जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अक्षय ऊर्जा तकनीकों पर करना होगा चौगुना निवेश: आईआरईएनए

यदि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना है तो अक्षय ऊर्जा तकनीकों पर हर साल करीब 411.12 लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत है

By Lalit Maurya
Published: Friday 31 March 2023

यदि जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना है तो अक्षय ऊर्जा तकनीकों के लिए किए जा रहे निवेश को चौगुना करना होगा। गौरतलब है कि 2022 में रिन्यूएबल एनर्जी तकनीकों पर करीब 106.89 लाख करोड़ रुपए (1.3 लाख करोड़ डॉलर) का निवेश किया गया था।  

ऐसे में यदि हमें पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना है तो ऊर्जा क्षेत्र में हो रहे इस निवेश को हर साल 411.12 लाख करोड़ रुपए (पांच लाख करोड़ डॉलर) करना होगा। यह जानकारी इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (आईआरईएनए) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "वर्ल्ड एनर्जी ट्रांसिशन्स आउटलुक 2023: 1.5 डिग्री पाथवे" में सामने आई है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पेरिस समझौते के तहत तापमान में होती वृद्धि को औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। हालांकि देखा जाए तो वैश्विक तापमान में होती वृद्धि पहले ही 1.2 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच चुकी है।

ऐसे में जैसे-जैसे समय बीत रहा है यह लक्ष्य और दूर होता जा रहा है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इस बात की 40 फीसदी संभावनाएं है कि अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी।

जलवायु विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि यदि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार कर जाएगी तो इसके विनाशकारी परिणाम सामने आएंगें, जिनकी भरपाई लगभग नामुमकिन होगी।

ऐसे में रिपोर्ट की मानें तो ऊर्जा क्षेत्र में फॉसिल फ्यूल्स से रिन्यूएबल के बदलावों के लिए 2030 तक करीब 2,877.86 लाख करोड़ रुपए (35 लाख करोड़ डॉलर) के निवेश की जरूरत होगी। हालांकि रिपोर्ट में यह बात भी स्वीकार की गई है कि मौजूदा समय में अक्षय ऊर्जा तकनीकों को अपनाने के लिए जो निवेश किया जा रहा है वो काफी नहीं है।

ऊर्जा क्षमता में हर साल करना होगा 1,000 गीगावाट का इजाफा

देखा जाए तो जिस तरह से ऊर्जा की मांग बढ़ रही है उसके चलते 2050 तक बिजली उत्पादन को तीन गुणा से ज्यादा करने की जरूरत है। आंकड़ों की मानें तो 2020 में कुल ऊर्जा उत्पादन 27 पेटावाट-घंटा (पीडब्लूएच) था। इसका करीब 62 फीसदी हिस्सा अभी भी जीवाश्म ईंधन और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर है, जबकि अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी केवल 28 फीसदी ही है। वहीं परमाणु ऊर्जा की मदद से दस फीसदी बिजली पैदा हो रही है।

विश्लेषण बताता है कि 2050 में बिजली की यह जरूरत बढ़कर 89.8 पेटावाट-घंटा पर पहुंच जाएगी। ऐसे में यदि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करना है तो इस ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 91 फीसदी होनी चाहिए। वहीं जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा को पांच फीसदी पर सीमित करने की जरूरत है।

रिपोर्ट के अनुसार ऐसे में यदि 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने की आशाओं को जीवित रखना है तो अक्षय ऊर्जा क्षमता को वर्त्तमान में 3,000 गीगावाट से बढाकर 2030 तक 10,000 गीगावाट करना होगा, जिसके लिए ऊर्जा क्षमता में हर साल 1,000 गीगावाट का इजाफा करने की जरूरत है।

इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (आईआरईएनए) द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट "रिन्यूएबल कैपेसिटी स्टैटिस्टिक्स 2023" से पता चला है कि 2022 में वैश्विक स्तर पर अक्षय ऊर्जा क्षमता में 9.6 फीसदी की वृद्धि हुई है। 295 गीगावाट की वृद्धि के साथ अब यह क्षमता बढ़कर 3,372 गीगावाट पर पहुंच गई है।

पता चला है कि पिछले साल अक्षय ऊर्जा क्षमता विस्तार में सौर और पवन ऊर्जा का दबदबा रहा। 2022 में अक्षय ऊर्जा में हुई कुल वृद्धि में इनकी संयुक्त रूप से हिस्सेदारी करीब 90 फीसदी थी।

यदि भारत के आंकड़ों को देखें तो भारत ने 2022 में अपनी अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 10.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है। अब भारत की अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता 2021 में 147,122 मेगावाट से बढ़कर 2022 में 162,963 मेगावाट पर पहुंच गई है।

अक्षय ऊर्जा क्षमता में हो रहा विस्तार दुनिया के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल अक्षय ऊर्जा में जो भी वृद्धि हुई है उसका करीब तो तिहाई हिस्सा चीन, अमेरिका और यूरोपियन देशों में दर्ज किया गया है। वहीं अफ्रीका की वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता में हिस्सेदारी केवल एक फीसदी ही है।

स्पष्ट है कि इस मामले में विकासशील देश अभी भी काफी फिसड्डी हैं, जिनपर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। ऐसे में रिपोर्ट में आगाह किया है कि यदि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों से बचना है तो सरकारों और निजी निवेशकों को अक्षय ऊर्जा में किए जा रहे निवेश में तेजी लाने की जरूरत है।

एक डॉलर = 82.22 भारतीय रुपए

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