ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2022: भारत के लिए ये हैं 5 सबसे बड़े खतरे, दूसरे देशों से हैं अलग

ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट में पर्यावरण से जुड़े संकटों जैसे जलवायु परिवर्तन, चरम मौसम और जैव विविधता को हो रहे नुकसान को दुनिया के लिए सबसे बड़े खतरे माना है। यह ऐसी समस्याएं हैं जिनकी कोई वैक्सीन नहीं है

By Lalit Maurya

On: Thursday 13 January 2022
 

भले ही दुनिया भर के लिए जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और कोविड-19 सबसे बड़े संकट हैं, लेकिन भारत के लिए यह सबसे बड़े खतरे नहीं हैं। इस बारे में डब्लूईएफ द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि कर्ज, डिजिटल असमानता, अंतरराज्यीय संबंधों में आती दरार देश के सामने खड़े पांच सबसे बड़े खतरों में शामिल हैं। 

यदि भारत के सामने खड़े सबसे बड़े संकट को देखें तो रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराज्यीय संबंधों में आती दरार देश के लिए सबसे बड़ा संकट है इसके बाद कर्ज, फिर व्यापक रूप से युवाओं का होता मोहभंग तीसरा सबसे बड़ा खतरा है। वहीं प्रौद्योगिकी के नियंत्रण को चौथे और डिजिटल असमानता को पांचवे सबसे बड़े खतरे के रूप में इंगित किया गया है। 

वहीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) द्वारा जारी इस 'ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2022' के हवाले से पता चला है कि दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन है, जबकि इसके बाद चरम मौसम को दूसरे और जैवविविधता को होते नुकसान को तीसरे स्थान पर रखा गया है।

गौरतलब है कि रिपोर्ट में अगले 10 वर्षों में दुनिया के लिए जिन सबसे बड़े 10 खतरों की जानकारी दिन है उनमें से यह तीन प्रमुख खतरे पर्यावरण संकट से जुड़े हैं। इसके साथ ही मनुष्य द्वारा पर्यावरण को पहुंचाए जा रहे नुकसान को सातवें और प्राकृतिक संसाधनों पर मंडराते खतरे को आठवें सबसे बड़े खतरे के रूप में पहचाना गया है।

कोविड जैसी संक्रामक बीमारियों को माना गया है छठा सबसे बड़ा खतरा

देखा जाए तो पिछले दो वर्षों से जिस तरह से कोविड-19 महामारी ने दुनिया को अपनी जकड़ में ले रखा है, वो वर्तमान में निश्चित तौर पर एक बड़ा खतरा है जो न केवल स्वास्थ्य बल्कि साथ ही लोगों की जीविका और अर्थव्यवस्था को भी खतरे में डाल रहा है। गौरतलब है कि दुनिया भर में अब तक इस महामारी के कारण 55 लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है जबकि इस महामारी से अब तक 31.8 करोड़ लोग संकर्मित हो चुके हैं। 

इसके बावजूद अगर रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े अन्य खतरों को सबसे बड़े खतरों के रूप में पहचाना गया है, तो आप इससे ही समझ सकते हैं कि दुनिया भर में जिस तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, वो न केवल वर्तमान में बल्कि आने वाले वक्त में भी हमारे लिए कितनी बड़ी आफत होगा।  

पर्यावरण के बाद सामाजिक समस्याओं को 10 सबसे बड़े खतरों में शामिल किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह से सामाजिक एकता में गिरावट आ रही है वो दुनिया के सामने चौथा सबसे बड़ा खतरा है। इसके बाद लोगों की जीविका पर मंडराते संकट को पांचवे सबसे बड़े खतरे के रूप में पहचाना गया है, जबकि कोरोना जैसी संक्रामक बीमारियों को छठें और बढ़ते कर्ज को नौवें स्थान पर रखा गया है। देशों के बीच आर्थिक टकराव को दसवां सबसे बड़ा खतरा माना है जो अगले 10 वर्षों में दुनिया के लिए बड़ा संकट पैदा करेगा। डब्लूईएफ का कहना है कि जल्द ही कोरोना से भी बड़े कई संकट दुनिया के सामने आने वाले हैं।

इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार अगले दो वर्षों में मौसम में आता बदलाव, लोगों के जीवन यापन से जुड़ी समस्याएं, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक एकता में आती कमी, खतरनाक बीमारियां, मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता असर बड़े खतरों के रूप में दुनिया के सामने आ सकते हैं। वहीं दो से पांच वर्षों के बीच इंसानों द्वारा पर्यावरण को पहुंचाया जा रहा नुकसान, साइबरसिक्योरिटी और जैवविविधता को होता नुकसान सबसे बड़े खतरे होंगे। वहीं पांच से दस वर्षों में सामाजिक एकता में आती कमी, तकनीकी विकास से जुड़ी समस्याएं दुनिया के लिए बड़ा खतरा बन सकती हैं। 

क्या है यह ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट?

हर साल वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) द्वारा ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट जारी की जाती है जिसमें दुनिया के सामने आने वाले सबसे बड़े खतरों की पहचान की जाती है। इन खतरों को पांच श्रेणियों में बांटा जाता है जिनमें पर्यावरण, सामाजिक, आर्थिक संकट, जियो-पॉलिटिक्स और तकनीक को शामिल किया जाता है। इन खतरों की पहचान के लिए न केवल शोध बल्कि वैश्विक स्तर पर रिस्क एक्सपर्ट, बिजनस, इकोनॉमिक और सिविल सोसाइटी से जुड़े दिग्गजों की राय ली जाती है।

इस साल की 'ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2022', 124 देशों के 12,000 से अधिक दिग्गजों के विचारों पर आधारित है। जिनकी राय एग्जीक्यूटिव ओपिनियन सर्वे की मदद से ली गई है। इस साल की 'ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2022', 124 देशों के 12,000 से अधिक दिग्गजों के विचारों पर आधारित है। जिनकी राय एग्जीक्यूटिव ओपिनियन सर्वे की मदद से ली गई है।

इस सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया देने वाले 84 फीसदी लोगों का कहना है कि वो दुनिया का भविष्य कैसा होगा इसको लेकर चिंतित हैं। वहीं केवल 12.1 फीसदी इस बारे में सकारात्मक हैं, जबकि केवल 3.7 फीसदी धरती के भविष्य को लेकर आशावान है।    

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