: Tuesday 02 May 2023

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कोर्ट में सबमिट संयुक्त निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ के  शिवरी गांव में मौजूद नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधा नियमों का उल्लंघन कर रही है।

जानकारी दी गई है कि इस सुविधा में लीचेट के उचित प्रकार से संग्रह और उपचार प्रणाली का अभाव है। निरीक्षण के दौरान प्लांट में लीचेट फर्श पर फैला हुआ था। इतना ही नहीं, वो पानी के नाले के माध्यम से बहता पाया गया। वहीं पास से बहने वाला नाला प्लांट के लीचेट से भर गया था। मामला उत्तरप्रदेश के लखनऊ का है।

जानकारी दी गई है कि इस संयंत्र की कुल क्षमता 1200 टन रोजाना है। जो करीब 19 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस प्लांट के लिए कचरे को घर-घर जाकर इकट्ठा किया जाता है और सीधे या ट्रांसफर स्टेशन के जरिए प्लांट तक पहुंचाया जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ में ग्वारी, मालपुर और प्रियदर्शन कॉलोनी में तीन ट्रांसफर स्टेशन स्थित हैं। वर्तमान में ग्वारी में केवल एक सेकेंडरी ट्रांसफर स्टेशन है जो जोन - IV को पूरा करता है, वो चालू स्थिति में है, जबकि शेष दो माध्यमिक स्थानान्तरण स्टेशन बंद हैं। वहीं लखनऊ में डोर टू डोर केवल 60 फीसदी कचरा इकठ्ठा किया जा रहा है।

ठोस अपशिष्ट के संघनन के लिए संयंत्र ने 64 पीसीटीएस (पोर्टेबल कॉम्पैक्ट ट्रांसफर स्टेशन) स्थापित किए हैं। हालांकि वर्तमान में केवल 59 पीसीटीएस चालू हैं। निरीक्षण के दौरान एक ट्रॉमेल चालू नहीं पाया गया। वहीं मैकेनिकल लिफ्टिंग सिस्टम भी चालू नहीं था। ऐसे में फिलहाल जेसीबी के जरिए कूड़ा उठाया जा रहा है।

100 मिमी से अधिक आकार के कचरे की पहचान आरडीएफ के रूप में की गई है और उसे संयंत्र में रखा जा रहा है। किसी भी प्रोसेसिंग प्लांट में आरडीएफ नहीं भेजा जा रहा है। 

कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना से हुए नुकसान की बहाली के लिए 447 करोड़ रुपए का बजट किया गया प्रस्तावित

पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित संयुक्त समिति ने कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई  केएलआईएस) परियोजना के लिए 447 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तावित किया है जो वहां क्षति, उपचार और बहाली पर खर्च किया जाएगा। यह परियोजना तेलंगाना के करीमनगर जिले में है।

गौरतलब है कि इस परियोजना को पर्यावरण मंजूरी लिए बिना ही शुरू कर दिया गया था। ऐसे में एनजीटी ने  20 अक्टूबर, 2020 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को इसकी वजह से पर्यावरण को हुए नुकसान का आंकलन करने और उसे प्रतिकूल प्रभावों को रोकने के लिए बहाली के उपायों की पहचान करने के लिए कहा था। जिससे पारिस्थितिकी पर पड़ते प्रभावों को सीमित किया जा सके।

इसी को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने 2007 से 2017 के बीच पर्यावरण को हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए एक सात सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। साथ ही इस समिति को राहत और पुनर्वास के उपायों के साथ आवश्यक बहाली से जुड़े उपायों की पहचान के लिए भी कहा गया था। रिपोर्ट का कहना है कि, "एनजीटी द्वारा निर्देशित और निष्कर्ष के अनुसार, 2008 से 2017 के बीच परियोजना प्रस्तावक ने स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन किया था।"

वृंदावन में पेड़ों के आसपास नहीं किया गया कंक्रीटीकरण: रिपोर्ट

मथुरा लोक निर्माण विभाग ने एनजीटी को आश्वासन दिया कि भविष्य में वृंदावन में विभाग द्वारा किसी भी क्षेत्र में कोई कंक्रीटीकरण न किया जाए इसके प्रयास किए जाएंगें। मामला उत्तर प्रदेश के मथुरा में सड़कों को कंक्रीट डालकर पक्का किए जाने से जुड़ा है। पता चला है कि चैतन्य विहार और रमनरेती में पुरानी सड़कों को दुरुस्त करने के लिए पीडब्ल्यूडी द्वारा उनपर 15 सेंटीमीटर कंक्रीट डाला गया था।

इस बारे में 28 अप्रैल, 2023 को कोर्ट में सबमिट रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां सड़कों को चौड़ा नहीं किया गया है। साथ ही पेड़ों के चारों और आसपास के क्षेत्र को मिट्टी का ही रखा गया है। साथ ही यमुना परिक्रमा मार्ग पर, 2018 के बाद से फुटपाथ पर कोई इंटरलॉकिंग नहीं की गई है। वहीं ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा मिट्टी के फुटपाथ को इंटरलॉकिंग टाइल्स के स्थान पर विकसित किया गया है।

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