नया शोध: धीमा नहीं, तेजी से खेतों को अधिक उपजाऊ बनाते हैं केंचुए

केंचुए जब सक्रिय होते हैं, तो मिट्टी और पौधों को उनके बलगम में उत्सर्जित नाइट्रोजन के माध्यम से तेजी से उपजाऊ बनाते हैं।

By Dayanidhi
Published: Friday 04 March 2022
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

नए शोध से पता चलता है कि केंचुए में कुछ बहुमूल्य खनिज या सिंथेटिक उर्वरकों को बदलने की क्षमता होती है। यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन (यूसीडी) ने यह शोध किया है। 

शोधकर्ताओं ने कहा है कि केंचुए जब सक्रिय होते हैं, तो मिट्टी और पौधों को अपने बलगम में उत्सर्जित नाइट्रोजन के माध्यम से तेजी से उपजाऊ बनाते हैं

इससे पहले माना जाता था कि पोषक तत्वों के चक्र में केंचुए जैसे मिट्टी के जीवों की भूमिका लाभदायक तो है, लेकिन अप्रत्यक्ष के साथ-साथ धीमी भी है।

यूसीडी स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर एंड फूड साइंस के प्रोफेसर ओलाफ श्मिट ने कहा कि नई जानकारी यह है कि कीड़े से नाइट्रोजन तेजी से फसलों में जाता है। अब तक हमने माना था कि इसमें धीमी अपघटन प्रक्रियाएं और माइक्रोबियल साइकिलिंग शामिल है। लेकिन हमारे नए प्रयोगों से पता चलता है कि नाइट्रोजन (एन) और कार्बन (सी) की गतिविधि मिट्टी के जीवित जीवों से लेकर पौधे तक बेहद तेज हो सकते हैं।

मिट्टी में केंचुए की उपस्थिति को पहले से ही लंबे समय में फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए जानी जाती है। जो कि उनके खोदने और खाने के माध्यम से होती है जो मिट्टी की अच्छी संरचना बनाती है और नाइट्रोजन को छोड़ती है इस तरह मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों में बंद हो जाती है।

प्रयोगशाला और क्षेत्र की स्थितियों के तहत, आयरलैंड, जर्मनी और चीन के शोधकर्ताओं की एक टीम ने स्थिर आइसोटोप ट्रेसर नामक एक विधि का उपयोग करके केंचुओं से मिट्टी, गेहूं के पौधों और हरी मक्खियों या ग्रीनफ्लाई (एफिड्स) में पोषक तत्वों के हस्तांतरण का पता लगाया।

उन्होंने पाया कि केंचुआ से उत्पन्न नाइट्रोजन को ग्रीनफ्लाई ने प्रयोगशाला परिस्थितियों में केवल दो घंटे में और खेत से 24 घंटे के बाद में प्राप्त कर लिया था। शोधकर्ता इस बात से चकित थे कि कृमि नाइट्रोजन कितनी तेजी से मिट्टी के माध्यम से, जड़ों तक, पौधों में और पौधों के रस पर भोजन करने वाले कीड़ों में चली जाती है। यहां बताते चलें कि ग्रीनफ्लाई फसलों और उद्यान के पौधों का एक आम कीट है।

प्रोफेसर श्मिट ने कहा  यह बहुत रोमांचक है क्योंकि इससे पता चलता है कि केंचुए शायद फसलों को सीधे नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं। वे इसे ठीक उसी समय पर करते हैं जब फसलों को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है। क्योंकि केंचुए की गतिविधि और फसल वृद्धि दोनों पर्यावरणीय कारकों, ज्यादातर तापमान और नमी निर्भर होते हैं।

सिंथेटिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने के लिए कृषि प्रणालियों में नए खोजे गए फायदे विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

कृषि क्षेत्र को सिंथेटिक उर्वरकों के संभावित विकल्प के रूप में केंचुओं द्वारा आपूर्ति की गई इस नाइट्रोजन के वित्तीय फायदों को बढ़ाना चाहिए। जो बहुत महंगे हैं क्योंकि दुनिया की आपूर्ति श्रृंखला कोविड-19 महामारी और ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि से उबरना जारी है।

प्रोफेसर श्मिट ने कहा यह शोध बताता है कि किसान भूमि, मिट्टी के जीवन और नाइट्रोजन की आपूर्ति का प्रबंधन कैसे करते हैं। केंचुओं को बढ़ावा देने वाली फसल प्रथाओं को अपनाने से, इन गतिशील नाइट्रोजन लाभों को भी बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा हम पिछले शोध से जानते थे कि अच्छी केंचुआ आबादी मिट्टी में नाइट्रोजन की महत्वपूर्ण मात्रा में योगदान करती है, लेकिन हमें नहीं पता था कि वे नाइट्रोजन के साथ फसलों की आपूर्ति कर सकते हैं। 

किसान हमेशा पहले से यह नहीं जान सकते हैं कि खनिज या सिंथेटिक उर्वरकों का उपयोग कब किया जाए क्योंकि फसलों को नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं हो सकती है। यदि यह बहुत ठंडा या बहुत शुष्क होता है तो महंगा नाइट्रोजन पर्यावरण में कहीं गुम हो जाता है, क्योंकि नाइट्रेट भूजल में या नाइट्रोजन गैस के रूप में वायुमंडल में उत्सर्जित जाता है। 

उन्होंने कहा मिट्टी के अपने भंडार से, अपघटन और खनिजीकरण के द्वारा प्राकृतिक तरीके से आपूर्ति की जाने वाली नाइट्रोजन के सभी रूप आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से अत्यधिक मूल्यवान और वांछनीय हैं, इसलिए हमें उन्हें अधिकतम करना चाहिए।

मुझे नहीं लगता कि केंचुए सभी खनिज और जैविक उर्वरकों की जगह लेंगे, लेकिन प्राकृतिक पोषक तत्वों की आपूर्ति के रूप में उनका पूर्ण उपयोग खनिज या सिंथेटिक उर्वरकों के उपयोग और लागत की भरपाई कर सकता है।

कुल मिलाकर यह एक और नया कारण है कि हमें मृदा जीव विज्ञान के साथ और अधिक काम करना चाहिए। मिट्टी के जीवों जैसे केंचुओं के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए। क्योंकि हमारे भूमि उपयोग और खेती के तरीके अधिक पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ और अधिक किफायती भी होंगे क्योंकि हम सिंथेटिक उर्वरकों को बचा सकते हैं। यह शोध सॉइल बायोलॉजी एंड बायोकेमिस्ट्री पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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