इमेजिंग तकनीक से पता लगाया जा सकता है कि भूस्खलन होने की आशंका कहां है

नई तकनीक का उपयोग अत्यधिक संवेदनशील परियोजनाओं के निर्माण जैसे परमाणु ऊर्जा या पानी के लिए भंडारण सुविधाएं कहां होनी चाहिए या कहां नहीं यह निर्धारित करने के लिए भी किया जा सकता है।

By Dayanidhi
Published: Friday 21 May 2021
Photo : Wikimedia Commons

हर साल भूस्खलन से दुनिया भर में हजारों लोग मारे जाते हैं और संपत्ति का नुकसान होता है। लेकिन वैज्ञानिक अभी भी उन परिस्थितियों को बेहतर ढंग से समझने की कोशिश कर रहे हैं जो उन्हें पैदा करती हैं। उन परिस्थितियों के बारे में बेहतर समझ से लोगों को यह अनुमान लगाने में मदद मिलेगी कि भूस्खलन कहां हो सकता है और वह कितना गंभीर होगा।

इस बात का पता लगाने के लिए पृथ्वी और अंतरिक्ष विज्ञान के लॉस एंजिल्स में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसीएलए) के प्रोफेसर सेल्गी मून के नेतृत्व में एक अध्ययन किया गया है, जो भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।   

मून और जेन ली ने यह समझने के लिए एक नई विधि बनाई है, जिसके तहत पता लगाया जा सकता है कि किसी स्थलाकृतिक में तनाव कैसे होता है। यह सभी जानते हैं कि, यह तब होता है जब पृथ्वी की सतह के नीचे टेक्टोनिक प्लेट्स एक दूसरे की ओर खिसकती हैं जो ऊपर के भाग को बदलने के लिए पर्याप्त होती हैं, यही भूस्खलन की घटनाओं को प्रभावित करती हैं।

यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं के बारे में जानकारियों को जोड़ने वाला पहला अध्ययन है जो पृथ्वी की सतह और टेक्टोनिक या विवर्तनिक स्तर दोनों पर होता है। मून ने कहा हमने पाया कि बड़े भूस्खलन की भयावहता केवल ढलान और वर्षा जैसी स्थानीय परिस्थितियों से प्रभावित होती है, बल्कि गहरे भूमिगत बलों से भी प्रभावित हो सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि पृथ्वी की सतह की प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए जमीन के ऊपर और नीचे के परस्पर प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण है।

अध्ययन के लिए, वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की सतह के नीचे गहरे स्थानों की पहचान करने के लिए 3 डी स्थलाकृतिक तनाव मॉडलिंग नामक एक मौजूदा तकनीक को नए तरीके से विकसित किया। जहां लंबे समय से चट्टानों पर मौसम की मार पड़ रही होती है, जिसका अर्थ है कि वे प्राकृतिक भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से कमजोर हो गए हैं या टूट गए हैं। उन स्थानों की पहचान करके, मॉडल यह निर्धारित कर सकता है कि कौन से स्थान भूस्खलन के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं। यह अध्ययन नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ है।

मून ने कहा भूस्खलन से निपटने की योजना बनाने के लिए पृथ्वी विज्ञान और भूविज्ञान को समझना महत्वपूर्ण है। मून और ली ने पूर्वी तिब्बती पठार पर लॉन्गमेन पर्वत पर शोध किया। इसके लिए उन्होंने भूस्खलन के आकार और स्थानों का पता लगाने के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन उपग्रह छवियों का उपयोग किया।

उन उपग्रह छवियों की तुलना उन्हीं स्थानों पर चट्टानों के टूटने और धीरे-धीरे नष्ट होने से की जाती है, जिनके बारे में मून ने कहा कि पृथ्वी की सतह की स्थलाकृति से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

जिन क्षेत्रों में जमीन के नीचे की चट्टान विशेष रूप से कमजोर या टूट गए हैं, वे बड़े भूस्खलन की चपेट में सकते हैं। मून की तकनीक, जो उच्च-रिज़ॉल्यूशन भूमिगत तनाव के आंकड़ों का उपयोग करती है, इसने  वैज्ञानिकों को चट्टानों के टूटने के बारे में पता लगाने में सक्षम बनाया जो।

इसके बिना इसका पता नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि यह पृथ्वी की सतह के नीचे 500 मीटर या लगभग 1600 फीट नीचे होता है। उच्च-रिज़ॉल्यूशन भूमिगत तनाव के आंकड़े शोधकर्ताओं को उच्च तनाव के कारण क्षतिग्रस्त जमीन के नीचे के क्षेत्रों का पता लगाने में मदद करती है।

नई तकनीक का उपयोग अत्यधिक संवेदनशील परियोजनाओं के निर्माण जैसे परमाणु ऊर्जा या पानी के लिए भंडारण सुविधाएं कहां होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए यह निर्धारित करने के लिए भी किया जा सकता है।

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