खेती और वित्तीय संस्थानों पर जलवायु परिवर्तन किस तरह डालेगा असर, शोधकर्ताओं ने लगाया पता

अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर खेती पर पड़ता है, जिसकी वजह से खाद्य सुरक्षा को खतरा बन जाता है

By Dayanidhi
Published: Wednesday 10 April 2024
यह शोध 2022 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित हानि और क्षति कोष के विकास में विशेष रूप से सहायक हो सकता है। फोटो साभार: आईस्टॉक

शोधकर्ताओं ने कृषि पर जलवायु परिवर्तन के वित्तीय प्रभावों का पूर्वानुमान लगाने के लिए एक नई विधि विकसित की है, जो तेजी से जलवायु आपदाओं से ग्रस्त देशों के लिए खाद्य सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता लाने में मदद कर सकती है। यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सैन डिएगो स्कूल ऑफ ग्लोबल पॉलिसी एंड स्ट्रेटेजी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

अध्ययन में ब्राजील के जलवायु और कृषि संबंधी आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इसमें पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन का खेती पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, जिससे देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में से एक के लिए ऋण का डिफॉल्ट बढ़ जाता है। अध्ययन के अनुसार अगले तीन दशकों में जलवायु-संचालित ऋण का डिफॉल्ट सात फीसदी तक बढ़ सकता है।

अध्ययन में लगाए गए अनुमानों से पता चला है कि यद्यपि तापमान हर जगह बढ़ रहा है, लेकिन एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जो दिखता है उसमें पर्याप्त अंतर है, जो विभिन्न प्रकार की भौतिक और वित्तीय लचीलापन बनाने की आवश्यकता को उजागर करता है।

उदाहरण के लिए, उत्तरी ब्राजील के कुछ हिस्सों में 2050 के आसपास भारी मौसमी बदलाव होने की भविष्यवाणी की गई है, जिसमें सर्दियों में भारी बारिश और गर्मियों में सूखे की विभीषिका बढ़ेगी, इसलिए नीति निर्माताओं को बांधों और जलाशयों के निर्माण के साथ-साथ भूजल भंडारण क्षमता को बढ़ाकर जल भंडारण की आवश्यकता के बारे में सोचना चाहिए। इसके विपरीत, मध्य ब्राजील में मौसम काफी स्थिर हो सकता है, लेकिन तापमान अधिक होगा, जो गर्मी प्रतिरोधी फसलों की आवश्यकता की ओर इशारा करता है।

अध्ययनकर्ताओं ने ब्राजील में पिछले जलवायु आंकड़ों को फसल उत्पादकता, कृषि राजस्व और कृषि ऋण प्रदर्शन की जानकारी के साथ जोड़ते हुए एक सांख्यिकीय दृष्टिकोण का उपयोग किया। उन्होंने इन आंकड़ों को जलवायु सिमुलेशन के साथ जोड़कर भविष्य की मौसम संबंधी स्थितियों और खेती पर उनके प्रभावों की भविष्यवाणी की और उन बदलावों का वित्तीय संस्थानों पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका पता लगाया।

प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, कृषि पर जलवायु प्रभावों का अध्ययन करने में एक कठिनाई यह है कि हर समय सभी प्रकार के अनुकूलन होते रहते हैं जिन्हें आसानी से नहीं देखा जा सकता है, लेकिन खतरों को समझने और ये किस तरह बदल रहे हैं, यह समझने के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण हैं।

अध्ययन का एक मुख्य उद्देश्य बदलती जलवायु के तहत लचीली खाद्य सुरक्षा का समर्थन करना है, जिसके लिए यह समझने की आवश्यकता है कि कब छोटे जलवायु बदलावों का प्रभाव बहुत बड़ा हो सकता है, जो व्यापार और बैंकिंग जैसे संस्थानों के माध्यम से पूरे क्षेत्रों में या अन्य क्षेत्रों में फैल सकता है।

जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्रणालीगत खतरों को समझना नीति निर्माताओं और आपदा राहत एजेंसियों के लिए विशेष रूप से सहायक है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन तेजी से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है। इस उद्देश्य से, अध्ययन में विकसित सांख्यिकीय दृष्टिकोण को दुनिया भर में लागू किया जा सकता है।

अध्ययनकर्ताओं ने जो तकनीक विकसित की है, उससे लोगों को यह पहचानने में मदद मिलेगी कि वे कहां सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं, जलवायु परिवर्तन उन्हें आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा नुकसान कैसे पहुंचाएगा और लचीलापन बनाने के लिए उन्हें किन संस्थानों पर गौर करना चाहिए।

उदाहरण के लिए, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र की कुछ सरकारें उभरते अल नीनो सालों में वैश्विक बाजार से अतिरिक्त भोजन खरीदती हैं, जब उनकी अपनी फसल उत्पादकता प्रभावित होती है। अध्ययन में इस्तेमाल किया गया सांख्यिकीय दृष्टिकोण दुनिया भर की सरकारों को अपनी जलवायु स्थितियों को समझने में मदद कर सकता है।

अध्ययन के अनुसार, यह शोध 2022 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित हानि और क्षति कोष के विकास में विशेष रूप से सहायक हो सकता है। इस कोष को उन विकासशील देशों को मुआवजा देने में मदद करने के लिए डिजाइन किया गया है जिन्होंने जलवायु संकट में सबसे कम योगदान दिया है लेकिन इसके बाढ़, सूखा और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी विनाशकारी परिणाम का सामना कर रहे हैं।

अध्ययन में अध्ययनकर्ता ने कहा, हमारी तकनीक देशों को यह सोचने में मदद कर सकती है कि खर्च किए जा रहे धन से सबसे ज्यादा लचीलापन कहां लाया जा सकता। यह तकनीक यह पहचानने में भी मदद करती है कि अंतर्राष्ट्रीय पुनर्बीमा की आवश्यकता कहां-कहां पड़ सकती है।

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