हसदेव अरण्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में अलग-अलग सुनवाई में क्या हुआ?

हसदेव अरण्य में खनन की मंजूरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट और बिलासपुर हाई कोर्ट में अलग-अलग सुनवाई हुई

By Satyam Shrivastava
Published: Thursday 12 May 2022
हसदेव अरण्य में भूमि अधिग्रहण पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने स्थगनादेश जारी किया है। फोटो: twitter @geofflaw144

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य मामले में 11 मई 2022 को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय से अलग अलग नतीजे सामने आए हैं। 

पहले मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की तरफ से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा परसा कोल ब्लॉक के लिए भूमि-अधिग्रहण में पेसा कानून को दरकिनार किया जा रहा है। 

याचिका में कहा गया था कि परसा कोल ब्लॉक संविधान की पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के तहत है, जहां पेसा कानून 1996 लागू है। पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं को विशेष शक्तियां हासिल हैं। इन शक्तियों में किसी भी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा की सहमति का प्रावधान है। जबकि सरकार इस क्षेत्र में कोयला संधारण क्षेत्र कानून, 1957 का इस्तेमाल कर रही है और इसके लिए पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं को हासिल शक्तियों को दरकिनार किया जा रहा है। 

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने उपलब्ध प्रमाणों और नज़ीरों के मद्देनजर कहा कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में निजी कंपनियों के लिए भी कोल एरिया बेयरिंग एक्ट के तहत भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में ग्राम सभाओं की सहमति जरूरी नहीं है। 

उच्च न्यायालय का यह फैसला न केवल परसा कोल ब्लॉक बल्कि अन्य राज्यों में कोयला संधारण क्षेत्रों के लिए एक नई नजीर बन गया है बहरहाल, इस निर्णय से असहमति जाहिर करने के रास्ते अभी भी खुले हैं।

दिलचस्प है कि 3 मई 2022 को बिलासपुर उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जल्दबाज़ी में इस कोल ब्लॉक के दायरे में आने वाले लगभग 300 पुराने दरख्तों को काट दिये जाने को लेकर नाराजागी भी व्यक्त की थी और सरकार पर सख्त टिप्पणी की थी। 

दूसरे मामले में सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव के आवेदन पर भारत सरकार, छत्तीसगढ़ राज्य सरकार व राजस्थान राज्य विद्युत निगम और अडानी के स्वामित्व की कंपनी परसा केते कोलरीज़ लिमिटेड को नोटिस जारी किया है। 

इस मामले की शुरूआत 2012 में हुई थी जब परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के लिए वन भूमि डायवर्जन को लेकर  सुदीप श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में शिकायत दर्ज़ की थी। पहले से घोषित नो-गो एरिया के तौर पर हसदेव अरण्य की विशिष्ट पर्यावरणीय स्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने इस डायवर्जन को रद्द कर दिया था और यह आदेश भी किया था कि इस क्षेत्र की विशिष्टताओं का अध्ययन क्रमश: भारतीय वन्य जीव संस्थान (WII)भारतीय वानिकी अनुसंधान व शिक्षा परिषद (ICFRE)  द्वारा किया जाये।

2014 में इस आदेश के खिलाफ भारत सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार, राजस्थान राज्य विधयुत निगम व अडानी के स्वामित्व की परसा केते कोलरीज़ लिमिटेड ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी। अदालत ने इस मामले में हरित प्राधिकरण के आदेश को स्थगित कर दिया था। इसके बाद से यह खदान न केवल संचालित हो रही है बल्कि तय समय से पहले ही लक्ष्य से ज़्यादा कोयला भी निकाल चुकी है। हाल ही में इसी खदान के विस्तार के लिए भी स्वीकृतियाँ प्रदान की जा चुकी है। 

सुदीप की तरफ से मामले की पैरवी करते हुए वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि आठ सालों के बाद एनजीटी के आदेश के अनुसार भारतीय वन्य जीव संस्थान (WII) व भारतीय वानिकी अनुसंधान व शिक्षा परिषद (ICFRE) ने ज़रूरी अध्ययन किए हैं इस क्षेत्र को लेकर स्पष्ट कहा है कि जो कोयला खदानें संचालित हैं उन्हें छोड़कर इस क्षेत्र में एक भी नयी खदान खुलने से गंभीर पारिस्थितकीय संकट खड़े होंगे व मानव-वन्य जीव संघर्ष ऐसी अवस्था में पहुँच जाएगा जिसे काबू करना मुश्किल हो जाएगा। 

भूषण ने कहा कि इन आठ सालों में केंद्र ने कोई अध्ययन नहीं करवाए और नए नए कोल ब्लॉक्स आबंटित या नीलाम किए जाते रहे। अब जब अध्ययन सामने हैं तब भी नयी खदानों को स्वीकृतियाँ दी जा रहीं हैं और परसा ईस्ट केते बासन को दूसरे चरण के खनन के लिए विस्तार को भी पर्यावरणीय मंजूरी जारी कर दी गयी है। इस खदान के विस्तार के लिए कम से कम 4.5 लाख पेड़ काटे जाएँगे जिससे हाथियों के नैसर्गिक पर्यावास को गंभीर नुकसान होगा और मानव-हाथी संघर्ष बेतहाशा ढंग से बढ़ेगा।  

राजस्थान राज्य विद्युत निगम और परसा केते कोलरीज़ लिमिटेड की तरफ से पेश हुए अभिषेक मनु सिंघवी व मुकुल रोहतगी ने राजस्थान में व्याप्त कोयला संकट का हवाला देते हुए इस खदान के विस्तार को सही ठहराने की पैरवी की।   

सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस मामले में चारों हितग्राहियों को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है। हालांकि परियोजना के विस्तार पर रोक नहीं लगाई गयी। इस मामले की अगली सुनवाई अब चार सप्ताह बाद यानी मध्य जून में होगी जिसमें खदान के विस्तार पर स्थगन देने को लेकर जिरह होगी।

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