सकल पर्यावरण उत्पाद का कैसा होगा निर्धारण, कैसे नपेगी जल-जंगल-जमीन?

सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) का मूल्यांकन करने के लिए पहली बार कोई सूचकांक तैयार किया गया है

इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई

गर्म होती दुनिया में हम किस तरह विकास कर रहे हैं इसके पुनर्मूल्यांकन को अब बल मिलने लगा है। विकास का पारंपरिक संकेत मसलन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), उत्पादन और वृद्धि को मापता है। लेकिन, जीडीपी यह पता लगाने में विफल है कि मनुष्यों की गतिविधियों का पर्यावरण की गुणवत्ता और समाज की सलामती पर क्या असर पड़ता है। ऐसे में जरूरत है एक ऐसी अवधारणा की, जो पर्यावरण पर होने वाले असर, सामाजिक असमानताएं, निरंतरता का असर और मानव द्वारा संसाधनों के इस्तेमाल के नकारात्मक प्रभाव को माप सके, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के लिए ये बेहद अहम हैं।

इन नुकसानों का हल निकालने और विकास के साथ-साथ पर्यावरण की बेहतरी को नापने के लिए साल 2021 में उत्तराखंड सरकार ने सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) शुरू करने की घोषणा की। यह घोषणा करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य था। इस कदम का लक्ष्य प्राकृतिक संसाधनों की वृद्धि और स्वास्थ्य का मूल्यांकन करना एवं यह पता लगाना है कि मानवीय गतिविधियों का इन पर क्या सकारात्मक या नकारात्मक असर पड़ता है। राज्य फिलहाल सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक के नियमन पर काम कर रहा है।

अवधारणा के तौर पर सकल पर्यावरण उत्पाद की शुरुआत सबसे पहले 2011 में हिमालयन एनवायरमेंट स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन (एचईएससीओ) ने उत्तराखंड के देहरादून में की थी। इसके तहत संगठन चार चीजों वन, पानी, हवा और मिट्टी को मापता है। इकोलॉजिकल इंडिकेटर्स नाम के जर्नल में पिछले साल दिसंबर में छपा एक अध्ययन कहता है, “इनमें सुधार के लिए वैश्विक स्तर पर लगातार काम किया जा रहा है, लेकिन इन प्रयासों के प्रभावों का पता लगाने के लिए एक एकीकृत प्रणाली की कमी रही है। सकल पर्यावरण उत्पाद इसी खालीपन को भरने का प्रयास है।”(एचईएससीओ के अनिल प्रकाश जोशी ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है और इस लेख के लेखकों में वह भी शामिल हैं।)

सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक का हर घटक एक खास पहलू को उजागर करता है। वन-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक वन संसाधनों की स्थिति और मृदा-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक मिट्टी की सेहत का मू्ल्यांकन करता है। वहीं, वायु-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक वायु गुणवत्ता में सुधार पर फोकस करता है और जल-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक पानी की गुणवत्ता और इसकी मौजूदगी का मूल्यांकन करता है।

वनों की स्थिति

वन-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक पारंपरिक तौर पर टिंबर के उत्पादन से इतर वनों के पारिस्थितिक महत्वों की तरफ देखता है। इसका लक्ष्य पारिस्थितिक गतिविधियों में भूमिका निभाने वाले जलवायु-प्रतिरोधी पेड़ों के जरिए वनाच्छादित क्षेत्र बढ़ाने के मानव प्रयासों को आंकड़ों के रूप में देखना है। शोधकर्ताओं ने सूचकांक के लिए चार मापदंड तय किए हैं, कितने पेड़ लगाए गए (यह वनीकरण और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली का संकेत देता है), कितने पेड़ काटे गए (यह वनों की कटाई और वन संसाधनों पर दबाव का परिमाण बताता है) और पेड़ों की मृत्यु (यह बताता है कि कितने पेड़ बच नहीं पाए। यह वन पारिस्थितिकी तंत्र के प्रतिरोध और स्वास्थ्य के बारे में बताता है)। चौथा मापदंड जलवायु प्रतिरोधी पारिस्थितिकी कार्यों के आधार पर पेड़ों की नस्लों का लंबाई के हिसाब से श्रेणीबद्ध करना है। इन कार्यों का जिम्मा वन-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक के मूल्यांकन में शामिल शोध संस्थानों को दिया जाएगा।

वक्त के हिसाब से होने वाले बदलावों को समझने के लिए शोधकर्ता पहला आंकड़ा जिस साल से संग्रह करते हैं या जिस साल के आंकड़ों पर विचार करते हैं, उस साल को संदर्भ वर्ष के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। सूचकांक के लिए शोधकर्ता लगाए गए पेड़ और काटे गए पेड़ तथा खुद से मृत हुए पेड़ों की लंबाई के हिसाब से गुना करते हैं। हर मामले में एक औसत लंबाई श्रेणी ली जाती है। संदर्भ वर्ष के आंकड़े को जिस साल के (या चालू वर्ष) आंकड़े से निकाला जाता है, उससे घटा दिया जाता है। संदर्भ वर्ष के मूल्य के मुकाबले अंतर को सामान्यीकृत कर िदया जाता है।

जल मूल्यांकन

जल-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक जल संसाधनों की स्थिति का मूल्यांकन करता है। इसका लक्ष्य तालाबों, जल छिद्रों और चकबंधों के माध्यम से वर्षाजल संचय के जरिए पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता सुधारने के मानव व सरकारी प्रयासों का मूल्यांकन करना है। इसका समीकरण तैयार करने के लिए चालू वर्ष में बचाए गए पानी को मानव निर्मित रिचार्ज ढांचों के जरिए सतह पर इकट्ठा किया गया संचित पानी माना जाता है। इसमें से संदर्भ वर्ष में संग्रह किए गए पानी के आंकड़ों को घटा दिया जाता है। इसमें जो अंतर आता है, उसका संदर्भ वर्ष के आंकड़े के हिसाब से राशनिंग कर दिया जाता है। जल-गुणवत्ता सूचकांक के लिए भी इसी तरह का जोड़-घटाव किया जाता है, जिसमें पीएच, चालकता, घुलित ऑक्सीजन और प्रदूषण के स्तर आदि शामिल होते हैं। अंतिम जल-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक पानी की मात्रा और इसके गुणवत्ता संकेतकों को मिलाकर निकाला जाता है।

वायु गुणवत्ता

वायु गुणवत्ता सूचकांक देशभर में मापा जाता है और प्रदूषक तत्वों जैसे पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन डाई-ऑक्साइड और सल्फर डाई-ऑक्साइड की निगरानी के जरिए इसे आंकड़ों में पेश किया जाता है। यह सूचकांक शून्य से 500 तक होता है और उच्च आंकड़े खराब वायु गुणवत्ता का संकेत देते हैं। वायु-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक के लिए संदर्भ वर्ष के वायु गुणवत्ता सूचकांक को चालू वर्ष के वायु गुणवत्ता सूचकांक से घटा दिया जाता है और जो अंतर आता है, उसका संदर्भ वर्ष के आंकड़ों से राशनिंग कर दिया जाता है। इसके बाद इस आंकड़े को 1 से घटा दिया जाता है जो वायु गुणवत्ता सूचकांक के साथ विपरीत संबंध के लिए उत्तरदायी होता है। सूचकांक में बढ़ोतरी खराब होती आबोहवा की तरफ इशारा करता है।

मृदा स्वास्थ्य

मृदा-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक मिट्टी के स्वास्थ्य पर भू प्रबंधन कार्यों के प्रभाव और साथ ही जरूरी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं मसलन पौधों की वृद्धि, पोषण चक्र उपलब्ध कराने, पानी को साफ करने और कार्बन को पृथक करने की इसकी क्षमता का मूल्यांकन करता है।

रासायनिक खाद के इस्तेमाल, वनों के उजाड़े जाने और अंधाधुंध शहरीकरण के चलते इन सेवाओं पर असर पड़ा है। मृदा-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक खास तौर पर जैविक तरीके से मिट्टी में बदलाव का मू्ल्यांकन करता है। इस मूल्यांकन में जैविक जमीन का विस्तार, पौष्टिक तत्व, मिट्टी के अपरदन की दर व अन्य जरूरी संकेतकों को शामिल किया जाता है। मृदा-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक निकालने के लिए संदर्भ वर्ष के जैविक भू क्षेत्र को चालू वर्ष के भू क्षेत्र से घटाया जाता है और अंतर का मानकीकरण किया जाता है।

उत्तराखंड का सकल पर्यावरण उत्पाद

इकोलॉजिकल इंडिकेटर्स में छपे अध्ययन में शोधकर्ता उत्तराखंड के सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक के लिए मॉडल तैयार करने में वन, पानी, वायु और मिट्टी सूचकांक लेते हैं और सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक निकालने के लिए एक समीकरण का इस्तेमाल करते हैं। उत्तराखंड में व्यापक वन, नदियां और हिमालय पर्वत श्रृंखला हैं। अतः इस क्षेत्र का गहरा पारिस्थितिक महत्व है और इसके प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की पर्यावरणीय सलामती के लिए सकल पर्यावरण उत्पाद एक अनूठा माध्यम उपलब्ध करा सकता है।

इस मॉडल के तहत सभी तत्वों के आंकड़े संग्रह किए गए हैं और अध्ययन कहता है, “हवा, पानी, मिट्टी और वनों की एकीकृत गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए विस्तृत संभावित सकल पर्यावरण उत्पाद आंकड़ों के लिए 10,000 अनुरूपण किए गए।” सकारात्मक सकल पर्यावरण उत्पाद आंकड़े पारिस्थितिक लाभ व सतत कार्यों की मौजूदगी का संकेत देते हैं जबकि नकारात्मक आंकड़े उन क्षेत्रों की पर्यावरणीय चुनौतियों या दुर्दशा की तरफ इशारा करते हैं जहां त्वरित हस्तक्षेप की दरकार है। उत्तराखंड के अधिकतर आंकड़े शून्य के करीब हैं, जो बताता है कि राज्य में पर्यावरणीय संतुलन सुव्यवस्थित है व सकारात्मक और नकारात्मक असर प्रभावी तरीके से एक दूसरे का प्रतिकार करते हैं।

आंकड़ा इंगित करता है कि केंद्रीय क्लस्टर सिग्नल परिदृश्यों से अलग, खास पर्यावरण चर ने सकल पर्यावरण उत्पाद पर या तो बेहतरी या बदतरी के लिए गहरा प्रभाव डाला होगा। ग्राफ में आंकड़ा ऊपर की तरफ हल्का झुका दिखता है। इसका अर्थ यह है कि ज्यादातर स्थितियों में उत्तराखंड का पर्यावरण नुकसान की जगह पारिस्थितिक लाभ में भूमिका निभा रहा है। इस सकारात्मक रुझान का श्रेय क्षेत्र के पास उपलब्ध अकूत प्राकृतिक वास, संरक्षण के प्रयास और सतत कार्यों को दिया जा सकता है।

(अनिल प्रकाश जोशी, एचईएससीओ के संस्थापक हैं। शिवम जोशी, देहरादून स्थित पेट्रोलियम व ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय मे शोधकर्ता हैं। दुर्गेश पंत, उत्तराखंड के विज्ञान व तकनीक की राज्य परिषद के महानिदेशक हैं। हिमानी पुरोहित एचईएससीओ में पर्यावरण विज्ञानी हैं)

वृद्धि के सूत्र

सकल पर्यावरण उत्पाद (सकल पर्यावरण उत्पाद), वन, पानी, हवा और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के प्रयासों का मूल्यांकन करने की कोशिश करता है

सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक = वन-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक + मृदा-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक + वायु-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक +पानी-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक

वन-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक = [(चालू वर्ष में रोपे गये पेड़*चालू वर्ष में रोपे गये पेड़ों की लंबाई – चालू वर्ष में काटे गए पेड़*चालू वर्ष में काटे गए पेड़ों की लंबाई – चालू वर्ष में पेड़ों की मृत्यु* मृत पेड़ों की लंबाई) – (संदर्भ वर्ष में रोपे गये पेड़*संदर्भ वर्ष में रोपे गये पेड़ों की लंबाई – संदर्भ वर्ष में काटे गए पेड़* संदर्भ वर्ष में काटे गए पेड़ों की लंबाई – संदर्भ वर्ष में पेड़ों की मृत्यु*मृत पेड़ों की लंबाई)]/[(संदर्भ वर्ष में रोपे गये पेड़*संदर्भ वर्ष में रोपे गए पेड़ों की लंबाई – संदर्भ वर्ष में काटे गए पेड़*संदर्भ वर्ष में काटे गए पेड़ों की लंबाई– संदर्भ वर्ष में पेड़ों की मृत्यु*मृत पेड़ों की लंबाई)]

जल-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक = (चालू वर्ष में बचाया गया पानी – संदर्भ वर्ष में बचाया गया पानी)/संदर्भ वर्ष में बचाया गया पानी* (चालू वर्ष का जल गुणवत्ता सूचकांक – संदर्भ वर्ष का जल गुणवत्ता सूचकांक)/संदर्भ वर्ष का जल गुणवत्ता सूचकांक

वायु -सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक = 1 – [(चालू वर्ष का वायु गुणवत्ता सूचकांक – संदर्भ वर्ष का वायु गुणवत्ता सूचकांक)/संदर्भ वर्ष का वायु गुणवत्ता सूचकांक]

मृदा-सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक = (चालू वर्ष का जैविक भू क्षेत्र – संदर्भ वर्ष का जैविक भू क्षेत्र)/संदर्भ वर्ष का जैविक भू क्षेत्र

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