हिंदू कुश हिमालय में अभी भी संरक्षित क्षेत्र प्रणाली से बाहर हैं 76 फीसदी प्रमुख पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र

अनुमान है कि सदी के अंत तक हिन्दुकुश हिमालय का करीब 80 से 86 फीसदी हिस्सा अपने वास्तविक स्वरुप को खो देगा

By Lalit Maurya
Published: Monday 22 August 2022

जैवविविधता से समृद्ध हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) में अभी भी 76 फीसदी प्रमुख पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र प्रणाली से बाहर हैं। यह जानकारी जर्नल कंज़र्वेशन साइंस एंड प्रैक्टिस में प्रकाशित अध्ययन में सामने आई है। इसमें कोई शक नहीं कि संरक्षित क्षेत्र,  जैव विविधता संरक्षण और सतत विकास को बढ़ावा देने की एक महत्वपूर्ण रणनीति है।

इसके महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया का करीब 15.7 फीसदी हिस्सा संरक्षित क्षेत्रों के रूप में है। जो न केवल जैवविविधता और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देता है साथ ही सीधे तौर पर 110 करोड़ लोगों के जीवन का आधार है।

पिछले कुछ दशकों में इन्हें स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास भी किए गए हैं। लेकिन इसके बावजूद हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में अभी भी प्रमुख जैवविविधता और पारस्थितिकी के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण क्षेत्र इस प्रणाली से बाहर हैं जोकि संरक्षण के दृष्टिकोण से एक बड़ी चुनौती है। 

हिन्दू कुश हिमालय के लिए वैश्विक जैवविविधता के दृष्टिकोण से बहुत मायने रखता है, वो करीब 42 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसमें भूटान और नेपाल पूरी तरह शामिल हैं, जबकि भारत अफगानिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान के पर्वतीय हिस्से शामिल हैं।

250 वर्ग किलोमीटर से भी छोटे हैं 47 फीसदी संरक्षित क्षेत्र

हिंदू कुश हिमालय में शोधकर्ताओं द्वारा किए इस विश्लेषण से पता चला है कि इस क्षेत्र में कुल छोटे-बड़े 575 संरक्षित क्षेत्र हैं, जो इसके कुल भूभाग का 40.17 फीसदी हिस्सा कवर करते हैं। यदि वैश्विक संरक्षित क्षेत्र के कुल हिस्से से इसकी तुलना करें तो यह उसके करीब 8.5 फीसदी के बराबर बैठता है।

यदि जैवविविधता की बात करें तो इस क्षेत्र में मौजूद अकेले इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट में स्थानीय पौधों की 7,000 प्रजातियां हैं, जबकि दुनियभर की 1.9 फीसदी स्थानिक रीढ़दार जीव मिलते हैं। इसी तरह पूर्वी हिमालय क्षेत्र में पौधों की 7,000 से ज्यादा प्रजातियां, 175 स्तनपायी जीव और पक्षियों की 500 से ज्यादा प्रजातियों के बारे में जानकारी उपलब्ध है। यहां ऊंचे पर्वतीय बायोम भोजन, पानी, आवास, परागण और जलवायु को नियंत्रित करते हैं जोकि इस क्षेत्र में रहने वाले 190 करोड़ लोगों को आधार प्रदान करते हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो हिन्दू कुश हिमालय क्षेत्र कई तरह के खतरों और बदलावों के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। यह क्षेत्र भू-भौतिक रूप से बहुत नाजुक है जहां कटाव और भूस्खलन की आशंका हमेशा बनी रहती है।

ऊपर से जिस तरह से इस क्षेत्र में अनियोजित विकास और भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है वो अपने साथ बड़ी समस्याएं पैदा कर रहा है। ऊपर से आक्रामक प्रजतियां यहां जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी सेवाओं और लोगों पर व्यापक असर डाल रही है।

यदि इस क्षेत्र में मौजूद संरक्षित क्षेत्रों को देखें तो यहां 335 महत्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र (आईबीए), 348 प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र (केबीए), 12 ग्लोबल 200 इकोरीजन और 4 वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट मौजूद हैं। लेकिन इनके बावजूद अभी भी यहां मौजूद जैवविविधता के मामले में संरक्षित क्षेत्र प्रणाली का यह दायरा बहुत सीमित है।

सदी के अंत तक हिन्दुकुश हिमालय का 86 फीसदी हिस्सा खो सकता है अपना मूल स्वरुप

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यहां महत्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र (आईबीए) का 76 फीसदी हिस्सा संरक्षित क्षेत्र प्रणाली से बाहर है। इसी तरह 67 फीसदी इकोरीजन, 39 फीसदी जैवविविधता हॉटस्पॉट और 69 फीसदी प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र (केबीए) इस सिस्टम का हिस्सा नहीं हैं।

इतना ही नहीं यहां मौजूद लगभग 47 फीसदी संरक्षित क्षेत्र आकार में काफी छोटे हैं जिनका दायरा 250 वर्ग किलोमीटर से भी कम है। जिनका दूसरे संरक्षित क्षेत्रों से कोई जुड़ाव नहीं है, जोकि एक बड़ी समस्या है। साथ ही ज्यादातर संरक्षित क्षेत्र निचली सीमाओं के आसपास हैं।

साथ ही जलवायु में आता बदलाव भी इस क्षेत्र के लिए एक बड़ी समस्या है। हिन्दुकुश हिमालय विशेष रूप से इंडो-बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन के हॉटस्पॉट्स विशेष रूप से खतरे में हैं। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो सदी के अंत तक हिन्दुकुश हिमालय का करीब 80 से 86 फीसदी हिस्सा अपने वास्तविक स्वरुप और मूल आवास को खो देगा।

ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि इन क्षेत्रों के बीच कनेक्टिविटी में सुधार के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सीमाओं से परे सहयोग की जरुरत है। साथ ही इन क्षेत्रों को एक व्यापक संरक्षित क्षेत्र के रूप में जोड़ने के लिए संभावित गलियारों का आकलन और सीमांकन करने की जरुरत है।

इसके साथ-साथ संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन को कहीं ज्यादा सशक्त करने की भी जरुरत है। विशेष रूप से हिन्दू कुश हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में जैवविवधता संरक्षण के लिए विशेष रूप से ध्यान देने की जरुरत है।

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