जलवायु संकट-2: भारत सहित सभी एशियाई देशों में 2021 में दिखा सबसे अधिक असर

आईपीसीसी रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन को एक हद तक रोकने का यह अंतिम मौका है, जिसे हम चूक गए तो बहुत देर हो जाएगी

By Richard Mahapatra
Published: Tuesday 14 September 2021
Photo : Wikimedia Commons

9 अगस्त को जारी हुई संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि मौसम में आ रहे भयावह परिवर्तन के लिए न केवल इंसान दोषी है, बल्कि यही परिवर्तन इंसान के विनाश का भी कारण बनने वाला है। मासिक पत्रिका डाउन टू अर्थ, हिंदी ने अपने सितंबर 2021 में जलवायु परिवर्तन पर विशेषांक निकाला था। इस विशेषांक की प्रमुख स्टोरीज को वेब पर प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी के बाद पढ़ें दूसरी कड़ी -   


एशिया साल 2021 में चरम मौसमी घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित महाद्वीप रहा। जून ये यहां भीषण बाढ़ का सिलसिला जारी है जो अप्रत्याशित बारिश का नतीजा है। चीन के हेनान प्रांत में 17 जुलाई से शुरू हुई बारिश महज पांच दिनों में पूरे साल जितनी बरस गई। प्रांत की राजधानी जेंगझू 20 जुलाई को छह घंटे हुई बारिश से जलमग्न हो गया। इन छह घंटों में आधे साल जितनी बारिश हो गई। चीनी मीडिया ने मौसम विभाग के अधिकारियों के हवाले से बताया कि एक हजार साल में एक बार इतनी बारिश होती है। कुछ मीडिया रिपोर्ट में इसे 5,000 साल में एक बार होने वाली बारिश बताया गया।

भारत में मॉनसून जून में आ जाता है लेकिन इस साल 13 जुलाई तक बारिश नहीं हुई। लेकिन जब हुई तब असामान्य रूप से अत्यधिक पानी बरस गया। मध्य प्रदेश का शिवपुरी जिला आमतौर पर गर्मियों में पानी की कमी के लिए जाना जाता है। मौसम विभाग के अनुसार, 2-3 अगस्त को केवल 38 घंटों के भीतर जिले में 454.57 एमएम बारिश हो गई। यह एक साल में पूरे जिले में होने वाली बारिश का करीब 55 प्रतिशत है। जिले ने इस मॉनसून में 896.3 प्रतिशत दर्ज की है। इस क्षेत्र में औसत बारिश 816 एमएम होती है।

शिवपुरी के पोहरी ब्लॉक के सामाजिक कार्यकर्ता अजय यादव कहते हैं, “मैं 42 साल का हूं। मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार इतनी भारी बारिश देखी है। बड़े बुजुर्गों को भी वह दिन याद नहीं जब इससे अधिक बारिश देखी गई थी।” शिवपुरी के जलमग्न होने के वक्त यादव एक स्थानीय तालाब के गहरीकरण का काम कर रहे थे। इसी तरह गोवा ने 10-23 जुलाई के बीच औसत से 122 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की।

गोवा में मौसम विभाग के वैज्ञानिक राहुल एम ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस अवधि में राज्य में 471 एमएम सामान्य बारिश की तुलना में 1,047.3 एमएम बारिश दर्ज की गई। 23-24 जुलाई को उत्तरी और दक्षिणी गोवा के जिलों में 24 घंटों के भीतर 585 एमएम बारिश दर्ज की गई। यह बारिश भूस्खलन और राज्य के निचले क्षेत्रों में बाढ़ का कारण बनी। राज्य का रत्नागिरी जिला भी इस साल भीषण बाढ़ का गवाह बना जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए। यहां हुई बारिश ने जुलाई में हुई बारिश का 40 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया।

मौसम विभाग के आंकड़ों और फ्लडलिस्ट वेबसाइट के अनुसार, जिले में 1-22 जुलाई के मध्य 1,781 एमएम बारिश दर्ज की गई। यहां जुलाई की बारिश का औसत 972.5 एमएम है। राज्य के कोल्हापुर जिले में 23 जुलाई को 232.8 एमएम बारिश दर्ज की गई जो एक दिन में होने वाली सामान्य बारिश से 10 गुणा अधिक है। इसी दिन सतारा जिले में भी सामान्य से 7 गुणा अधिक बारिश दर्ज की गई। राज्य में बाढ़ की सबसे भयंकर स्थिति मुंबई की हुई। 18 जुलाई को मुंबई में 180.4 एमएम और इसके उप शहरी क्षेत्रों में 234.9 एमएम बारिश हुई। इस एक दिन में होने वाली सामान्य बारिश का यह छह से सात गुणा है (देखें, वैश्विक तापमान,क्षेत्रीय आफत,)।



अफ्रीका की मुश्किल

कोविड-19 महामारी के उभार से जूझ रहे अफ्रीका के कई देशों पर खाद्य असुरक्षा का खतरा मंडरा रहा है। यह खतरा बाढ़ और सूखे की देन है। उत्तरी अफ्रीका में इस साल जून सबसे गर्म रहा है। दक्षिणी मेडागास्कर चार दशकों के सबसे भीषण सूखे की गिरफ्त में है। 23 जून को संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) ने चेतावनी दी कि दक्षिणी मेडागास्कर में 1.14 मिलियन लोग खाद्य असुरक्षा के शिकार हैं और 4 लाख लोग भुखमरी की ओर अग्रसर हैं। दक्षिण में स्थित अफ्रीकी देशों के अधिकांश जिले कुपोषण के आपातकाल के दुष्चक्र में हैं।

डब्ल्यूएफपी ने इन हालातों को विनाशकारी बताया है और इसके लिए युद्ध या संघर्ष के बजाय जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार माना है। इसने हाल में कहा कि महिलाओं और बच्चों को खाद्य वितरण स्थल तक पहुंचने के लिए घंटों पैदल चलना पड़ता है। यूएन न्यूज ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि परिवारों को भोजन के लिए कच्चे लाल कैक्टस फलों, जंगली पत्तों और टिड्डों पर कई महीने आश्रित रहना पड़ा। इस त्रासदी को रोकने के लिए डब्ल्यूएफपी को 78.6 मिलियन डॉलर की आवश्यकता है ताकि अगले मौसम में जीवन रक्षक भोजन उपलब्ध कराया जा सके।

दक्षिणी अफ्रीका में डब्ल्यूएफपी की क्षेत्रीय निदेशक लोला केस्ट्रो ने जून में कहा कि हालात बेहद दयनीय और निराशाजनक हैं। बच्चे और वयस्क दोनों कुपोषण के शिकार हैं। डब्ल्यूएफपी के कार्यकारी निदेशक डेविड बीसले ने कहा, “इस क्षेत्र ने जलवायु परिवर्तन में योगदान नहीं दिया है फिर भी यह सबसे बड़ी कीमत चुका रहा है।” डब्ल्यूएफपी के अनुसार, 2015 से मेडागास्कर के दक्षिणी हिस्से में पिछले पांच वर्षों के दौरान औसत से कम बारिश हुई है। वर्तमान सूखा 1981 के बाद का सबसे भीषण सूखा है। ब्रिटेन स्थित मानवतावादी संगठन वर्ल्ड विजन के अनुसार, पूर्वी अफ्रीका के छह देश- इथियोपिया, केन्या, सोमालिया, दक्षिणी सूडान, सूडान और युगांडा के 7.8 मिलियन लोगों को लंबे संघर्ष, कोविड-19 महामारी और जलवायु आपदा ने भुखमरी के रास्ते पर धकेल दिया है।

कम से कम 2.6 करोड़ लोग पहले से संकटग्रस्त हैं। वर्ल्ड विजन द्वारा 28 जून को प्रकाशित सिचुएशन रिपोर्ट में चेताया गया है कि अन्य लोगों को इस स्थिति में पहुंचने से रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। तालाश ने 24 जुलाई को कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम, जलवायु और जल संबंधी आपदाओं की भीषणता बढ़ रही है। मानवीय और आर्थिक क्षति के रूप में इसकी दयनीय तस्वीर उभरती है। मूसलाधार बारिश और विनाशकारी बाढ़ ने मध्य यूरोप और चीन में पिछले कुछ हफ्तों में जानमाल को काफी नुकसान पहुंचाया है।



अंतिम मौका

इस साल जून-जुलाई की घटनाएं केवल नींद से जगाने का काम ही नहीं कर रहीं बल्कि नई वास्तविकता को स्वीकरने के लिए भी झकझोर रही हैं। अब जलवायु की चरम घटनाएं, युद्ध और जैविक घटनाओं से अधिक आर्थिक क्षति पहुंचा रही हैं। विश्व बैंक के अध्ययन “ग्लोबल प्रोडक्टिविटी : ट्रेंड्स, ड्राइवर्स एंड पॉलिसीज” के अनुसार, 1960 से 2018 के बीच युद्ध की अपेक्षा प्राकृतिक आपदाएं 25 गुणा और 2008 जैसे आर्थिक संकट के मुकाबले 12 गुणा बढ़ी हैं।

प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में जलवायु संबंधी आपदाएं जैसे चक्रवात और चरम मौसम की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। ये घटनाएं अर्थव्यवस्थाओं और श्रमबल की उत्पादकता को चोट पहुंचा रही हैं। इस अवधि में जलवायु संबंधी आपदाएं कोविड-19 जैसी जैविक आपदाओं की तुलना में दोगुनी हुई हैं। सभी प्राकृतिक आपदाओं में जलवायु संबंधी आपदाओं की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है। प्राकृतिक आपदाओं ने श्रम की उत्पादकता में सालाना 0.5 प्रतिशत की कमी ला दी है जो श्रम उत्पादकता पर पड़े युद्ध के प्रभाव का करीब 1/5 हिस्सा है। लेकिन जलवायु संबंधी आपदाएं समग्र रूप से इतनी बढ़ जाती हैं कि श्रम उत्पादकता को ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा शीघ्र प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट “एटलस ऑफ मोर्टेलिटी एंड इकॉनोमिक लॉसेस फ्रॉम वेदर, क्लाइमेट एंड वाटर एक्स्ट्रीम्स (1970-2019)” बताती है कि पिछले 50 वर्षों में मौसम, जलवायु और जल संबंधी जोखिम की सभी आपदाओं (तकनीकी जोखिम सहिम) में हिस्सेदारी 50 प्रतिशत रही है। वैश्विक स्तर पर 45 प्रतिशत मृत्यु और 74 प्रतिशत आर्थिक नुकसान इनसे हुआ है।

आईपीसीसी के आकलन में ये घटनाएं शुरू से छाई हुई हैं। यही वजह है कि गुटरेस को कहना पड़ा कि सचेत करने वाली घंटी तेजी से बज रही है और सबूतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जीवाश्म ईंधनों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और वनों की कटाई ने हमारी धरती का दम घोंट दिया है और करोड़ों लोगों को खतरे में डाल दिया है। वैश्विक गर्मी धरती के सभी क्षेत्रों पर असर डाल रही है। बहुत से बदलावों को उलटा नहीं जा सकता। गुटरेस ने आगे कहा, “हम 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने के बेहद नजदीक पहुंच गए हैं। इसके पार जाने से बचने का एकमात्र रास्ता है कि तत्काल कदम उठाए जाएं और अति महत्वाकांक्षी रास्ते पर बढ़ा जाए। हमें अब निर्णायक फैसला करना ही होगा।”

कल पढ़ें, अगली कड़ी 

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