वृक्ष संरक्षण या कटाई अधिनियमों के लिए केंद्रीकृत दिशानिर्देशों की आवश्यकता नहीं: पर्यावरण मंत्रालय

मंत्रालय का कहना है कि प्रत्येक राज्य के पास अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर इसके लिए पहले ही नियम-कानून हैं।

By Susan Chacko, Lalit Maurya
Published: Monday 05 February 2024

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) ने एनजीटी को दिए अपने जवाब में राय व्यक्त की है कि वृक्ष संरक्षण या कटाई अधिनियमों के लिए केंद्रीकृत दिशानिर्देश तैयार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मंत्रालय का कहना है कि प्रत्येक राज्य के पास अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर इसके लिए पहले ही नियम-कानून हैं।

अपने जवाब में मंत्रालय ने आगे कहा है कि, "जमीन राज्य का विषय है और राज्य सरकार या प्रदेश प्रशासन विभिन्न नियमों और कानूनों की मदद से गैर-वन भूमि पर पेड़ों को कटाई को विनियमित करते हैं।

इतना ही नहीं कई राज्यों में वृक्ष संरक्षण और पेड़ों की कटाई के लिए विशिष्ट अधिनियम हैं। इन नियमों में राजस्व भूमि पर पेड़ों की कटाई विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश और उनके उल्लंघन के लिए दंड का भी प्रावधान है।

इन अधिनियमों और नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी विशेष प्रभारी अधिकारी द्वारा की जाती है, गैर-वन भूमि में पेड़ों की कटाई के लिए उनकी अनुमति की आवश्यकता होती है। गौरतलब है कि दो फरवरी 2024 को दिए मंत्रालय के जवाब में उन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की एक सूची भी साझा की गई जिनके पास अपने स्वयं के वृक्ष संरक्षण और उनकी कटाई के लिए अधिनियम हैं।

अरुणाचल के 25 जिलों के लिए पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं पर लगी मुहर

अरुणाचल प्रदेश के 25 जिलों के लिए पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं की आधिकारिक घोषणा कर दी गई है और उन्हें वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। इसके साथ ही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में मौजूद अंतर को दूर करने के लिए, एक कार्य योजना तैयार की गई है और उसे क्रियान्वित किया जा रहा है।

यह बातें अरुणाचल प्रदेश सरकार ने तीन फरवरी 2024 को एनजीटी में सौंपे अपने हलफनामे में कहीं हैं। अरुणाचल प्रदेश के कई शहर पहाड़ी इलाकों में हैं और स्थानीय लोग कचरे के प्रबंधन के लिए पारंपरिक तरीकों पर निर्भर हैं। मतलब घर में बचे सब्जियों के कचरे को पाले हुए जानवरों को खिलाना या खेतों और बगीचों में खाद के रूप में उपयोग करना।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि वहां पैदा होने वाला आधे से ज्यादा कचरा बायोडिग्रेडेबल होता है। ऐसे में लोगों द्वारा उसे अपने घर के पीछे बनाए गड्ढों में दबा दिया जाता है या फिर कम्पोस्ट प्लांट की मदद से उसे खाद में बदल दिया जाता है।

यह भी  जानकारी दी गई है कि राज्य में वर्षों से जमा  कचरे की मात्रा 89,383 घन मीटर से घटकर 4,509 घन मीटर रह गई है। वहीं ईटानगर और नाहरलागुन शहर इस वर्षों से जमा कचरे से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं।

वहां जो रिफ्यूज डिराइव्ड फ्यूल (आरडीएफ) पैदा होता है उसे मेसर्स डालमिया सीमेंट, शिलांग में सर्कुलर इकोनॉमी-आधारित उपयोग के लिए राज्य से बाहर भेज दिया जाता है। इतना ही नहीं यह भी जानकारी सामने आई है कि स्मार्ट सिटी मिशन के तहत ईटानगर में यागमसो नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 200 केएलडी क्षमता वाला जोहकासौ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का काम पूरा हो चुका है। वर्त्तमान में यह संयंत्र परीक्षणों से गुजर रहा है और इसके जल्द ही चालू होने की उम्मीद है।

Subscribe to Weekly Newsletter :