लैंडफिल से निकलने वाली मीथेन को ऊर्जा में बदलकर ग्रीनहाउस गैस पर लगेगी लगाम

लैंडफिल से मीथेन का उत्सर्जन एक अरब टन सीओ2 के बराबर होता है या मोटे तौर पर एक वर्ष में चलने वाली लगभग 2.2 करोड़ कारों से उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस उत्सर्जन के बराबर होता है।

By Dayanidhi
Published: Wednesday 20 April 2022

दुनिया भर में इंसान हर साल अरबों टन ठोस कचरा पैदा करते हैं। इस कचरे का लगभग 70 फीसदी हिस्सा लैंडफिल में जमा हो जाता है, जहां यह धीरे-धीरे सड़ जाता है। बेकार पड़ा मलबा एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा है, जो माइक्रोबियल या सूक्ष्मजीव की गतिविधि से भरा हुआ होता है। सूक्ष्मजीवों के विशाल समुदाय कचरे से अपना भोजन करते हैं, इसे उप-उत्पादों में बदल देते हैं, यह मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) और मीथेन होती है।

जबकि अधिकांश लैंडफिल द्वारा मीथेन को कैप्चर कर लिया जाता है और छोड़ दिया जाता है। शोधकर्ताओं ने इस संसाधन का उपयोग करने का सुझाव दिया है, जिसे ईंधन, बिजली में बदला जा सकता है या घरों को गर्म करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।

एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी और औद्योगिक सहयोगियों के साथ प्रमुख अध्ययनकर्ता मार्क रेनॉल्ड्स ने लीचेट में पनपने वाले माइक्रोबियल समुदायों का पता लगाया हैं। शुष्क लैंडफिल में पाए जाने वाले विशिष्ट माइक्रोबियल की संरचना और व्यवहार, अधिक उपोष्णकटिबंधीय या समशीतोष्ण जलवायु में समान समुदायों से अलग होता है। लैंडफिल में जमा कूड़े की समय के आधार पर माइक्रोबियल संरचना भी भिन्न होती है।

ठोस कचरा

अध्ययन में लैंडफिल के पारिस्थितिकी तंत्र-स्तर के माइक्रोबियल संरचना के बारे में पता लगाया गया है। अलग-अलग पर्यावरणीय परिस्थितियां माइक्रोबियल को प्रभावित करती हैं जो लैंडफिल के भारी हिस्से में विभाजित होता है।

बायोडिजाइन स्वेट सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल बायोटेक्नोलॉजी के शोधकर्ता रेनॉल्ड्स कहते हैं कि इन सूक्ष्मजीवों के लिए लैंडफिल एक बड़े कार्बन बुफे की तरह होता है। हमारा कचरा ज्यादातर भारी कागज की तरह है और यह वास्तव में सेल्यूलोज और हेमिकेलुलोज से भरा हुआ है। ये ऑक्सीजन की कमी वाली परिस्थितियों में आसानी से सड़ जाता है।

लैंडफिल में उत्पादित गैसों को कैप्चर और उपयोग करने से लैंडफिल उत्सर्जन से जुड़े खतरों को कम करने में मदद मिल सकती है। मीथेन को वायुमंडल में जाने से रोका जा सकता है। इसके अलावा, लैंडफिल गैस को कैप्चर और प्रसंस्करण से जुड़ी ऊर्जा परियोजनाएं राजस्व उत्पन्न कर सकती हैं और समुदाय में रोजगार पैदा कर सकती हैं।

इन मीथेन-उत्पादक सूक्ष्मजीवों के व्यवहार को बेहतर ढंग से समझ कर, शोधकर्ता इस महत्वपूर्ण संसाधन का उपयोग करने में सुधार करने की उम्मीद करते हैं। संभवतः मीथेन और सीओ 2 - दो शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेवार है। लैंडफिल से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल में जाने से सीमित करते हैं।

रेनॉल्ड्स कहते हैं मीथेन-उत्पादक जीवों के संगठनात्मक पैटर्न को चलाने वाले स्रोत तक पहुंचने की कोशिश करने के लिए हम पारिस्थितिक सिद्धांत को अपना रहे हैं। अध्ययन के बहुआयामी विश्लेषण से संकेत मिलता है कि तापमान और घुलने वाले ठोसों के दो प्रमुख पैरामीटर हैं जो उनकी बहुतायत और विविधीकरण को नियंत्रित करते हैं। यह अच्छी खबर है, क्योंकि यह आंकड़े आमतौर पर मासिक आधार पर लैंडफिल साइटों पर नियमित रूप से कैप्चर किया जाता है और उसका सटीक निदान प्रदान कर सकता है, यह पूरी मीथेन उत्पादन में व्यापक रुझानों को बताने वाले संकेत है।

कचरे से ईंधन तक

2019 में म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट लैंडफिल में मीथेन उत्सर्जन का 15 फीसदी से अधिक हिस्सा था, जो वैश्विक मीथेन उत्सर्जन के तीसरे सबसे बड़ा स्रोत है। जैसा कि अध्ययन में गौर किया है, लैंडफिल से मीथेन का उत्सर्जन एक अरब टन सीओ2 के बराबर होता है, या मोटे तौर पर एक वर्ष के लिए संचालित लगभग 2.2 करोड़ कारों द्वारा उत्पादित ग्रीनहाउस उत्सर्जन के बराबर होता है।

आमतौर पर लैंडफिल में सूक्ष्मजीवों द्वारा छोड़े गए अधिकांश मीथेन को बायोगैस के रूप में कैप्चर कर लिया जाता है और बाद में इसे सीओ 2 में परिवर्तित कर दिया जाता है। यद्यपि यह विधि मीथेन के जलवायु पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को सीमित करती है। हालांकि यह लैंडफिल से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की समस्या का एक अल्पकालिक समाधान है।

जलवायु पर इसके प्रतिकूल प्रभाव के अलावा, गायब हुआ मीथेन इस मूल्यवान संसाधन को हासिल करने के एक अवसर का प्रतिनिधित्व करता है। अध्ययन का अनुमान है कि अगर आर्थिक और अन्य बाधाओं को दूर किया जाए, तो देश के लैंडफिल का लगभग पांचवां हिस्सा इस तरह के कैप्चर और प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त होगा।

वर्तमान में नगर निगम के ठोस अपशिष्ट को नष्ट करने वाले सूक्ष्मजीव लगभग 50 फीसदी मीथेन और 50 फीसदी सीओ2 युक्त लैंडफिल गैस उत्पन्न करते हैं। इन सूक्ष्मजीवों के सूक्ष्म कामकाज को समझकर विशेष रूप से, मिथैनोजन आर्किया, जो मीथेन उत्पादन चक्र में वास्तविक उत्पादक हैं। शोधकर्ताओं को  मीथेन उत्पादन में बढ़ावा देने की उम्मीद है।

बढ़ी हुई मीथेन को कैप्चर किया जा सकता है और बिजली, बिना कार्बन वाले ईंधन बनाने या घरों को गर्म करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। बाद वाला विकल्प विशेष रूप से आकर्षक है क्योंकि मीथेन के आगे प्रसंस्करण की आवश्यकता नहीं होगी। वैकल्पिक रूप से, माइक्रोबियल समुदायों को संशोधित करने का संभावित रूप से मीथेन उत्पादन को सीमित करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।

मोटे तौर पर 80 फीसदी माइक्रोबियल या सूक्ष्मजीवों की विविधता काफी हद तक खोजी नहीं गई है। रेनॉल्ड्स कहते हैं हमारी प्रयोगशालाएं वास्तव में मिथेनोजेन्स में रुचि रखती हैं क्योंकि वे वही चयापचय आर्द्रभूमि में करते हैं, जो उन्हें मीथेन का उच्चतम स्रोत बनाते हैं, या इसके बजाय मानव गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट, वे लैंडफिल में होते हैं।

चूंकि मिथेनोजेन्स, एकल-कोशिका वाले जीव हैं, वे समान रूप से पौधे या खाद्य पदार्थ या कागज उत्पादों का उपयोग कर सकते हैं। जबकि अध्ययन में अन्य लैंडफिल की तुलना में उनके शुष्क लैंडफिल साइट पर समान मीथेन सांद्रता पाई गई, मीथेनोजेन्स के विभिन्न समुदाय भारी मात्रा में मीथेन का उत्पादन कर रहे हैं।

अध्ययन से पता चलता है कि माइक्रोबियल का व्यवहार जमा किए गए ठोस कचरे की उम्र पर भी निर्भर करता है। पुराने कचरे की तुलना में नए कचरे का तापमान अधिक होता है और विभिन्न व्यवस्थाओं के अनुसार उनका क्षरण होता है। समय के साथ ठोस कचरे के टूटने पर शुष्कता को बहुत प्रभावित करने के लिए भी दिखाया गया है।

रेनॉल्ड्स कहते हैं, लैंडफिल में इन शुष्क जलवायु माइक्रोब्स या सूक्ष्मजीवों का पुनर्गठन होता है। भविष्य में जांच का उद्देश्य इन समुदायों में उनके समशीतोष्ण और आर्द्र समकक्षों के सापेक्ष अंतरों को स्पष्ट करना होगा।

उन्होंने कहा आगे के शोध लैंडफिल माइक्रोबियल समुदायों के साथ-साथ बायोस्टिमुलेंट्स या अन्य तकनीकों के उपयोग का पता लगाएंगे जिनका उपयोग मीथेन उत्पादन को संशोधित करने के लिए किया जा सकता है। यह अध्ययन एप्लाइड एंड एनवायर्नमेंटल माइक्रोबायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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