दुनिया भर में जंगलों का इलाका 6 दशकों में 60 फीसदी से अधिक घटा: अध्ययन

अध्ययनकर्ताओं ने दुनिया भर में भूमि उपयोग डेटासेट का उपयोग यह जांचने के लिए किया कि समय के साथ दुनिया भर में जंगल किस तरह बदले

By Dayanidhi
Published: Tuesday 02 August 2022

एक नए अध्ययन के मुताबिक पिछले 60 वर्षों में प्रति व्यक्ति वैश्विक वन क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। यह एक ऐसा नुकसान जो जैव विविधता के भविष्य के लिए खतरा है और दुनिया भर में 1.6 अरब लोगों के जीवन पर असर डालता है।

अध्ययन में पाया गया कि दुनिया भर के वन क्षेत्र में 1960 से 2019 तक 8.17 करोड़ हेक्टेयर की गिरावट आई है, जिसमें सकल वन हानि सकल वन लाभ से अधिक है।

जापान के वानिकी और वन उत्पाद अनुसंधान संस्थान (एफएफपीआरआई) के अध्ययनकर्ताओं ने दुनिया भर की भूमि उपयोग के डेटासेट का उपयोग यह जांचने के लिए किया कि समय के साथ दुनिया भर में जंगल किस तरह बदले।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि 60 साल की अवधि में दुनिया भर में जनसंख्या में वृद्धि के साथ वैश्विक वनों में आई गिरावट के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति वैश्विक वन क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है, जो 1960 में 1.4 हेक्टेयर से 2019 में 0.5 हेक्टेयर रह गई।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि जंगलों का निरंतर नुकसान और क्षरण वन पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता को प्रभावित करता है, जिससे आवश्यक सेवाएं प्रदान करने और जैव विविधता को बनाए रखने की उनकी क्षमता कम हो जाती है।

उन्होंने कहा कि यह दुनिया भर में कम से कम 1.6 अरब लोगों के जीवन पर असर डालता है, मुख्यतः विकासशील देशों में, जो अलग-अलग उद्देश्यों के लिए जंगलों पर निर्भर रहते हैं।

अध्ययन के परिणामों से यह भी पता चलता है कि दुनिया भर में वनों के स्थानीय पैटर्न में बदलाव वन परिवर्तनकाल के सिद्धांत का समर्थन करता है, मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय इलाकों के निम्न-आय वाले देशों में वन हानि होती है और अधिक आय वाले देशों में जंगलों को फायदा पहुंचता है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता रोनाल्ड सी. एस्टोक ने कहा कि मुख्य रूप से कम विकसित देशों में जंगलों को होने वाले नुकसान के इस स्थानीय पैटर्न के बावजूद, इस हानि में अधिक विकसित देशों की भूमिका का भी अधिक गहराई से अध्ययन करने की आवश्यकता है।

एस्टोक ने कहा विकसित देशों में वन संरक्षण को मजबूत करने के साथ, कम विकसित देशों में वन हानि विस्थापित हो गई है, खासकर उष्णकटिबंधीय में।

अध्ययन में कहा गया है कि भारत जैसे विकासशील देश में, जंगलों में बदलाव ने औपनिवेशिक शासन के अंत का गहनता से पालन किया, जिसके कारण मजबूत और संरक्षण आधारित वन नीतियों को अपनाया गया। जंगलों की बहाली के कारण गहन कृषि, सक्रिय सरकारी नीतियां, निजी वन उत्पादन और सामुदायिक वानिकी इसमें शामिल रही।

वास्तव में कई अध्ययनकर्ता मौजूदा सामुदायिक वन व्यवस्था, उर्फ संयुक्त वन प्रबंधन को भारत के जंगलों के बढ़ने की कुंजी के रूप में श्रेय देते हैं।

शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि दुनिया के जंगलों की निगरानी सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी)पेरिस जलवायु समझौते और 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता ढांचे सहित विभिन्न वैश्विक पर्यावरणीय और सामाजिक पहलों का एक अभिन्न अंग है।

उन्होंने कहा कि इन लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करने के लिए, दुनिया के शेष वनों के संरक्षण और वन परिदृश्यों को पुनर्स्थापित और पुनर्वास करके दुनिया भर में जंगलों के कुल नुकसान वक्र को कम से कम बराबर करने की गहन आवश्यकता है। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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